Jammu Kashmir: जम्मू-कश्मीर में पंजाबी को राजभाषा का दर्जा न मिलने का मुद्दा तूल पकड़ने लगा
नेशनल सिख फ्रन्ट के चेयरमैन वीरेंद्र जीत सिंह ने कहा कि अगर डोगरी कश्मीर भाषाओं को जम्मू कश्मीर की राजभाषा का दर्जा मिल सकता है तो फिर पंजाबी को क्यों नहीं।
जम्मू, राज्य ब्यूराे: जम्मू कश्मीर अधिकारिक भाषा बिल 2020 में पंजाबी भाषा को शामिल न किए जाने का मुद्दा तूल पकड़ना शुरु हो गया है। विभिन्न सिख संगठनों, जिला गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटियों ने इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन किया है और अब वे इस उपराज्यपाल के समक्ष उठाने की तैयारी में है। सिख संगठन इस मामले को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अमृतसर, पंजाब के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल व अन्य केंद्र में अन्य नेताओं से उठाएंगे। जम्मू कश्मीर में सिख समुदाय की जनसंख्या पांच लाख से अधिक है।
कश्मीर घाटी में एक सौ से अधिक गांवों में सिख आबादी है। जम्मू संभाग के जम्मू, बिश्नाह, आरएसपुरा, राजौरी, पुंछ, नौशहरा, कठुआ व अन्य इलाकों में सिख समुदाय की आबादी अच्छी खासी है। सिख समुदाय के अलावा अन्य समुदाय के लोग भी पंजाबी बोलते, पढ़ते है। आल जम्मू कश्मीर आल पार्टीज सिख कोआर्डिनेशन कमेटी के चेयरमैन जगमोहन सिंह रैना ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय को एक बार फिर से नजरअंदाज किया गया है। हम इस मामले पर चुप नहीं बैठेंगे। इसे उपराज्यपाल और केेंद्र में उठाया जाएगा। जम्मू कश्मीर गुरुद्वारा प्रबंधक बोर्ड के प्रधान टीएस वजीर ने कहा कि अल्पसंख्यक सिख समुदाय के साथ बेइंसाफी की गई है। समुदाय इस पर चुप नहीं बैठने वाला है। हम इस मुद्दे पर अपना संघर्ष तेज करेंगे। सभी मिल कर इसे जम्मू कश्मीर और केंद्र सरकार के साथ उठाने जा रहे है।
नेशनल सिख फ्रन्ट के चेयरमैन वीरेंद्र जीत सिंह ने कहा कि अगर डोगरी, कश्मीर भाषाओं को जम्मू कश्मीर की राजभाषा का दर्जा मिल सकता है तो फिर पंजाबी को क्यों नहीं। हम किसी भाषा के खिलाफ नहीं है लेकिन पंजाबी के साथ इंसाफ होना चाहिए। पंजाबी चार सौ साल से अधिक पुरानी भाषा है। साथ लगते पंजाब की अधिकारिक भाषा है। इस मुद्दे को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के समक्ष उठाया जाएगा।
आल जेएंडके पीओजेके शरणार्थी इंटेलेक्चुयल फोरम के प्रधान अमरीक सिंह और महासचिव सुरजीत सिंह की अध्यक्षता में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए हुई बैठक में सदस्यों ने पंजाबी भाषा को जम्मू कश्मीर में राजभाषा का दर्जा न दिए जाने पर कड़ा एतराज जताया गया। अमरीक सिंह ने कहा कि जम्मू कश्मीर में पंजाबी भाषा बाेलने वाले लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है। चार सौ साल से पुरानी भाषा को नजरअंदाज करना किसी भी हाल में उचित नहीं है। फोरम ने इस मुद्दे को जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी के प्रधान अल्ताफ बुखारी से उठाया है जिन्होंने इसे प्रधानमंत्री के समक्ष उठाने का आश्वासन दिया है।