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ऊंचे पहाड़ों से मवेशियों संग मैदानों की और लौटने लगे गुज्जर बक्करवाल

जागरण संवाददाता जम्मू मौसम के मिजाज बदलते ही उच्च पहाड़ी ठंडे इलाकों से सफर करते ह

By JagranEdited By: Published: Fri, 23 Oct 2020 07:52 AM (IST)Updated: Fri, 23 Oct 2020 07:52 AM (IST)
ऊंचे पहाड़ों से मवेशियों संग मैदानों की और लौटने लगे गुज्जर बक्करवाल
ऊंचे पहाड़ों से मवेशियों संग मैदानों की और लौटने लगे गुज्जर बक्करवाल

जागरण संवाददाता, जम्मू :

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मौसम के मिजाज बदलते ही उच्च पहाड़ी ठंडे इलाकों से सफर करते हुए घुमक्कड़ गुज्जर बक्करवाल समुदाय के लोग मैदानी क्षेत्रों में पहुंचने लगे हैं। सितंबर के शुरू से ही इन लोगों ने उच्च पहाड़ी क्षेत्रों से मैदानी क्षेत्रों की ओर रुख कर लिया था। सर्दी शुरू होते ही करीब 45 दिन का सफर करते हुए यह लोग मैदानी क्षेत्रों में पहुंचते हैं और मार्च से पहाड़ी क्षेत्रों की ओर रुख करने लगते हैं। अपने मवेशियों के साथ सदा सफर में रहने वाले इस समुदाय के सभी सदस्य और उनके रिश्तेदार एक साथ पहाड़ों की ओर जाते हैं। वहां जगह-जगह चारे के हिसाब से पड़ाव डालते हुए मौसम के बदलते मिजाज के हिसाब से डेरे बदलते रहते हैं।

वर्षो से गुज्जर बकरवाल समुदाय भेड़, बकरियों, भैंसों को लेकर इसी तरह जीवन बसर करते आ रहे हैं।

ट्राइबल रिसर्च एंड कल्चरल फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. जावेद राही ने बताया कि गुज्जर समुदाय के लोग भैसों, गायों आदि को लेकर चारे के हिसाब से यहां-वहां जाते रहते हैं। बकरवाल समुदाय के लोग बकरियों को लेकर उच्च पहाड़ी क्षेत्रों हिमालयन रेंज की ओर जाते हैं। वहीं, गद्दी समुदाय के लोग भेड़ों को लेकर नीम पहाड़ी क्षेत्रों तक ही जाते हैं। भैसें, गाय आदि को लेकर गुज्जर समुदाय के लोग जब जम्मू के मैदानी क्षेत्रों में बहुत ज्यादा गर्मी होती है तभी पहाड़ों की ओर से जाते हैं। मौसम बदलते ही यह लोग मैदानी क्षेत्रों की ओर से आने लगते हैं। पहले तो इस समुदाय के लोग भी पहाड़ों में अधिकतर समय रहते थे, लेकिन अब व्यवसाय को देखते हुए मैदानी क्षेत्रों में ज्यादा समय बिताने लगे हैं। भेड़, बकरियों के लिए ठंडा मौसम अनुकूल रहता है। इस लिए बकरवाल, गद्दी समुदाय के लोग अधिकतर समय पहाड़ी क्षेत्रों में गुजारते हैं। एक ही स्थान पर रहते हैं डेरे

चौधरी अख्तर हुसैन ने बताया कि सदियों से उनका समुदाय भेड़ बकरियों, घोड़ों को लेकर गर्मियों में पहाड़ों की ओर चला जाता है। सर्दी में मवेशियों के साथ मैदानी क्षेत्रों में आ जाते हैं। अक्सर उनके डेरे हर वर्ष एक ही स्थान पर रहते हैं। काफी संघर्ष भरा जीवन है, लेकिन उनका यह पारंपरिक काम है जिसे वह छोड़ना नहीं चाहते। इस दौरान प्रशासन का पूरा सहयोग रहता है।


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