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जम्मू कश्‍मीर: मिशन आलआउट के बाद अब सुरक्षा बलों का 'मिशन 2019'

मिशन 2019 के तहत लक्ष्य है कि मार्च से पूर्व बचे आतंकियों का पूरी तरह सफाया कर दिया जाए ताकि राज्य में चुनाव भयमुक्त माहौल में करवाए जा सकें।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 25 Dec 2018 09:57 AM (IST)Updated: Tue, 25 Dec 2018 10:04 AM (IST)
जम्मू  कश्‍मीर: मिशन आलआउट के बाद अब सुरक्षा बलों का 'मिशन 2019'
जम्मू कश्‍मीर: मिशन आलआउट के बाद अब सुरक्षा बलों का 'मिशन 2019'

जम्मू, नवीन नवाज। वर्ष 2018 अपने अंतिम चरण में है और सुरक्षाबल मिशन आलआउट के तहत आतंकियों की कमर तोड़ने में सफल रहे हैं। चालू वर्ष में ही इस मुहिम के तहत 247 आतंकियों को ढेर कर दिया गया। नए वर्ष के आगमन से पूर्व सुरक्षा बल घाटी में आतंक पर अंतिम प्रहार के लिए कमर कस चुके हैं।

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मिशन 2019 के तहत लक्ष्य तय किया गया है कि मार्च से पूर्व शेष बचे आतंकियों का पूरी तरह सफाया कर दिया जाए ताकि राज्य में लोकसभा व विधानसभा चुनाव भयमुक्त माहौल में करवाए जा सकें। राज्यपाल प्रशासन से लेकर केंद्र सरकार के समक्ष जम्मू कश्मीर में शांतिपूर्ण चुनाव सबसे बड़ी चु़नौती है। राज्य में हाल ही में संपन्न हुए पंचायत व निकाय चुनावों में बेशक कश्मीर घाटी में आतंकी सिर नहीं उठा पाए।

आतंकी किसी भी जगह मतदान में खलल डालने या फिर उम्मीदवारों को धमकाने नहीं पहुंच पाए और सिर्फ धमकी भरे पोस्टरों तक सीमित रहे।राज्य में विधानसभा चुनाव भी लोकसभा चुनाव के साथ अप्रैल-मई माह में ही संभावित हैं। इन चुनाव में आमजन की भागेदारी बढे़गी और उम्मीदवारों की संख्या भी। इससे आतंकी और उनके संरक्षक भली भांति परिचित हैं। वह मुख्यधारा की सियासत से जुड़े लोगों को भी निशाना बनाकर माहौल बिगाड़ने का प्रयास कर सकते हैं। इन हालात में आतंकी संगठन फिर से सिर उठाएं, उससे पूर्व ही सुरक्षा बल अंतिम प्रहार करने की तैयारी कर चुके हैं।

एनकाउंटर के साथ-साथ उनके सुरक्षा बल आतंकी संगठनों में नए लोगों की भर्ती रोकने में कामयाब रहे, साथ ही ओवरग्राउंड नेटवर्क को भी निशाने पर लिया। वादी में सुरक्षा विशेषज्ञ भी आतंकियों के मंसूबों को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ रहे हैं। गत जून के बाद ही कश्मीर में आतंकरोधी अभियानों में तेजी का एक कारण सुरक्षा बलों की पुख्ता तैयारी भी मानी जा रही है।

राज्य पुलिस महानिदेशक डा. दिलबाग सिंह ने बातचीत में कहा था कि एक साथ चार से पांच आतंकियों के मारे जाने से आतंकी कैडर का मनोबल टूटता है। इसके साथ जब उनका कोई कमांडर मरता है तो नए आतंकियों में भगदड़ मच जाती है, वह बंदूक छोड़कर सरेंडर करता है या फिर चुपचाप अपनी मांद में बैठ जाता है। इससे आतंकी संगठनों में नए लड़कों की भर्ती भी रुकती है। बीते तीन चार माह के दौरान कश्मीर में आतंकी गुटों में स्थानीय युवकों की भर्ती में कमी का एक बड़ा कारण यही है।

दक्षिण कश्मीर में आतंकरोधी अभियानों की कमान संभालने वाली सेना की विक्टर फोर्स के जीओसी मेजर जनरल जानसन मैथ्यु के मुताबिक, हमारे अभियान अंतिम आतंकी के खात्मे तक जारी रहेंगे। लेकिन इस दौरान अगर आतंकी सरेंडर करते हैं तो उन्हें पूरा मौका दिया जाएगा। चुनावों और आतंकरोधी अभियान को आपस में जोड़ने पर उन्होंने कहा कि हमारा मकसद कश्मीर में शांति और सुरक्षा का माहौल बनाना है, जो आतंकियों के खात्मे से ही बनेगा।कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ आसिफ कुरैशी ने कहा कि इस साल अब तक मारे गए आतंकियों की संख्या बीते साल की तुलना में 70 प्रतिशत ज्यादा है।

रियासत में जून के बाद ही ज्यादा आतंकी मारे गए हैं और इन अभियानों को आप किसी न किसी जगह पंचायत व निकाय चुनावों के साथ जोड़ सकते हैं। इन्हीं अभियानों के कारण आतंकी इस बार चुनावों में कोई बड़ी वारदात नहीं कर पाए। आतंकी अगर कोई बड़ी वारदात को अंजाम देने में कामयाब रहते तो कश्मीर में मतदान प्रभावित होता। इसलिए लोकसभा और विधानसभा चुनावों तक सुरक्षाबलों के कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ अभियान न सिर्फ जारी रहेंगे बल्कि तेज भी होंगे। सिर्फ एक बात का डर है, जो इस खेल को बिगाड़ सकती है, वह है आतंकरोधी अभियान में आम लोगों की मौत। 


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