मशरूम सफेद करने के चक्कर में ज्यादा न डाले पाउडर, जानें विशेषज्ञों की राय!
मशरूम विशेषज्ञ अमन ज्योति का कहना है कि किसानों को चाहिए कि दस किलो मशरूम को साफ करने के लिए दस लीटर पानी में 5 ग्राम से ज्यादा पाउडर नही डालना चाहिए।
जम्मू, जेएनएन। अब मशरूम तैयार हो आई है और बाजार में उतर रही है। मगर कुछ किसान तकनीक का ख्याल नही रख रहे। बाजार में भेजी जाने वाली मशरूम को और ज्यादा सफेद करने के चक्कर में किसान पोटाशियम मेटाबाई सल्फेट/डाइसल्फेट पाउडर का ज्यादा इस्तेमाल कर जाते हैं। यह गलत है। क्योंकि अधिक पाउडर के इस्तेमाल से मशरूम कुछ समय के लिए सफेद सफेद दिखती हो मगर बाद में रंग पीला पड़ने लगता है। मशरूम विशेषज्ञ अमन ज्योति का कहना है कि किसानों को चाहिए कि दस किलो मशरूम को साफ करने के लिए दस लीटर पानी में 5 ग्राम से ज्यादा पाउडर नही डालना चाहिए।
वहीं पैकिंग का विशेष ख्याल रखें। पालीथिन में पैक करने के पहले लिफाफे में छह सात पिन होल करें। अगर ऐसा नही किया गया तो लिफाफे में कार्बन डाईअक्साइड की मात्रा बढ़ जानें से मशरूम पीली पड़ती जाएगी। ध्यान दें कि कभी भी गीली मशरूम को लिफाफों में पैक न किया जाए। साफ करने के बाद मशरूम पर जमा पानी सूखने के बाद भी लिफाफों में भरी जाए, नही तो मशरूम खराब होने का डर बना रहेगा।वहीं कुछ किसान खुद डाक्टर बनकर मशरूम की फसल का इलाज करते फिरते हैं और विशेषज्ञ की सलाह लिए बगैर दवाओं का छिड़काव करते रहते हैं। यह ठीक नही है। अगर आपको लगता है कि मशरूम की फसल पर कोई गड़बड़ है तो सबसे पहले विशेषज्ञ की सलाह लें।
मशरूम खेती के लिए कैसे करें तापमान नियंत्रित
मशरूम के शेड में 17-18 डिग्री तापमान बनारहना चाहिए। इसलिए नियंत्रित करने के लिए शेड में बल्ब जलाएं। पानी की बाल्टी में राड डालकर भाव से शेड में तापमान नियंत्रण करें। मगर हीटर या सूखी राड से शेड के अंदर हीट न बनाए। इससे नुकसान हो सकता है। मशरूम को पानी सुबह के समय 11 बजे या उसके बाद दें और फिर तीन बजे तक हवा लगवाएं। अति सुबह और शाम को पानी देना ठीक नही रहता।
दवा का काम करते हैं मशरूम
खाने में लाजवाब लगने वाले मशरूम को दवा के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। खास तौर से चीन और दक्षिण अमेरिका में तो सदियों से इन्हें कई तरह की बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। आम तौर पर इन्हें गोलियों या कैप्सूल के रूप में खरीदा जा सकता है। जर्मनी में जहां दवा केवल डॉक्टर के लिखने पर ही खरीदी जा सकती है, वहां मशरूम वाले कैप्सूल खरीदने के लिए डॉक्टर की इजाजत की जरूरत नहीं है। इन कैप्सूल्स को सप्लिमेंट के तौर पर लिया जाता है। कई बार तो डॉक्टर भी मरीजों को इन्हें लेने की हिदायत देते हैं। आयुर्वेदिक डॉक्टर अशोक शर्मा ने बताया कि मशरूम की कई तरह की किस्में होती हैं और हर बीमारी के लिए अलग तरह की किस्म का इस्तेमाल किया जाता है। इनका गले में खराश से ले कर दमे तक के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही मधुमेह से छुटकारा पाने के लिए और शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए भी इन्हें लिया जाता है। यहां तक कि जवान दिखने के लिए एंटी-एजिंग फॉर्मूला में भी इनका इस्तेमाल होता है। चीन में इनका इस्तेमाल पिछले तीन हजार सालों से होता आया है। वहां कैंसर का इलाज भी मशरूम से किया जाता है। ब्लड प्रेशर और ट्यूमर के इलाज में भी ये लाभदायक साबित होते हैं। शायद कम ही लोग यह बात जानते हों कि सब से पहला एंटीबायोटीक पेनिसिलिन भी मशरूम से ही बनाया गया था।