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बातचीत की प्रक्रिया आगे बढ़ाने में नाकाम रहीं पूर्व सरकारें

राज्य ब्यूरो, जम्मू : मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भारत-पाकिस्तान में बातचीत की प्रक्रिया सिरे पर न च

By JagranEdited By: Published: Tue, 30 Jan 2018 02:07 AM (IST)Updated: Tue, 30 Jan 2018 02:07 AM (IST)
बातचीत की प्रक्रिया आगे बढ़ाने में नाकाम रहीं पूर्व सरकारें
बातचीत की प्रक्रिया आगे बढ़ाने में नाकाम रहीं पूर्व सरकारें

राज्य ब्यूरो, जम्मू : मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भारत-पाकिस्तान में बातचीत की प्रक्रिया सिरे पर न चढ़ने के लिए पूर्व केंद्र व राज्य सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि हम हाथ पर हाथ धरे नहीं रह सकते हैं। उनके निशाने पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व पूर्व नेकां सरकार थी। बातचीत विफल होने का कारण यह नहीं है कि नए सिरे से प्रयास न किए जाएं। उन्होंने कहा कि राज्य के अंदर व भारत तथा पाकिस्तान के बीच बातचीत के अलावा कोई विकल्प नहीं है। समय की जरूरत है कि हर स्तर पर बातचीत की जाए ताकि मसलों का समाधान हो सके। जम्मू व कश्मीर के बीच तनाव का सबसे अधिक असर जम्मू कश्मीर पर पड़ता है।

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शोपियां में दो युवकों की मौत के मुद्दे पर राज्य विधानसभा में स्थगन प्रस्ताव पर बहस का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने के लिए बस में लाहौर गए। उस समय सात ¨हदुओं को मारा गया था ताकि बातचीत को पटरी से उतारा जाए। उसके बाद कारगिल युद्ध हो गया। दोनों देशों की सेना सीमा पर चली गई। वाजपेयी ने उस माहौल को संभाला। तब उस समय के मुख्यमंत्री ने कहा था कि यह धोती वाले क्या करेंगे, बिना गोली चलाए वापस आ गए। इतना ही नहीं संसद हमले के बाद उस पूर्व मुख्यमंत्री ने यह भी कहा था कि गुलाम कश्मीर पर बम गिराओ, मसलों का समाधान हो जाएगा। जम्मू कश्मीर की बदकिस्मती है कि दोनों देशों के बीच तनाव का असर यहां के लोगों को सहना पड़ता है। फिर आगरा में बातचीत की कोशिशें हुई लेकिन सिरे नहीं चढ़ी। संसद पर हमला हो गया। हम बार बार कह चुके हैं कि मसलों का समाधान बातचीत से ही होगा। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तमन्ना थी कि वह पाकिस्तान में अपने गांव जाए लेकिन नहीं जा पाए। पांच वर्किंग गु्रप बनाए गए जिसमें रिपोर्ट में हर चीज की दवा थी लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि दस साल में हम पीछे पीछे ही चलते रहे। रिपोर्ट पर अमल नहीं हुए। पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल वर्ष 1996-97 में अलगाववादियों के साथ बातचीत के हक में थे। तब वह काजीगुंड में आए थे। मैं कांग्रेस की विधायक थी। किसी का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि तब राज्य के मुख्यमंत्री ने कहा था कि अगर बातचीत की गई तो वह इसका विरोध करेंगे। वह इस बात से संतुष्ट हैं कि हाउस इस समय हर समस्याओं के समाधान के लिए बातचीत की प्रक्रिया को लेकर एकजुट है।

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जम्मू में कश्मीरी सुरक्षित हैं

जम्मू में कश्मीरी सुरक्षित हैं। मैं जब देखती हूं तो जम्मू की सड़कों पर कश्मीरी नजर आते है। यहां का माहौल अच्छा है। भाजपा को जम्मू में जनादेश मिला था जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हम वर्ष 1987 जैसा माहौल नहीं बना सकते थे कि जम्मू वालों को बंदूक उठाने के लिए मजबूर करते। हमने एजेंडा ऑफ एलायंस बनाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई शुरुआत की और वह लाहौर गए। उसके बाद पठानकोट हुआ, फिर उड़ी हमला हो गया। सीमा पर तनाव में जानमाल का नुकसान हो हरा है। हमारी कोशिशें फेल हुई लेकिन हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकते। उम्मीद के साथ काम कर रहे हैं। पत्थरबाजों को माफी दी जा रही है। बच्चों के अभिभावकों को बुलाकर समझा रहे हैं ताकि बच्चों का भविष्य खराब न हो। हम कोशिश कर रहे है कि सुरक्षा बल संयम रखे।

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कार्रवाई से सेना का मनोबल नहीं गिरता

शोपियां की घटना पर अफसोस जताते हुए उन्होंने कहा कि मामले में एफआईआर दर्ज की गई है। मैने रक्षा मंत्री से बात की है। सकारात्मक रूख मिला है। मजिस्ट्रेट जांच भी हो रही है। सेना एक संस्थान के रूप में अच्छा काम कर रही है। सेना का मनोबल नहीं गिरता। सेना का मनोबल तब ही बना रहता है जब काली भेड़ की पहचान कर उसे बाहर किया जाए। अगर सेना का कोई जवान गलती करता है तो उसे सजा मिलनी चाहिए। इससे शान कम नहीं होती है। हम मामले को तर्कसंगत हल तक पहुंचाएंगे। एकीकृत मुख्यालय की बैठक में भी मैंने सुरक्षा एजेंसियों से जोर देकर कहा है कि वे संयम बनाए रखे।


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