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जम्मू-कश्मीर को तो चार दशक बाद मिली आपातकाल के श्राप से मुक्ति

देश में 45 साल पहले लगे आपातकाल के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान जेलों में बंद जम्मू वासियों की निर्मम पिटाई ने लोकतंत्र के प्रति उनके विश्वास को और प्रगाढ़ किया।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Wed, 24 Jun 2020 11:53 AM (IST)Updated: Wed, 24 Jun 2020 11:53 AM (IST)
जम्मू-कश्मीर को तो चार दशक बाद मिली आपातकाल के श्राप से मुक्ति
जम्मू-कश्मीर को तो चार दशक बाद मिली आपातकाल के श्राप से मुक्ति

नवीन नवाज, श्रीनगर। आपातकाल से पूरे हिन्दोस्तान को करीब दो साल में ही छुटकारा मिल गया, लेकिन हमें आपातकाल के श्राप से छुटकारा पाने में चार दशक से भी ज्यादा इंतजार करना पड़ा। कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ प्रो. हरि ओम ने आपातकाल को याद करते हुए यह बातें कहीं। उन्होंने कहा कि कश्मीर में इसका कोई ज्यादा असर नहीं था, जम्मू प्रांत में इसके विरोध में खूब गतिविधियां थीं। लोगों को आपातकाल सिर्फ यातनाओं और पाबंदियों के लिए याद आता था, लेकिन हम तो आपातकाल की निशानियों को लगातार ढोए जा रहे थे। बीते साल ही हमें इनसे छुटकारा मिला।

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प्रो. हरि ओम ने कहा कि पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के लागू होने के बाद ही हमें इस निशानी से छुटकारा मिला है। उन्होंने कहा कि यह निशानी जम्मू कश्मीर की विधानसभा का छह साल का कार्यकाल था। पूरे देश में जहां विधानसभा पांच साल की होती थी, जम्मू कश्मीर में यह छह साल की थी। उन्होंने कहा कि देश में आपातकाल लागू करने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संसद और विधानसभाओं का कार्यकाल छह साल कर दिया था। उस समय जम्मू कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस व कांग्रेस का गठबंधन था। शेख मोहम्मद अब्दुल्ला मुख्यमंत्री थे। उन्होंने कहा कि उस समय शेख अब्दुल्ला ने कहा था कि जम्मू कश्मीर को पूरे देश के साथ मिलकर चलना है, इसलिए विधानसभा का कार्यकाल छह साल होना चाहिए। हमारी विधानसभा का कार्यकाल छह साल का हो गया।

जनता सरकार ने पलटा था फैसला : कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार रशीद ने कहा कि जब आपातकाल हटा, इंदिरा गांधी के हाथ से सत्ता निकल गई तो केंद्र में सत्ता संभालने वाली जनता दल की सरकार ने आपातकाल में लिए गए फैसलों को पलटा। संसद और विधानसभाओं का कार्यकाल पांच साल कर दिया गया। जम्मू कश्मीर में यह छह साल ही रहा, क्योंकि जम्मू कश्मीर का संविधान और अनुच्छेद 370 रुकावट बन गया। शेख मोहम्मद अब्दुल्ला जिन्होंने कहा था कि राष्ट्रीय मुख्यधारा के साथ मिलकर आगे बढऩा है, इसलिए छह साल के लिए विधानसभा का कार्यकाल किया था। अब पांच साल करने के मुद्दे पर उन्हें राष्ट्रीय मुख्यधारा की बात भूल गई। जम्मू कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल छह साल ही रहा। उन्होंने कहा कि जो भी मुख्यमंत्री रहा, किसी ने छह साल की विधानसभा के कार्यकाल को पांच साल नहीं किया।

पुनर्गठन से मिटी आपातकाल की निशानी: जम्मू कश्मीर पैंथर्स पार्टी के चेयरमैन और पूर्व शिक्षामंत्री हर्ष देव सिंह ने कहा कि मैंने कई बार जम्मू कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल छह साल से घटाकर पांच साल कराने के लिए विधानसभा में प्रयास किया, लेकिन मेरे अकेले की कौन सुनता। मेरा प्रस्ताव गिर जाता। कई लोग जो आपातकाल की निंदा करते हैं, नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस की नीतियों पर रोष जताते हैं, इस मुद्दे पर उस समय मौन रहते थे। कुछ नहीं किया गया।

बालपन की पिटाई ने प्रगाढ़ किया लोकतंत्र में विश्वास: देश में 45 साल पहले लगे आपातकाल के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान जेलों में बंद जम्मू वासियों की निर्मम पिटाई ने लोकतंत्र के प्रति उनके विश्वास को और प्रगाढ़ किया। प्रदेश भाजपा के वरिष्ठ नेता व जम्मू कश्मीर के पूर्व उपमुख्यमंत्री कङ्क्षवद्र गुप्ता तेरह साल की उम्र में पंजाब के गुरदासपुर की जेल में तेरह महीने कैद रहे थे। कविन्द्र गुप्ता के पिता बिन्द्रावन गुप्ता केंद्र सरकार के कर्मचारी थे। इमरजेंसी के दौरान वह जम्मू से ट्रांसफर होकर पंजाब के गुरदासपुर में तैनात हुए थे। उनके बेटे कविन्द्र नौवीं कक्षा में थे। जब पंजाब में आपातकाल के खिलाफ लहर चली तो संघ के साथ जुड़े बालक कङ्क्षवद्र गुप्ता भी प्रदर्शन करने के लिए मैदान में आ गए। बच्चों को आपातकाल के खिलाफ पोस्टर छाप कर उन्हें लोगों तक पहुंचाने की जिम्मेवारी मिली थी। हम पुलिस से बचते हुए लोगों में पोस्टर बांटकर उन्हें प्रदर्शन करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। इस दौरान एक दिन पुलिस ने छापा मार कर हमें गिरफ्तार कर लिया। कविन्द्र गुप्ता ने बताया कि जेल में बिताए दिनों ने लोकतंत्र के प्रति उनके विश्वास को और मजबूत कर दिया। उन्होंने बताया कि उनके साथ गुरदासपुर की जेल में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर भी थे।

जेल में रोज पीटा जाता था : हमें जेल में रोज पीटा जाता था। जेल के छोटे से कमरे में बहुत बदबू थी। पुलिस की मारपीट भी हमारे जोश को कम नहीं कर पाई। पिटाई से अकसर खून निकल आता था। हम आजादी के गीत गाकर ऐसा महसूस करते थे जैसे हम आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं। मुङो 25 जून 1975 को गिरफ्तार किया गया था। जुलाई 1976 में जब छोड़ा गया तो उस समय मैं लोकतंत्र का एक कर्मठ प्रहरी बन गया था। जेल में मुझमें जो हिम्मत जागी उसने मुझे आगे बढ़ने में बहुत मदद की। कविन्द्र गुप्ता ने बताया कि जम्मू आने के बाद उन्होंने कश्मीर केंद्रित सरकारों के खिलाफ होने वाले सभी आंदोलनों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। कविन्द्र गुप्ता आपातकाल की काली यादों के साथ उस प्रमाणपत्र को भी संभाल कर रखे हुए हैं जो गुरदासपुर में गिरफ्तारी के लिए 41 साल पहले पंजाब सरकार ने उन्हें दिया था। गुप्ता ने बताया कि इस प्रकाश सिंह बादल की ओर से 1979 में दिए गए इस प्रमाणपत्र में उनकी तेरह महीने की गिरफ्तारी का जिक्र है।


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