इतिहास समेटे पंगोली गांव की बावलियां का असतित्व खतरे में
अवधेश चौहान, जम्मू देश के बंटवारे से पहले माता वैष्णो देवी के दर्शनों के लिए लाहौर
अवधेश चौहान, जम्मू
देश के बंटवारे से पहले माता वैष्णो देवी के दर्शनों के लिए लाहौर से यहां नगरोटा के पंगोली होते हुए मां भगवती के दरबार पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के लिए बनाई गई बावलियां और कुएं इतिहास तो समेटे हुए है। लेकिन इस विरासत को सहजने के लिए अभी कोई भी तैयार नहीं। लाहौर में बसे ¨हदुओं ने करीब 140 साल पहले यह नहीं सोचा था कि देश विभाजित हो जाएगा और माता वैष्णो देवी के दरबार पहुंचने वाला यह रूट समय की करवट के साथ बदल जाएगा। यह पुराना रूट नगरोटा विधानसभा क्षेत्र में आता है। इस रूट से लाहौर, कराची से माता के भक्त सियालकोट के रास्ते से जम्मू पहुंचते थे। जम्मू के नगरोटा के बमिलयाल और पंगोली गांव से होते हुए कटड़ा पहुंचते थे। कंडी क्षेत्र होने के कारण पंगोली और इसके साथ लगते इलाकों में पानी की जबरदस्त किल्लत को देखते हुए तब लाहौर में रहने वाले ¨हदू श्रद्धालुओं ने पानी की किल्लत को देखते हुए पंगोली गांव जो वैष्णो माता के रास्ते में आता था, में करीब चालीस बावलियां बनवाईं। इन श्रद्धालुओं को तब पानी के लिए भटकना पड़ता था। इतना ही नहीं, श्रद्धालुओं को पानी खरीद कर प्यास बुझानी पड़ती थी। गांव के स्थानीय लोग नगरोटा में प्राचीन कुएं से पानी भर कर पंगौली पहुंचते थे। पानी की एक सुराही श्रद्धालुओं को एक आने में दी जाती थी। यात्रा मार्ग पंगोली से श्रद्धालु सुराही को साथ रखते थे, क्योंकि रास्ते में उन्हें कही पानी नहीं मिलता। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि लाहौर के एक जानेमाने व्यापारी सृजन अरोड़ा और उनकी पत्नी शिवदेवी ने श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए चालीस के बावलियां बनवाईं, ताकि माता के भक्त अपनी प्यास बुझा सकें। 140 साल गुजर जाने के बाद भी नगरोटा और उसके साथ लगते कई इलाके पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं। लेकिन बावलियों की दुर्दशा को लेकर कोई गंभीर नहीं। अगर बावलियों को साफ कर इसके पानी को ओवर हैड टैंक में इकट्ठा किया जाए तो आसपास के करीब दस गांव के छह हजार लोगों के कंठ तर हो सकते हैं। विडंबना यह है कि ये बावलिया अभी भी पानी से सराबोर हैं, लेकिन सफाई न होने से गंदगी से पटी हैं। नगरोटा विधानसभा क्षेत्र के अधिकतर गांवों में पेयजल पाइप तो बिछी हैं, लेकिन हफ्ते में दो दिन पानी ही मुश्किल से पहुंचता है। अधिकतर गांववासी टैंकर खरीद कर प्यास बुझा रहें है। जीवनदायिनी विरासत को सहेजा नहीं गया तो कंडी क्षेत्र के लोगों के कंठ सूखे रहेंगे।