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भूल-भुलैया बन रहा शहर, लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी हाउस नंबरिंग प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में

कॉरपोरेटरों ने इस प्रोजेक्ट को जनरल हाउस में मंजूरी दिलाई थी। इस पर काम भी शुरू हुआ लेकिन कार्यकाल समाप्त होने तथा अधिकारियों के तबादले होने से यह ठंडे बस्ते में चला गया।

By Edited By: Published: Fri, 09 Nov 2018 06:00 AM (IST)Updated: Fri, 09 Nov 2018 01:02 PM (IST)
भूल-भुलैया बन रहा शहर, लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी हाउस नंबरिंग प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में

अंचल सिंह, जम्मू। नगर निगम के अधीनस्थ मुहल्लों में 'हाउस नंबरिंग का प्रोजेक्ट एक बार फिर सुर्खियों में आने के आसार बन गए हैं। पिछले कार्यकाल के दौरान कॉरपोरेटरों ने इस प्रोजेक्ट को जनरल हाउस में मंजूरी दिलाई थी। इस पर काम भी शुरू हुआ लेकिन कार्यकाल समाप्त होने तथा अधिकारियों के तबादले होने से यह ठंडे बस्ते में चला गया। अभी तक शहर के अधिकतर मुहल्लों में हाउस नंबर नहीं लगे हुए।

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वर्ष 2007-08 में इस प्रोजेक्ट को नगर निगम के जनरल हाउस में कॉरपोरेटरों ने मंजूरी दिलवाई थी। इस प्रोजेक्ट के लिए करीब 65 लाख रुपये निर्धारित किए गए थे। तब हर नंबर प्लेट पर करीब 350 रुपये खर्च आने थे। इस प्रोजेक्ट के शुरू होने से हर घर में नगर निगम का नंबर लगना था। हर गली के बाहर एक बोर्ड लगाकर इस हाउस नंब¨रग को दर्शाना भी था ताकि गली के बाहर पहुंचते ही पता चल जाए कि कौन-सा मकान कहां है? मुख्य चौराहों में विस्तृत गलियों की जानकारी भी देनी थी। सरकारी दस्तावेजों में यही हाउस नंबरिंग दर्ज होती और निगम के खाते में हर घर का रिकॉर्ड भी रहता।

कंप्यूटर पर बैठ कर मुहल्ले, गली और घर का पता चल जाता। इस प्रोजेक्ट के ठंडे बस्ते में जाने से सभी योजनाएं हवा हो गई हैं। कुछ वर्ष पहले इस योजना को तत्कालीन म्यूनिसिपल कमिश्नर मुबारक सिंह ने फाइलों से निकाल कर मूर्त रूप देना शुरू किया था। कागजी पुलिंदों से बाहर आते ही प्रस्ताव पर काम शुरू हुआ और इकोनॉमिक्स रिकंस्ट्रक्शन एजेंसी (ईरा) से जियोग्राफिकल इंफॉरमेशन सिस्टम (जीआइएस) मैपिंग भी करवाई है। इस सर्वे पर काम करते हुए प्रक्रिया को अंतिम चरण तक पहुंचा दिया गया। टेंडरिंग प्रक्रिया तक पहुंचने के साथ ही यह प्रोजेक्ट फिर जहां का तहां रह गया। चूंकि मुबारक सिंह ट्रांसफर हो गए। तब से प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में है।

कस्टोडियन नंबर से चल रहा काम

वर्तमान में शहर के कुछ घरों में नगर निगम और कुछ में कस्टोडियन के नंबर लगे हुए हैं। अधिकतर मुहल्लों में कोई नंब¨रग नहीं है। कुछ मुहल्लों में पुराने नंबरों के साथ लोगों ने स्वयं नंबर लगा दिया है, लेकिन रिकॉर्ड में ऐसी कोई नंब¨रग नहीं है जिससे पता चले कि किस मुहल्ले में कितने घर हैं और कौन-सा मकान कहां हैं?

यह था प्रोजेक्ट

हरेक घर में नगर निगम की ओर से जारी एल्यूमिनियम की नंबर प्लेट लगाई जानी थी जिसमें हाउस नंबर, मुहल्ला, गली व वार्ड लिखा जाना था। इसके अलावा हर गली के बाहर और गली के अंदर सभी घरों की नंबरिंग दर्शाता बोर्ड लगना था। मुहल्ले के चौराहों और चौकों में पूरे मुहल्ले की गलियों और हाउस नंबरिंग के बारे में जानकारी लिखी जानी थी।

यह होते फायदे 

  • किसी को भी मकान तलाशने के लिए भटकना नहीं पड़ता। पहले तो चौक में खड़े होकर जानकारी मिलती फिर गली के बाहर पहुंचने पर पूरा पता चलता कि मकान कहां है।
  • पत्र, कोरियर व डाक सहित अन्य चीजों को पहुंचाने वालों को नहीं होती दिक्कत।
  • नगर निगम सहित अन्य विभागों को भी होती सुविधा।
  • बिजली, पानी, फोन बिल आराम से घर पहुंचते।
  • शहर में घरों की जानकारियां जुटाने में होती सुविधा।

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