जुनून हो तो कदमों से भी नापी जा सकती है दुनिया। जानिए शुभम से कैसे ?
पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने पैदल कश्मीर से कन्याकुमारी को निकले शुभम
जम्मू, अंचल सिंह। ‘यूं ही नहीं मिलती राही को मंजिल, एक जुनून सा दिल में जगाना होता है। पूछा चिड़िया से कैसे बनाया आशियाना, बोली भरनी पड़ती है उड़ान बार-बार, तिनका-तिनका उठाना होता है।’ इस शेयर को सार्थक कर रहे हैं नैनीताल, हलद्वानी के रहने वाले 26 वर्षीय शुभम धर्मसक्तू।
पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने पैदल कश्मीर से कन्याकुमारी को निकले शुभम
शुभम कश्मीर से कन्याकुमारी की पैदल यात्रा पर निकले हैं। वह विगत दिवस जम्मू पहुंचे हैं। पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने के इरादे से छोटी सी उम्र से उन्होंने अपनी यह यात्रा शुरू की। उन्होंने छह हजार किलोमीटर पैदल चलने के लिए करीब पांच महीने का समय निर्धारित किया है। इस दौरान वह देश के मुकुट कश्मीर से कन्याकुमारी तक विभिन्न स्कूलों, कालेजों में जाकर बच्चों को जागरूक भी कर रहे हैं। शुभम एक साइकिलिस्ट होने के साथ पर्यावरण प्रेमी और फोटोग्राफर भी हैं। करीब 17 साल की उम्र में उन्होंने साइकिल से यात्रा शुरू की। उनके घर में माता-पिता के अलावा एक बहन हैं जो उन्हें काफी सहयोग करते हैं। उन्हें यात्रा का जुनून है। बचपन से ही पढ़ाई के साथ घूमने और प्राकृतिक नजारों में खो जाया करते थे। कालेज पढ़ने के साथ ही उनका यह जुनून उन्हें दूसरों से अलग करता चला गया। उन्होंने वर्ष 2015 में हिमालियन रेंज की करीब 6000 किलोमीटर लंबी यात्रा साइकिल से की। जिसे उन्होंने 105 दिनों में पूरा किया। अरुणाचल प्रदेश से शुरू की इस यात्रा के दौरान वह भूटान, नेपाल, असम, मेघालय, पश्चिम बंगाल, सिक्कम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में पहुंचे थे। इस बार उन्होंने अपनी यात्रा को चुनौतीपूर्ण बनाकर पूरा करने का मन बनाया और पैदल कश्मीर से कन्याकुमारी तक निर्णय लिया। दस दिन पहले उन्होंने श्रीनगर से अपनी इस यात्रा की शुरूआत की। शुभम कहते हैं कि प्रकृति हमें हरदम कुछ न कुछ देती हैं। हमें भी उसके लिए कुछ करना चाहिए। यह मां-बाप से भी बढ़कर है। शुभम किसी होटल में नहीं ठहरते। न ही होटल, रेस्टोरेंट में खाना पसंद करते हैं। मंदिरों, सरायोंं या फिर लोगों के घरों में रहकर वह अपना संदेश जन-जन तक पहुंचा रहे हैं। वह प्लास्टिक का इस्तेमाल बिलकुल नहीं करते।
पढने लिखने के साथ यात्रा का शौक
शुभम बताते हैं कि बचपन से ही उन्हें पढ़ने-लिखने के साथ यात्रा का शौक था। वह बहुत बार घर से दूर तक पैदल चले जाते और प्राकृतिक नजारों का लुत्फ उठाते। उन्हें लगता कि वह अपनी मां की गाेद में हों। उम्र बढ़ने के साथ जुनून बढ़ता गया और करीब 10 साल पहले उन्होंने सबकुछ पीछे छोड़ इस दिशा में कदम बढ़ाए तो फिर रुके नहीं।
उत्तराखंड के जौहार वैली के रहने वाले हैं
शुभम मूलत: उतराखंड के पथौड़गढ़ जिले के जौहार वैली के रहने वाले हैं। इस गांव तक पहुंचने के लिए 120 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। इस गांव में बिजली, सड़कों समेत कोई मूलभूत सुविधा नहीं। वह बचपन से ही विभिन्न गैर सरकारी संस्थाओं से जुड़े रहे ताकि समाज सेवा करने के साथ लोगों को प्रकृति के बारे जागरूक कर सकें। वह सभी देशों में घूमने का जुनून दिल में लिए अपनी इस यात्रा को शुरूआत बता रहे हैं। शुभम का कहना है कि उन्हाेंने इस जुनून के साथ सभी देशों की यात्रा कर लोगों को पर्यावरण के बारे में जागरूक करने का संकल्प लिया है। वह जम्मू-कश्मीर को प्राकृतिक की धरोहर बताते हुए कहते हैं कि सच में कश्मीर स्वर्ग से कम नहीं है। कुदरत इस राज्य पर खूब मेहरबान है। हर किसी को कुदरत का शुक्रगुजार होते हुए प्रकृति के लिए भी अपने स्तर पर कुछ न कुछ करना चाहिए। कम से कम अपने आसपास ही सफाई रख ली जाए तो कुछ योगदान हो जाएगा। गत शुक्रवार को उन्होंने कॉरमल कान्वेंट स्कूल में बच्चों को पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हुए जागरूक किया। उन्होंने स्कूल के मैनेजर फादर शैजु चाको का आभार जताते हुए उम्मीद जताई कि वह भी इस संदेश को आगे बढ़ाएंगे।