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Infantry Day: जम्मू से सिचायिन तक जोश, सेना ने देश की खातिर शहीदों के पदचिन्हों पर चलने का लिया प्रण

लद्दाख में इस समय चीन से लोहा लेने को तैयार उत्तरी कमान की फारेवर इन ऑपरेशन कोर ने लेह में कोर मुख्यालय में शहीदों को श्रद्धांजलि दी। काेर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन ने शहीदाें को पुष्प चक्र अर्पित किए।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Tue, 27 Oct 2020 12:34 PM (IST)Updated: Tue, 27 Oct 2020 12:37 PM (IST)
Infantry Day: जम्मू से सिचायिन तक जोश, सेना ने देश की खातिर शहीदों के पदचिन्हों पर चलने का लिया प्रण
कश्मीर को पाकिस्तान के हमले बचाने के लिए 27 अक्टूबर को 1 सिख रेजीमेंट ने श्रीनगर में कदम रखा था।

जम्मू, राज्य ब्यूरो: विश्व की सर्वक्षेष्ठ सेनाओं में अपना नाम शामिल करवाने वाली भारतीय सेना ने मंगलवार को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर व लद्दाख में इन्फैंटरी दिवस पूरे जोश के साथ मनाया। जम्मू से लेकर विश्व के सबसे उंचे युद्ध क्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर तक दुश्मन के सामने सीना ताने खड़ी भारतीय सेना ने अपने शहीदों काे याद कर वक्त आने पर देश के लिए अंतिम सांस तक लड़ने का प्रण लिया।

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इन्फैंटरी डे पर सेना की उत्तरी कमान के साथ सभी सैन्य संस्थानों में युद्ध स्थलों पर उन शहीदों को पुष्प चक्र अर्पित किए जिन्होने वर्ष 1947 से लेकर आज तक जम्मू-कश्मीर व लद्दाख में लड़े गए युद्धों, सैन्य अभियानों में सर्वोच्च बलिदान दिया है। कमान मुख्यालय उधमपुर में जनरल आफिसर कमांडिंग इन चीफ लेफ्टिनेंट जनरल वाईके जोशी ने ध्रुव वाॅर मेमाेरियल में शहीदों को श्रद्धांजलि दी।

क्यों मनाया जाता है इन्फैंटरी डे: पाकिस्तान सेना ने 22 अक्टूबर 1947 को जम्मू कश्मीर पर कबायलियों की आड़ में हमला बोल दिया था। ऐसे हालात में कश्मीर को पाकिस्तान के हमले बचाने के लिए 27 अक्टूबर को भारतीय सेना की इन्फैंटरी की 1 सिख रेजीमेंट ने श्रीनगर में कदम रखा था। कश्मीर पहुंचते ही सेना ने दुश्मन के हमले को नाकाम बनाने के लिए मोर्चा संभाल लिया था। इस दिन को इन्फैंटरी डे के रूप में मनाया जाता था।

देश के लिए मर-मिटने की प्रेरणा देती है जवानों की शहादत: वर्ष 1947 के बाद से जम्मू-कश्मीर में सेना द्वारा कुर्बानियां देने का सिलसिला लगातार जारी है। ऐसे में मंगलवार को इन्फैंटरी दिवस पर वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध, वर्ष 1965, 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों के साथ ऑपरेशन मेघदूत, आपरेशन रक्षक, आपरेशन विजय व आपरेशन पराक्रम के दौरान के दौरान शहीद हुए सेना के अधिकारियों व जवानों को याद कर उनसे प्रेरणा ली गई। लद्दाख में इस समय चीन से लोहा लेने को तैयार उत्तरी कमान की फारेवर इन ऑपरेशन कोर ने लेह में कोर मुख्यालय में शहीदों को श्रद्धांजलि दी। काेर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन ने शहीदाें को पुष्प चक्र अर्पित किए।  

भारतीय सेना की असाधारण बहादुरी का प्रतीक है लद्दाख: केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख भारतीय सेना की असाधारण बहादुरी का प्रतीक है। सेना लद्दाख में दुश्मन के साथ निष्ठुर मौसम से जंग लड़ रही है। चीन, पाकिस्तान के खिलाफ लद्दाख में लड़ी गई लड़ाईयों के लिए भारतीय सेना के रणबांकुरों को आज तक दिए गए 22 परमवीर चक्रों में से 7 परमवीर चक्रों समेत सैकड़ों वीरता पदकों से नवाजा जा चुका है। लद्दाख में लड़ते हुए परमवीर चक्र जीतने वाले 7 शूरवीरों में से एक जम्मू के कैप्टन बाना सिंह भी हैं। आज भी भारतीय सेना के अधिकारी व जवान पूर्वी लद्दाख में चीन से सटी वास्तिवक नियंत्रण रेखा पर दुर्गम हालात में दुश्मन का सामना करने के लिए हर समय तैयार बैठे हैं।

वहीं विश्व का सबसे उंचे युद्ध स्थल सियाचिन ग्लेशियर भारतीय सेना के बुलंद हौंसले का प्रतीक है। सियाचिन ग्लेशियर में भारतीय सैनिक 21 हजार फीट की ऊंचाई पर खून जमा देने वाले शून्य से साठ डिग्री नीचे तक के तापमान में सरहद की रक्षा में डटे हैं। भारतीय सेना ने 13 अप्रैल 1984 में सियाचिन में ऑपरेशन मेघदूत शुरू कर पाकिस्तान के भारतीय क्षेत्र पर कब्जा करने का अभियान छेड़ा था। युद्ध में भारतीय सेना के 36 अधिकारियों और जवानों ने जान देकर पाक से भारतीय इलाके खाली करवाए थे, जबकि पाकिस्तान के 200 सैनिक मारे गए। आज भारत के कब्जे वाले साल्टारो रिज के पश्चिम में 3000 फीट नीचे पाकिस्तान घात लगाए बैठा है तो चीन पूर्वी लद्दाख में।


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