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बेबस पहाड़ों पर बीमारियों का बसेरा

-किश्तवाड़, डोडा, रियासी, ऊधमपुर सहित कई जिले हेपेटाइटिस, गलघोटू, डायरिया जैसी बीमाि

By JagranEdited By: Published: Mon, 23 Jul 2018 12:13 PM (IST)Updated: Mon, 23 Jul 2018 12:13 PM (IST)
बेबस पहाड़ों पर बीमारियों का बसेरा
बेबस पहाड़ों पर बीमारियों का बसेरा

रोहित जंडियाल, जम्मू

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राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में डॉक्टरों की कमी और लोगों में जागरूकता न होने के कारण इन क्षेत्रों में लगातार बीमारियां पांव पसार रही हैं। किश्तवाड़, डोडा, रियासी, ऊधमपुर सहित कई जिले ऐसे हैं जहां पर हेपेटाइटिस, गलघोटू, डायरिया जैसी बीमारियां फैल रही हैं। बावजूद इसके इन क्षेत्रों में अभी भी डॉक्टर नहीं हैं। अगर कहीं हैं भी तो नेशनल हेल्थ मिशन के तहत कांट्रेक्ट पर नियुक्त डॉक्टर ही अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

नियमों के अनुसार, राज्य में एक हजार लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिए, परंतु जम्मू कश्मीर में 1800 लोगों पर एक डॉक्टर है। पहाड़ी क्षेत्रों में स्थिति बिल्कुल अलग है। अधिकांश प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों में डॉक्टर ही नहीं हैं। पचास प्रतिशत पद खाली पड़े हुए हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में स्थित 259 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में से डेढ़ सौ से अधिक में एक भी डॉक्टर नहीं है। डोडा, किश्तवाड़, राजौरी, पुंछ, रामबन और ऊधमपुर जैसे जिले सबसे अधिक प्रभावित हैं। राज्यपाल के निर्देशों के बाद कई डॉक्टरों को डिटैच करके वापस जरूर भेजा गया है। मगर अभी भी स्थिति अच्छी नहीं है। इस कारण इन क्षेत्रों में बीमारियां फैलने के बाद भी लोगों को जानकारी नहीं होती।

जागरूकता के अभाव में किश्तवाड़ जिले के वाडवां क्षेत्र में हेपेटाइटिस-बी फैल गया। अभी तक जांच में 116 लोगों में यह बीमारी की पुष्टि हो चुकी है। अभी भी इस क्षेत्र में अभियान चलाया जा रहा है। इस क्षेत्र में कुल तेरह गांव स्थित हैं। मगर विडंबना यह है कि इलाज के लिए एक भी एमबीबीएस डॉक्टर नहीं था। केवल एक यूनानी डॉक्टर नियुक्त है। लोगों को बीमारी के बारे में कोई जानकारी नहीं है। कुछ दिन पहले ही रियासी जिले के पहाड़ी क्षेत्र में एक ही परिवार के सदस्यों में गलघोटू बीमारी फैल गई। इनमें से एक की मौत भी हो चुकी है। दो साल में यह दूसरी बार है कि इस क्षेत्र में गलगोटू बीमारी के कारण किसी की मौत हुई हो। इन जिलों में अक्सर डायरिया भी फैल जाता है।

एपीडेमालोजिस्ट डॉ. जेपी ¨सह का कहना है कि उनका प्रयास रहता है कि इन क्षेत्रों में लोगों को विभिन्न प्रकार की बीमारियों के बारे में जागरूक किया जाए।

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नहीं करवाते टीकाकरण

पहाड़ी क्षेत्रों में एक विशेष समुदाय के कुछ लोग टीकाकरण के लिए आगे नहीं आते हैं। रियासी जिले के जिस क्षेत्र में गलघोटू बीमारी हुई, वहां पर भी कई लोगों ने टीकाकरण नहीं करवाया है। किश्तवाड़ जिले के वाडवां क्षेत्र में भी ऐसी ही स्थिति है। कुछ महीने पूर्व इंद्रधनुष अभियान के तहत जब मढ़ ब्लाक में टीकाकरण किया जा रहा था तो वहां पर भी स्वास्थ्य विभाग की टीमों को विरोध का सामना करना पड़ा था।

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पल्स पोलियो का भी

हुआ था विरोध

राज्य में कई बार पल्स पोलियो अभियान का भी कुछ क्षेत्रों में विरोध हुआ है। तीन साल पहले कश्मीर में भी भारी विरोध हुआ था। स्वास्थ्य विभाग की टीमों को अभियान को सफल बनाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। जम्मू के डंसाल ब्लक में भी विरोध हुआ था। परिवार कल्याण विभाग के पूर्व निदेशक डॉ. बलदेव राज शर्मा का कहना है कि कुछ लोगों में टीकाकरण को लेकर गलतफहमियां पैदा की जाती हैं। इस कारण विरोध होता है।

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सुविधाओं का अभाव

पहाड़ी क्षेत्रों में सुविधाओं का अभाव है। सड़कें, बिजली न होने के कारण इन क्षेत्रों में डॉक्टर जाने को प्राथमिकता नहीं देते हैं। इन क्षेत्रों में छह महीने बर्फ होने के कारण यहां पर रास्ते भी इन महीनों में बंद रहते हैं। कई क्षेत्र कश्मीर के साथ लगते हैं परंतु वहां पर जाने में भी कई घंटे लग जाते हैं। इन लोगों को बीमारियों के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

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कोर्ट पर टिकी निगाहें

राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में डॉक्टरों के रिक्त पदों को भरने के लिए अब कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। इसमें प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों में रिक्त पड़े पदों का हवाला दिया गया है। ऐसे में अब सभी की निगाहें कोर्ट पर टिकी हैं।


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