Move to Jagran APP

कश्मीर के सेब को 'समर्थन', जम्मू के बासमती को ठेंगा

गुलदेव राज जम्मू आरएसपुरा का बासमती चावल राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी खुशबू व महक का लोहा मनवा चुका है। इसके बावजूद दस्तूर ऐसा है कि सरकार ने हमेशा ही कश्मीरी सेब को ही मान दिया है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 22 Sep 2019 08:36 AM (IST)Updated: Mon, 23 Sep 2019 06:41 AM (IST)
कश्मीर के सेब को 'समर्थन', जम्मू के बासमती को ठेंगा

गुलदेव राज, जम्मू

loksabha election banner

सरकार ने कश्मीर में सेब का न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी कर सेब उत्पादकों को तो बड़ी राहत दे दी, मगर महक और स्वाद के लिए जम्मू के आरएसपुरा क्षेत्र की पहचान बनाने वाले पारंपरिक बासमती के उत्पादक किसानों को कोई पूछ नहीं रहा है। बासमती उत्पादक पिछले पांच साल से घाटा झेल रहे हैं और अब भी भेदभाव से प्रभावित हैं। उचित दाम न मिलने से किसान हताश है। दरअसल, राज्य के पुनर्गठन के बाद कश्मीर में उपजे हालात के बीच सरकार नेफेड के माध्यम से सेब को खरीद रही है, लेकिन जम्मू में बासमती की पैदावार करने वाले किसानों को नुकसान के बावजूद सरकार अनदेखा कर देती है।

आरएसपुरा का बासमती चावल राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी खुशबू व महक का लोहा मनवा चुका है। इसके बावजूद दस्तूर ऐसा है कि सरकार ने हमेशा ही कश्मीरी सेब को ही मान दिया है। इस बार भी कश्मीर के सेब का सरकार अच्छा मूल्य दे रही है। डिलिशियस ए ग्रेड सेब का समर्थन मूल्य 48 से 52 रुपये प्रति किलो निकाला है। जबकि बी ग्रेड के सेब के लिए सरकार 32 से 36 रुपये व सी ग्रेड सेब के लिए 15.75 से 18 रुपये देगी। वहीं, आरएसपुरा बेल्ट में पारंपरिक बासमती धान तीन से साढ़े तीन हजार रुपये प्रति क्विटल में भी मुश्किल से बिक पाता है। मजे की बात यह है कि वीआइपी कार्यक्रमों व समारोह में आरएसपुरा का ही बासमती चावल परोसा जाता है, जहां इसकी गुणवत्ता की वाहवाही होती है मगर इसके उत्पादकों को कोई नहीं पूछता।

जम्मू कश्मीर में रही सरकारों के अलावा केंद्र सरकार ने बासमती उत्पादक किसानों के लिए न तो कभी न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी किया और न ही उत्साह बढ़ाने के लिए बोनस दिया। नवंबर में आरएसपुरा में बासमती धान की फसल तैयार हो जाएगी। ऐसे में बासमती उत्पादक किसानों ने भी सरकार से न्यूनतम समर्थन मूल्य मांगा है। तहरीक-ए-किसान जम्मू कश्मीर के प्रधान किशोर कुमार का कहना है कि कम से कम छह हजार रुपये प्रति क्विटल का न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी होना चाहिए। वर्तमान में किसान जिस दाम पर बासमती बेच रहे हैं, उससे तो खेती का खर्च भी नहीं निकलता।

----------

45 हजार हेक्टेयर में होती है खेती

आरएसपुरा बेल्ट जोकि अखनूर से सांबा तक की सीमांत पट्टी है, में 45 हजार हेक्टेयर भूमि पर पारंपरिक बासमती की खेती होती है। यहां से हर साल 1.15 लाख टन पैदावार होती है। कभी 60 हजार हेक्टेयर में यह खेती होती थी, मगर बाद में किसान हाइब्रिड बासमती की ओर बढ़ते गए जोकि कम समय में तैयार हो जाती है और अच्छी पैदावार भी होती है, लेकिन सीमांत क्षेत्र में अभी भी किसान बासमती की पारंपरिक खेती को संभाले हुए हैं। किसानों का कहना है कि लंबा समय लेने वाली बासमती के हवा से गिरने का जोखिम हमेशा बना रहता है मगर उनको तो यह खेती करनी ही है। यह पारंपरिक खेती पीढि़यों से होती आ रही है।

-----------

क्यों कहते हैं पारंपरिक खेती

दरअसल, यह रणवीर बासमती किस्म है, जिसका अपना बीज है। इसे किसान दशकों से संभालते चले आ रहे हैं। इस रणवीर बासमती चावल की अपनी अलग महक है। यानी जब चावल पकाए जाते हैं तो महक पड़ोस तक पहुंचती है। स्वाद में मिठास भी निराली है। बाद में सरकार ने इस बीज को उन्नत किया और यही बीज आज कल चल रहा है। इस पारंपरिक बासमती के बीज लेकर दूसरे राज्यों में भी लगाए गए और वहां फसल तो हुई मगर स्वाद व महक नहीं रही। आरएसपुरा बासमती ग्रोअर्स एसोसिएशन के प्रधान देवराज चौधरी का कहना है कि कुछ आरएसपुरा की मिट्टी की खासियत तो कुछ चिनाब नदी के पानी के जादू ने ही इस बासमती को खास बनाया है। ---------

अब बासमती आर्गेनिक हो रही है: कुलभूषण

जम्मू कश्मीर एग्री इंटप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट एसोसिएशन के प्रधान कुलभूषण खजुरिया ने कहा कि आरएसपुरा बेल्ट की बासमती अब तो आर्गेनिक ही है। सरकार ही पहल नहीं कर रही। यहां की बासमती खास है और इसे सरकार बाजार उपलब्ध कराए। अगर ऐसा नहीं कर सकती तो न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी करे, तभी किसान इस पारंपरिक खेती को जारी रख सकेंगे।

----

पूर्ण आर्गेनिक खेती से बनेगी बात

कृषि विभाग के उप निदेशक रहे सीएम शर्मा का कहना है कि आरएसपुरा बासमती उत्पादक किसानों को अपनी खेती को पूरी तरह से आर्गेनिक बनाना होगा। एक दिन ऐसा जरूर आएगा जब आरएसपुरा बासमती अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में महंगे से महंगे दाम पर बिकेगी। आरएसपुरा बेल्ट की बासमती को आर्गेनिक में बदलने की दिशा में काम चल रहा है और यह सही दिशा में कदम है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.