Jammu Kashmir: जनरल जोरावर सिंह...ऐसा योद्धा जिसको दुश्मन भी बोले- शेरों का राजा
हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर में राजपूत परिवार में 1786 में जन्मे जनरल जोरावर ङ्क्षसह ने अपनी बहादुरी से सैनिक से जनरल बनने का सफर पूरा किया।
जम्मू, विवेक सिंह। उन्नीसवीं शताब्दी में बर्फ से जमे तिब्बत को जम्मू कश्मीर का हिस्सा बनने वाले माउंटेन वारफेयर के कुशल रणनीतिकार जनरल जोरावर सिंह की बहादुरी की तारीफ दुश्मन भी करता है। तिब्बत के छोरतन में जनरल जोरावर सिंह की समाधि पर तिब्बती भाषा में लिखे शब्द शेरों का राजा इसका सबूत है।
डोगरा शासक महाराजा गुलाब सिंह की फौज के सबसे काबिल जनरल जोरावर सिंह ने करीब 180 साल पहले खून जमाने वाली ठंड में लद्दाख व तिब्बत को जीता था। तिब्बत जीतने के बाद वापसी के दौरान 12 दिसंबर 1841 में बर्फ में तिब्बती सैनिकों के अचानक हमले में गोली लगने से उन्होंने शहादत पाई थी। आज लद्दाख के सियाचिन व कश्मीर के कुपवाड़ा में दुर्गम हालात में भी देश की रक्षा कर रही भारतीय सेना हर साल 15 अप्रैल को जनरल जोरावर सिंह दिवस मनाकर प्रण लेती है कि सरहद की रक्षा के लिए हर चुनौती पार की जाएगी।
हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर में राजपूत परिवार में 1786 में जन्मे जनरल जोरावर ङ्क्षसह ने अपनी बहादुरी से सैनिक से जनरल बनने का सफर पूरा किया। सेना में राशन के प्रभारी जोरावर सिंह अपनी योग्यता से रियासी के किलेदार और बाद में किश्तवाड़ के गवर्नर बने। रियासी में जनरल का किला उनकी बहादुरी की याद दिलाता है। वर्ष 1821 में किश्तवाड़ का गवर्नर बनने वाले जनरल जोरावर सिंह ने वर्ष 1834 में किश्तवाड़ की सुरू नदी घाटी से होते हुए दुर्गम लद्दाख क्षेत्र में प्रवेश किया था। वर्ष 1840 तक उन्होंने लद्दाख, बाल्टिस्तान, तिब्बत पर डोगरा परचम लहरा दिया था।
तिब्बत की हर मां चाहती है जोरावर सिंह जैसा बेटा
वर्ष 1841 में जनरल जोरावर ङ्क्षसह ने पश्चिमी तिब्बत पर हमला किया था। उन्होंने तिब्बती सेना को हरा दिया व कैलाश पर्वत व मानसरोवर झील भी जम्मू कश्मीर की सीमा में आ गई। दिसंबर 1941 में वापसी के दौरान कुछ तिब्बती सैनिकों ने अचानक उन पर हमला कर दिया। इसमें वह शहीद हो गए। दुश्मन ने जोरावर सिंह की बहादुरी की कद्र करते उनकी समाधि बनाकर उस पर लिख दिया... शेरों का राजा। तिब्बत की माताएं अपने बच्चों को इस जगह ले जाकर कामना करती हैं कि उनके बच्चे भी शेर की तरह बहादुर हों।
रणनीति का अध्ययन करते हैं सेना के जवान
सेना की जम्मू कश्मीर राइफल्स जनरल जोरावर ङ्क्षसह को अपना प्रेरणास्रोत मानती है तो इन्फ्रेंट्री भी उनके पदचिह्नों पर चलकर युद्ध करने के लिए तैयार करती है। इन्फ्रेंट्री के अधिकारी बड़ी गंभीरता से जनरल जोरावर ङ्क्षसह की रणनीति के बारे में पढऩे के बाद उन जैसा बनने की कोशिश करते हैं।
सेना ने तलाशे बहादुरी के निशान
सेना ने उन इलाकों में जनरल जोरावर की बहादुरी के निशान तलाशे हैं, जहां किश्तवाड़ से छह बार लद्दाख में महान हिमालय को पार करने वाले जनरल ने छह हजार डोगरा व तीन हजार लद्दाखी सैनिकों के साथ बाल्टिस्तान और तिब्बत को जीतकर इतिहास रचा था।
असाधारण वीरता की मिसाल हैं जनरल जोरावर
डोगरा शासक महाराजा हरि ङ्क्षसह की फौज से भारतीय सेना में मेजर जनरल बनने वाले पहले अधिकारी मेजर जनरल(सेवानिवृत्त) गोवर्धन सिंह जम्वाल कहते हैं कि जनरल जोरावर ङ्क्षसह असाधारण वीरता की मिसाल हैं। उनकी बहादुरी सेना के लिए मूलमंत्र है कि अगर जीतने का जज्बा हो तो कोई भी लक्ष्य हासिल करना मुमकिन है। इसी जज्बे के साथ भारतीय सेना चीन, पाकिस्तान से सटे दुर्गम इलाकों में सीना ताने खड़ी है। उन्होंने बताया कि सेना की जम्मू कश्मीर राफल्स अपने स्थापना दिवस को जनरल जोरावर सिंह दिवस के रूप में मनाती है। जम्मू कश्मीर राइफल्स ने इस बार 13 व 14 अप्रैल को जोरावर दिवस को बड़े पैमाने पर मनाने की तैयारी की थी, लेकिन कोरोना वायरस के चलते ऐसा न हो सका।