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जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने तीन लोगों पर पीएसए खारिज किया

मोहम्मद असलम शेख को पीएसए के तहत 11 नवंबर 2020 को जिला मजिस्ट्रेट बड़गाम के आदेश पर कैद किया गया था। आदिल मंजूर मीर को जिला मजिस्ट्रेट अनंतनाग के 26 फरवरी 2021 के आदेश पर हिरासत में लिया गया था।

By Vikas AbrolEdited By: Published: Sat, 29 Jan 2022 05:28 PM (IST)Updated: Sat, 29 Jan 2022 05:28 PM (IST)
जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने तीन लोगों पर पीएसए खारिज किया
न्यायालय ने कहा कि हिरासत में रखने वाले अधिकारियों ने किसी भी मैटेरियल का जिक्र नहीं किया है।

जम्मू, राज्य ब्यूरो। जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय ने तीन लोगों पर लगाए गए जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) को खारिज करते हुए सरकार से उन्हें रिहा करने के आदेश दिए हैं। अलग-अलग बंदी प्रत्यक्ष याचिकाओं को मंजूर करते हुए न्यायाधीश संजय धर की पीठ ने सरकार को निर्देश दिए कि बड़गाम के गुडपोरा यारीकाह, खान साहिब के मोहम्मद असलम शेख, अनंतनाग के आशाजी पोरा के आदिल मंजूर मीर और बांडीपोरा चिट्टेबेंडे आरागाम के एहितशाम- उल हक- भट्ट को कैद रिहा किया जाए।

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मोहम्मद असलम शेख को पीएसए के तहत 11 नवंबर 2020 को जिला मजिस्ट्रेट बड़गाम के आदेश पर कैद किया गया था। आदिल मंजूर मीर को जिला मजिस्ट्रेट अनंतनाग के 26 फरवरी 2021 के आदेश पर हिरासत में लिया गया था। वही एहितशाम- उल हक- भट्ट को जिला मजिस्ट्रेट बांडीपोरा के आदेश पर 3 मार्च 2021 को हिरासत में लिया गया था। शेख को हिरासत में रखने के आदेश को रद्द करते हुए न्यायालय ने कहा की कि यह कानून की व्यवस्था है कि हिरासत में रखने का आदेश तब दिया जा सकता है जब व्यक्ति पुलिस या न्यायिक हिरासत में हो या आपराधिक मामले में शामिल हो और इसके लिए हिरासत में लेेने के कारण भी बताने होते हैं।

हिरासत में रखने का आदेश देने वाले अधिकारियों को कारण बताने होते है कि राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल कैदी पर सामान्य कानून के तहत कार्रवाई की गई। इन सभी कारणों के मौजूद न होने से हिरासत में रखने का औचित्य नहीं बनता। याचिकाकर्ता पर दर्ज एफआईआर का जिक्र करते हुए न्यायालय ने कहा कि हिरासत में रखने वाले अधिकारियों ने किसी भी मैटेरियल का जिक्र नहीं किया है और कोई कारण नहीं बताया है। ऐसा लगता है कि हिरासत में रखने वाले अधिकारियों की संतुष्टि है कि कैदी राज्य की सुरक्षा के लिए खतरा है और यह आरोप एफआईआर पर ही हैं कोई अन्य मैटेरियल नहीं है। न्यायालय ने कहा कि कैदी तो पहले ही एफआइआर में था और उसको जमानत मिलने की संभावना नहीं थी क्योंकि उस पर यूएपीए के तहत मामला दर्ज था।


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