जम्मू कश्मीर में युद्ध की भावी चुनौतियों से निपटेगा अलग थियेटर कमान
उत्तरी कमान अखनूर से पश्चिमी लद्दाख के सियाचिन तक 740 किलोमीटर नियंत्रण रेखा व पूर्वी लद्दाख में चीन से सटी करीब एक हजार किलोमीटर वास्तविक नियंत्रण रेखा की सुरक्षा संभाल रही है।
जम्मू, राज्य ब्यूरो। कूटनीतिक व सामरिक तौर पर जम्मू कश्मीर की अपनी चुनौतियां हैं। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार ऐसे में जम्मू कश्मीर में अलग से थियेटर कमान की स्थापना पाकिस्तान ही नहीं चीन की तरफ से आने वाली चुनौतियों से निपटने में अहम होगी। जम्मू कश्मीर और लद्दाख से सटे दोनों पड़ोसी देश अतीत में भी देश के लिए कई तरह की चुनौतियां पैदा करते रहे हैं।
कारगिल युद्ध के बाद से भारतीय सेना पहाड़ों पर युद्ध के लिए निरंतर तैयार हो रही है। उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में वायुसेना की भी चुनौतियां मैदानी इलाकों से बिलकुल अलग रहती हैं। थियेटर कमान में सशस्त्र सेनाओं के सभी अंगों का एकसाथ प्रशिक्षण होगा और उन्हें युद्धक्षेत्र की चुनौतियों का सामने करने में दक्ष बनाया जाएगा।
सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर अनिल गुप्ता का कहना है कि भविष्य के युद्ध आधुनिक तकनीक से लड़े जाएंगे। सशस्त्र सेनाओं के हर अंग के पास अलग तकनीक, साधन व अनुभव हैं। ऐसे में अगर तीनों सेनाएं मिलकर लड़ेंगी तो जीत की राह आसान होगी। थियेटर कमान में नियंत्रण किसी एक के पास होगा। थियेटर कमांडर के नेतृत्व में योजना बनेगी व ऑपरेशनल कमांडर उपलब्ध संसाधनों के अनुसार कार्रवाई को अंजाम देंगे।
इससे संसाधनों व मानव संसाधनों की भी बचत होगी। मौजूदा व्यवस्था में तीनों सशस्त्र सेनाएं शस्त्र भंडार से लेकर जरूरी साजो सामान का अलग-अलग भंडारण करती हैं। ब्रिगेडियर गुप्ता के अनुसार इससे संसाधनों व उपकरणों का भंडारण भी एक साथ होगा। साथ ही बेहतर संचार व्यवस्था व अन्य तकनीकी सहयोग सुनिश्चित होगा।
मेजर जनरल गोवर्धन ङ्क्षसह जम्वाल का कहना है कि इक्कीसवीं शताब्दी के युद्ध का स्वरूप बिलकुल अलग होगा। भविष्य की लड़ाइयां तकनीक के सहारे लड़ी जाएंगी। ऐसे में इनके लिए पहले से तैयारी करना जरूरी है। अलग थियेटर कमान आधुनिक वारफेयर की दिशा में एक कदम है। यह सशक्त होकर दुश्मन को नाकाम बनाने की दिशा में कार्रवाई है। दुश्मन के मंसूबों को नाकाम बनाने के लिए आवश्यक है कि तीनों सशस्त्र सेनाएं चुनौतीपूर्ण हालात में एक साथ मिलकर काम करें।
जम्मू कश्मीर क्यों है अहमः जम्मू व कश्मीर व लद्दाख की सुरक्षा का जिम्मा सेना की उत्तरी कमान के साथ पश्चिमी कमान के पास भी है। पश्चिमी कमान जम्मू के अखनूर तक 202 किलोमीटर में से 192 किलोमीटर अंतराष्ट्रीय सीमा की सुरक्षा में तैनात है। वहीं उत्तरी कमान अखनूर से पश्चिमी लद्दाख के सियाचिन तक 740 किलोमीटर नियंत्रण रेखा व पूर्वी लद्दाख में चीन से सटी करीब एक हजार किलोमीटर वास्तविक नियंत्रण रेखा की सुरक्षा संभाल रही है। इन मोर्चों पर सेना पाकिस्तान के साथ चार युद्ध लड़ चुकी है।
कारगिल में महसूस की गई थी बेहतर समन्वय की आवश्यकताः दो दशक पूर्व कारगिल युद्ध के बाद अलग थियेटर कमान की जरूरत महसूस की गई थी। युद्ध के शुरुआती दौर में सेना व वायुसेना में बेहतर समन्वय की जरूरत महसूस की गई थी। थियेटर कमान में एक कमांडर के नेतृत्व में सेना, वायुसेना और नौसेना एक इकाई के रूप में काम करते हुए दुश्मन पर त्वरित व सटीक कार्रवाई कर सकते हैं। चीन ने 2016 में थियेटर कमान व्यवस्था स्थापित कर दी थी। ऐसे में पाकिस्तान के साथ चीन की चुनौतियों से निपटने के लिए भी थियेटर कमान स्थापित करना आवश्यक हो गया था।