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Jammu : गीता जयंती और मोक्षदा एकादशी 14 दिसंबर को, इस दिन क्या करना चाहिए जानें

प्राचीन शिव मंदिर बिश्नाह से महामंडलेश्वर अनूप गिरि ने बताया कि इस दिन विधिपूर्वक एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु जी का पूजन करें। भगवान श्री विष्णु जी का धूप दीप फल फूल मिठाई पंचमेवा आदि से पूजन करें। ब्राह्मण भोजन कराकर यथाशक्ति ज़रूरतमंदों की मदद करें।

By Lokesh Chandra MishraEdited By: Published: Wed, 08 Dec 2021 05:30 PM (IST)Updated: Wed, 08 Dec 2021 05:30 PM (IST)
मोक्षदा एकादशी के दिन भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।

बिश्नाह, संवाद सहयोगी : मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। इसलिए इस दिन को गीता जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इस बार मोक्षता एकादशी 14 दिसंबर को है। प्राचीन शिव मंदिर बिश्नाह से महामंडलेश्वर अनूप गिरि ने बताया कि इस दिन विधिपूर्वक एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु जी का पूजन करें। भगवान श्री विष्णु जी का धूप, दीप, फल, फूल, मिठाई, पंचमेवा आदि से पूजन करें। ब्राह्मण भोजन कराकर यथाशक्ति ज़रूरतमंदों की मदद करें।

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मोक्षदा एकादशी का व्रत रखने और दान करने से मानसिक तथा अन्य तरह के पापों की निवृत्ति होती है तथा पुण्यों की प्राप्ति होती है। मोक्षदा एकादशी के दिन मिथ्या भाषण, चुगली तथा अन्य सभी बुरे कार्यों से दूर रहना चाहिए सभी दुष्कर्मों का त्याग करना चाहिए। यह एकादशी मोह का क्षय करने वाली तथा मोक्ष देने वाली है इसलिए इसका नाम मोक्षदा एकादशी है।

श्री गीता जयंती : इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत का युद्ध प्रारंभ होने के पूर्व मोहित हुए अर्जुन को श्रीमद्भगवद गीता का उपदेश दिया था। इसलिए इस दिन गीता जयंती मनाई जाती है। श्रीमद्भगवदगीता की सुगंधित पुष्पों से पूजा करना चाहिए, पाठ करना चाहिए, आरती करना चाहिए, स्वाध्याय, मनन व चिंतन करना चाहिए। आज के दिन व्यास ऋषि की पूजन भी करना चाहिए। गीता में श्री कृष्ण ने कर्मयोग पर विशेष बल दिया है तथा आत्मा को अजर, अमर, अविनाशी बताया है। जैसे पुराने कपड़े को छोड़कर मनुष्य नया कपड़ा धारण करता है, उसी तरह से आत्मा पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है।

गीता का महत्व : मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी ही वह रमणीय पवित्र दिवस है जिस दिन संसार को गीता जैसा महान व अनुपम ग्रंथ रत्न प्राप्त हो सका। संसार की विविध भाषाओं में और अधिक से अधिक संख्या में छपने का गौरव केवल इसी पुस्तक को मिल सका, यह बात भारतीय संस्कृति के लिए बहुत महत्व की है। क्या स्वदेशी क्या विदेशी सभी विद्वान इस अनुपम ग्रंथ पर मुग्ध हैं। यह सभी के लिए समान रूप से प्रिय सिद्ध हुई है। इसमें ब्रह्म के महत्व, ज्ञान के महत्व, भक्ति और कर्मयोग को समझाया गया है। गीता का प्रारंभ और समाप्ति कर्मयोग पर ही है। हम सौभाग्यशाली हैं कि गीता जैसा अमूल्य ग्रंथ हमारे पास है। श्रीमद्भगवद गीता को भारत का धर्मशास्त्र कहा जाता है। इसमें हमें हमारे सभी प्रश्नों के उत्तर मिलते हैं। नैतिक, धार्मिक, ईश्वरीय ज्ञान, आत्मिक शांति, धार्मिक इतिहास की खोज आदि का ज्ञान हमें गीता से ही प्राप्त होता है।

धर्म की रक्षा के लिए हिंसा अधर्म नहीं : गीता में हम युद्धस्व का स्वर सुनते हैं। श्री कृष्ण धर्म को भी उसी तरह आक्रामक होते देखना चाहते थे, जिस तरह अधर्म आक्रामक होता है। अधर्म समाज को बलपूर्वक अपने शिकंजे में लाना चाहता है, अधर्म का चलना ही डर और धमकी की डगर से होता है, परंतु धर्म स्वभाव से आक्रामक नहीं हो पाता। धर्म के पक्षधर लोग भले मानुष हुआ करते हैं जो अपने जीवन में तो धर्माचरण के लिए सचेष्ट होते हैं, पर दूसरों पर दुष्टों का अत्याचार देखकर चुपचाप किनारा काट लेते हैं, सामने आकर अन्याय का प्रतिकार करने का साहस नहीं बटोर पाते हैं।

श्री कृष्ण अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित करते हैं, यदि अर्जुन युद्ध छोड़कर चला जाता तो कौरव पक्ष की विजय होती। यानी अन्याय न्याय को दबोच लेता तब लोग यही कहते सत्य की विजय नहीं होती, न्याय की जीत नहीं होती।लोगों के मन में यही धारणा होती कि अन्याय और असत्य की विजय होती है। तब समाज की स्थिति और बदतर हो जाती। इसलिए श्री कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित किया और महाभारत का युद्ध हुआ। श्री कृष्ण न्याय और धर्म के पक्षधर बने।

युद्ध में भयानक नरसंहार हुआ पर धर्म की विजय हुई। श्री कृष्ण ने बहुत प्रयत्न किए कि युद्ध टल जाए कौरवों और पांडवों में सम्मानपूर्वक समझौता हो जाए पर दुर्मित दुर्योधन किसी भी प्रकार समझौते के लिए राजी नहीं हुआ। दुर्योधन युद्ध ही चाहता था और पहले से ही युद्ध की तैयारी भी कर रहा था। गांधारी ने भी धृतराष्ट्र को बहुत समझाया था, परंतु धृतराष्ट्र ने गांधारी को जो उत्तर दिया वह भी बहुत महत्वपूर्ण है। देवी इस कुल का अंत भले ही हो जाए परंतु मैं दुर्योधन को रोक नहीं सकता। भगवान व्यास ने भी धृतराष्ट्र को समझाने का प्रयास किया।


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