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Jammu Kashmir: केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर को नहीं चाहिए आजादी का झुनझुना

नया कश्मीर का नारा देने वाले स्वर्गीय शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने आम लोगों की विकास में भागेदारी को सुनिश्चित करने के लिए उनके लोकतांत्रिक अधिकारों की बहाली का जो बिगुल फूंका था उसका मकसद जिला विकास परिषद के गठन से पूरा होने वाला है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Fri, 30 Oct 2020 05:26 PM (IST)Updated: Fri, 30 Oct 2020 06:09 PM (IST)
डर और आशंका के बादल छंटने लगे और नवजात केंद्र शाासित जम्मू-कश्मीर प्रदेश भी आगे बढ़ने लगा।

श्रीनगर, नवीन नवाज। केंद्र शासित जम्मू कश्मीर प्रदेश अब अपने-बेगानों की पहचान करने लगा है। यही कारण है कि अब न पत्थरबाजी है, न हड़ताली सियासत अपना रंग दिखाती है। जिहादियाें की नर्सरी भी मुरझा रही है। ऑटोनॉमी, सेल्फरूल और आजादी का झुनझुना पहली वर्षगांठ मना रहे भारत के इस लाडले को नहीं भा रहा है। वह भ्रष्टाचारियों और जिहादियों पर थप्पड़ की गूंज से खुुश हो रहा है। प्यार से गाल सहलाने आ रही प्रशासनिक मशीनरी को देखकर उछल रहा है। अपने हाथों में विकास और सत्ता की चाबी देखकर खुश हो रहा है।

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जम्मू कश्मीर और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश बनने के एक साल में सरकार लोगों के घरों तक पहुंच कर उनके दुख-दर्द सुन रही है। अब फाइलें धूल नहीं फांक रही। भ्रष्टाचारियों पर लगाम लग रही है। बैक-टू-विलेज (गांव की ओर) अभियान में अधिकारियों ने गांव-गांव जाकर लोगों की दिक्कतों को सुना और समाधान किया। अब महत्वपूर्ण पदों पर उन अधिकारियों की नियुक्ति की जा रही है जो काम को तेजी से आगे ले जाएं।

31 अक्तूबर 2019 काे जब भारत के नक्शे पर केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर राज्य का जन्म हुआ तो बहुत से सवाल भी पैदा हुए थे। एक स्वस्थ और खुशहाल जम्मू-कश्मीर की उम्मीद के साथ-साथ उसके विभिन्न बुराइयों और कमजाेरियों का शिकार होने की भी तीव्र आशंका थी, क्योंकि बीते 73 साल का कड़वा अनुभव गलत नहीं था। धीरे-धीरे डर और आशंका के बादल छंटने लगे और नवजात केंद्र शाासित जम्मू-कश्मीर प्रदेश भी आगे बढ़ने लगा।

आमजन काे अपने भविष्य, विकास की आजादी देने के लिए ब्लाक विकास परिषदों का गठन हुआ। उम्मीद के विपरीत इस प्रकिया में आम लोगों ने खूब जोश दिखाया। उनकी उम्मीदें भी बढ़ गई। यही कारण है कि अब जिला विकास परिषदों का गठन होने जा रहा है। महाराजा हरि सिंह के राजतंत्र के खिलाफ जिस लोकतंत्र और स्वराज के आंदोलन की नींव पड़ी थी, वह अब अपनी मंजिल पर पहुंचने जा रहा है। नया कश्मीर का नारा देने वाले स्वर्गीय शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने आम लोगों की विकास में भागेदारी को सुनिश्चित करने के लिए, उनके लोकतांत्रिक अधिकारों की बहाली का जो बिगुल फूंका था, उसका मकसद जिला विकास परिषद के गठन से पूरा होने वाला है।

बैक टू विलेज अभियान में अधिकारियों ने गांव-गांव जाकर लोगों की दिक्कतों को सुना: सामंतशाही का आधुनिक रुप बनी नौकरशाही फिर से जनसेवक बन गई है। उपराज्यपाल के नेतृृत्व में सभी वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी सचिवालय के वातानुकूलित कमरों से बाहर निकल दूरदराज के इलाकों में जनता दरबार में हाजिरी दे रहे हैं। लोग सुना रहे हैं और वे चुपचाप चुन, अपनी खामियों व कोताहियों को स्वीकार कर, उन्हें दूर करने और भविष्य में गलती न करने का संकल्प भी ले रहे हैं। पूरे देश में जम्मू-कश्मीर एकमात्र ऐसा पहला प्रदेश है, जहां जनता अपनी समस्याएं सुनाने के लिए सचिवालय में नहीं जा रही है बल्कि गांव की ओर, मेरा शहर-मेरी शान, ब्लाक दिवस जैसे कार्यक्रमों के जरिए जनता के द्वार पर पहुंच रही है। प्रत्येक पंचायत में खेल का मैदान नजर आ रहा है। गलियां और सड़कें पक्की हो रही हैं। एलओसी के साथ सटे करनाह, टंगडार, केरन जैसे दुर्गम इलाकों के साथ श्रीनगर से मात्र 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित शोपियां के कई गांव भी तीन माह पहले ही बिजली से रोशन हुए हैं।

सुरक्षाबलों की मनमानी पर भी लगी है रोक: सुरक्षाबलों की मनमानियों पर भी रोक लगी है। राजौरी के तीन श्रमिकाें की मौत पर सेना के जवानों के खिलाफ कार्रवाई इस पर मुहर लगाती है। आतंकवाद के खिलाफ सक्रिय भूमिका निभा रही जम्मू-कशमीर पुलिस के मनोबल को तोड़ने का काम कर रही कैरियर पदोन्नति की रुकावटों को करीब दो दशक बाद दूर किया गया। पुलिस संगठन में वेतन विसंगतियां दूर हुई हैं। प्रशासनिक पदों पर बैठने के लिए अब क्षेत्र-मजहब-वर्ग विशेष से संबंधों की योग्यता समाप्त हो चुकी है। काराेबारी जगत के लिए करीब 1300 करेाड़़ का आर्थिक पैकेज मिला है। वह भी बिचौलियों के बिना। नाफेड फिर सेब खरीद स्थानीय सेब उत्पादकाें की आर्थिक उन्नति में योगदान कर रही है। केसर की पहचान को बनाए रखने के लिए उसे जीअाई टैग दिलाया गया है।

निजी निवेशकों-स्वउद्यमिता क्षेत्र में प्रोत्साहन पर भी हो रहा काम: बेरोजगारी को दूर करने के लिए निजी निवेशकों और स्वउद्यमिता को प्राेत्साहित करते हुए तीन वर्षां में 25 हजार करोड़ का निवेश जुटाने के रोडमैप पर काम हो रहा है। करीब 10 हजार युवा उद्यमियों को वित्तीय मदद प्रदान की जा रही है। प्रत्येक पंचायत से दो उद्यमियों को चुना गया है। देश के कार्पाेरेट जगत की 30 नामी हस्तियों को कश्मीर में आमंत्रित किया गया है जो स्थानीय परिवेश में औद्योगिक विकास की संभावनाओं का पता लगाने, निवेश के अवसर जुटाने क मुददों पर मंथन करने के साथ ही स्थानीय युवाआं से संवाद कर उन्हें जीवन में आगे बढ़ने के गुर सिखाएंगे।

आतंकवाद भी अब अंतिम सांस ले रहा: आतंकवाद अभी भी जिंदा है, लेकिन बुझने से पहले जिस तरह से चिराग की लौ ज्यादा होती है, उसकी हालत भी कुछ ऐसी ही नजर आ रही है। आतंकी संगठनों में अब पहले की तरह स्थानीय लड़कों की भर्ती की लाइन नहीं लगी है। एक खुशहाल जिंदगी जीने की आस में वह अब नौकरी की लाइन में खड़ा है। 10 हजार पदों के लिए छह लाख लोगों ने आवेदन किया है। अगले एक माह के दाैरान करीब 15 हजार नई नौकरियों की घोषणा की उम्मीद है। बीते 30 सालों में पहली बार प्रदेश मं किसी जगह नए कब्रीस्तान के लिए जमीन चिन्हित नहीं हुुई है, अगर चिन्हित हुई है तो खेल के मदौन के लिए। डल झील मेंवॉटर स्पोर्टस सेंटर शुरु हो गया है। रंजीत सागर में इसकी तैयारी हो रही है। श्रीनगर, जम्मू समेत प्रदेश के लगभग हर जिले में एक स्टेडियम और स्पोर्टस कांपलैक्स बना है। आतंकियों के जनाजे के बजाय अब खेल के मैदान में भीड़ नजर आती है।

ब्लैकमेल की सियासत खत्म हो चुकी है: आजादी, ऑटोनामी, सेल्फ रूल और जिहाद का झुनझुना केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर प्रदेश में अब किसी को नही भा रहा है। आजादी के नारे लगाने वाली भीड़ अब गायब हो चुकी है, ऑटोनामी और सेल्फ रुल की बात पुरानी हो चुकी है। यही कारण है कि आजादी का नारा देने वाले अब चुपचाप घर में बैठे हैं, क्योंकि वे अब तिहाड़ जेल की सैर करने काे राजी नहीं हैं। लोगों से परोपकार के नाम पर चंदा जमा कर उसे कश्मीर में निर्दाेषों के कातिलों तक पहुंचाने वाली एनजीओ और ट्रस्टों के खिलाफ भी कार्रवाई हो रही है। ब्लैकमेल की सियासत खत्म हो चुकी है, यही कारण है कि अब नेकां, पीडीपी जैसे कश्मीर केंद्रित मुख्यधारा क सियासी दल न अब पाकिस्तान का डर दिखाते हैं, न अलगााववादियों का हौव्वा। वे अब अपनी जमीन बचाने के लिए जम्मू-कश्मीर के लोगों की पहचान व संस्कृति की हिफाजत की बात कर रहे हैं।वह अपनी पहचान की गारंटी मांग रहे हैं। वह भी एक रुठे हुए बच्चे की तरह जो साइकिल नहीं मिलने पर घर छोड़ने की धमकी देता है।


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