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20 अंजान युवा हाथ कोरोना लावारिस को करते हैं सुपुर्द-ए-खाक, ये कौन हैं- कहां से आते- कहां जाते, नहीं जानते लोग

कश्मीर में कोरोना से जंग के बीच जारी है मानवता का मिशन 20 अंजान युवा हाथ में बेलचा रस्सियां और पीपीई किट पहनकर कोरोना से मारे जाने वालों को करते हैं सुपुर्द-ए-खाक

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 25 Jun 2020 09:55 AM (IST)Updated: Thu, 25 Jun 2020 09:55 AM (IST)
20 अंजान युवा हाथ कोरोना लावारिस को करते हैं सुपुर्द-ए-खाक, ये कौन हैं- कहां से आते- कहां जाते, नहीं जानते लोग
20 अंजान युवा हाथ कोरोना लावारिस को करते हैं सुपुर्द-ए-खाक, ये कौन हैं- कहां से आते- कहां जाते, नहीं जानते लोग

श्रीनगर, रजिया नूर। कोरोना संक्रमण से जारी जंग के बीच कश्मीर में 'मानवता का मिशन' जारी है। 20 अंजान युवाओं का एक दल हाथों में बेलचा, रस्सी और सैनिटाइजर का सामान लेकर बकायदा पीपीई किट पहनकर निकलता है। ये कौन लोग हैं? कहां जाते हैं? और क्या करते हैं? लोग नहीं जानते। इस दल के सदस्य चार-चार ग्रुप में बंटकर अपना मिशन पूरा करने के बाद खुद को 14 दिन के लिए होम क्वारंटाइन कर लेते हैं।

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दरअसल, यह युवा स्वेच्छा से कोरोना संक्रमण से मारे जाने वाले लोगों के जनाजे को कंधा देने से लेकर कब्र खोदने और उन्हें पूरे सम्मान और रस्मों के साथ सुपुर्द-ए-खाक करते हैं। इस दल का नेतृत्व करते हैं श्रीनगर के कमरवाड़ी इलाके के 38 वर्षीय सज्जाद अहमद खान। केवल सज्जाद के बारे में ही लोगों को पता है, अन्य साथियों की पहचान गुप्त रखी गई है।

पेशे से दुकानदार और एक ट्रेवल एजेंसी चलाने वाले सज्जाद ने कहा कि कश्मीर के लोगों ने कोरोना के साथ जीना और लड़ना तो सीख लिया है, लेकिन अभी भी उनके मन से डर नहीं जा रहा है। तभी तो परिवार और करीबी रिश्तेदार होते हुए भी कोरोना से मारे गए अधिकांश लोगों के शव लावारिसों की तरह घंटों मुर्दाखाने में पड़े रहते हैं।

एक महिला की मौत के बाद लिया फैसला :

सज्जाद ने कहा कि इस साल मार्च में जब कोरोना ने हमारी वादी को अपनी चपेट में ले लिया तो हमारे इलाके के साथ सटे बेमिना में एक महिला की कोरोना से मौत हो गई। जब महिला का शव क्षेत्र में पहुंचा तो मोहल्ले वालों ने उसे मकबरे में दफानाने से मना कर दिया। करीब दो घंटे की कोशिशों के बाद मोहल्ले वालों ने शव को एक कोने में दफाने की इजाजत दी। मोहल्ले का कोई भी आदमी उसके जनाजे में नहीं आया। इस घटना ने मुझे बहुत दुखी कर दिया। मैं रातभर सोचता रहा कि इस बीमारी से मरने वालों के साथ ऐसा बर्ताव क्यों। तब मैंने फैसला किया कि मैं इस वायरस से मरने वालों को इज्जत के साथ दफनाने की जिम्मेदारी लूंगा। मैंने अपने दो-तीन दोस्तों को अपने इरादे के बारे में बताया। उन्होंने इस काम में मेरा साथ देने का भरोसा दिया। इसके बाद हम दोस्तों ने मिलकर मेरे फेसबुक पेज जिसका नाम मैंने अथवास (हैंटशेक) रखा है, पर इसे साझा कर दिया। कुछ लोगों ने हमारे इस मिशन के साथ जुड़ने की हामी भरी और इस तरह हमारी 20 लोगों की टीम बन गई है।

फेसबुक, वाट्सएप पर लोग व प्रशासन करता है संपर्क :

सज्जाद ने कहा, 20 लोगों को मैंने पांच ग्रुप में बांट दिया है। हर ग्रुप में हम चार-चार लोग हैं। हमने फेसबुक, वाट्सएप पर अपनी टीम के फोन नंबर दे रखे हैं। किसी पॉजिटिव मरीज की मौत होने पर हमें मृतक के रिशतेदारों या फिर अस्पताल से फोन आता है। सूचना मिलते ही हमारी टीम के चार सदस्य मृतक को दफनाने के लिए पीपीई किट पहनकर निकल पड़ते हैं। खुद ही कब्र  खोदते हैं और पूरे कोविड प्रोटोकाल के तहत मृतक को सम्मान के साथ दफा देते हैं। मृतक का जनाजा भी पढ़ते हैं।

ऐसे काम करता है दल :

सज्जाद ने कहा कि अपनी टीम के लिए मैंने पीपीई किट, सैनिटाइजर के साथ कब्र  खोदने के लिए बेलचे, शव को कबर में उतारने के लिए रसिस्यां व एक फ्यूमिगेशन मशीन खरीद ली है, जो हम साथ ले जाते हैं। मृतक को दफाने के बाद हमारी टीम अपनी पीपीई किट उतारकर जला देती है। इसके बाद हम 14 दिन क्वारंटाइन होने के लिए अपने-अपने घरों का रुख करते हैं। इस बीच अगर किसी और कोविड मरीज को दफानाने की बारी आती है तो टीम का दूसरा दल तैयार रहता है।

टीम के सभी सदस्यों के नाम रखे हैं गुप्त :

सज्जाद ने कहा, मैंने अपनी टीम के सभी सदस्यों के नाम गुप्त रखे हैं, क्योंकि यहां लोगों में डर है। उन्हें लगता है कि अगर वह शव के करीब जाएंगे या उसे हाथ लगाएंगें तो वह भी वायरस का शिकार हो जाएंगे, हालांकि कोविड से मरने वालों के शवों से वायरस नहीं फैलता बल्कि यह वायरस सिर्फ एक इंसान से दूसरे इंसान में जाता है। सज्जाद ने कहा कि मुझे लोगों से काफी कुछ सुनना पड़ता है। मैं नहीं चाहता कि मेरी टीम के साथ भी लोग ऐसा बरताव करें। सज्जाद ने कहा कि हमारी टीम अभी तक इस वायरस का शिकार हुए दर्जन भर से ज्यादा लोगों को सम्मान के साथ सुपुर्द-ए-खाक कर चुकी है।


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