पुलवामा हमले से पहले चार-पांच बार सुरक्षाबलों पर आत्मघाती हमले की थी साजिश रची गई
सुरक्षा बलों की सजगता से प्रयास सिरे नहीं चढ़े तो फिर बनी आइईडी लगाने की रूपरेखा, भतीजे की मौत का बदला लेने के लिए बौखलाया हुआ था मसूद अजहर, बाद में वाहनबम को बनाया गया हथियार
जम्मू, नवीन नवाज। Pulwama Terror Attack: जैश-ए-मोहम्मद का सरगना अजहर मसूद अपने भतीजे उस्मान हैदर की मौत का बदला लेने के लिए बौखलाया हुआ था और पुलवामा हमले से पहले भी सुरक्षाबलों पर हमले की कई बार साजिश रची गई। पहले चार से पांच बार सुरक्षा बलों के शिविर पर आत्मघाती हमले की साजिश रची गई, फिर काफिले की राह में आइईडी लगाकर विस्फोट करने का षड्यंत्र रचा गया।
सुरक्षाबलों की सजगता से सब साजिशें फेल होती रहीं तो फिर वाहनबम का षड्यंत्र रचा गया और इस वारदात को आत्मघाती आतंकी के जरिये अंजाम दिया गया। यह खुलासा गोरीपोरा हमले की जांच में जुटे अधिकारियों ने विभिन्न स्रोतों से जुटाई जा रही सुबूतों के आधार पर किया है। हालांकि आधिकारिक तौर पर इन तथ्यों की कोई अधिकारी पुष्टि नहीं कर रहा है।
गौरतलब है कि अक्टूबर 2018 के अंत में दक्षिण कश्मीर के त्राल में सुरक्षाबलों ने एक मुठभेड़ में जैश के दो आतंकियों को मार गिराया था। मारे गए आतंकियों में एक जैश सरगना अजहर मसूद का भतीजा उस्मान था। उसकी मौत के दो दिन बाद ही अजहर मसूद ने एक ऑडियो संदेश जारी कर उसकी मौत का बदला लेने की धमकी दी थी। वर्ष 2017 में अजहर का भांजा तल्हा भी पुलवामा में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारा गया था।
अजहर मसूद ने उसकी मौत की खबर के तुरंत बाद ही गाजी अब्दुल रशीद, जो अफगानिस्तान में नाटो सेनाओं के खिलाफ लड़ चुका था, कश्मीर के लिए रवाना किया था। उसके कुछ ही दिन बाद मसूद का एक भतीजा हुजैफा उर्फ उमर भी कश्मीर भेजा गया। इसके अलावा मसूद का एक अन्य भतीजा उमैर जिसे छोटा अजहर भी कहते हैं, उत्तरी कश्मीर में पहले से ही मौजूद था। वह कथित तौर पर गुलमर्ग सब सेक्टर या फिर पुंछ के रास्ते दाखिल हुआ बताया जाता है। अन्य जैश कमांडर जम्मू संभाग में अंतरराष्ट्रीय सीमा के रास्ते ही दाखिल हुए।
सूत्रों ने बताया कि शुरू में जैश सरगना ने अपने दो रिश्तेदारों की मौत का बदला लेने के लिए कश्मीर भेजे अपने खास कमांडरों के जरिये शोपियां व पुलवामा में सुरक्षाबलों पर हमले कराने का प्रयास किया। पुलवामा में जैश की तरफ से सुरक्षाबलों के शिविर पर तीन बार आत्मघाती हमले की कोशिश हुई, लेकिन एक भी हमला सिरे नहीं चढ़ा। हमले की तैयारी कर रहे उसके आतंकी अपने मंसूबे को अंजाम देने से पहले ही सुरक्षाबलों की कार्रवाई में मारे गए।
गत जनवरी में जैश ने वाहन बम का इस्तेमाल करने का फैसला किया। इस हमले को आठ से 11 फरवरी के बीच अंजाम देना था। नौ फरवरी को अफजल गुरु जबकि 11 फरवरी को मकबूल बट की बरसी थी। हमले को नौ फरवरी को अंजाम देने की पूरी योजना थी। इससे एक दिन पहले आठ फरवरी को इसकी रिहर्सल भी की गई, लेकिन उस दिन कश्मीर में हड़ताल थी। इसके अलवा हाईवे भी बंद था। हमला टल गया और उसके बाद 14 फरवरी को इस हमले को अंजाम दिया गया। बताया जाता है कि सुरक्षाबलों द्वारा जैश के हमले को लेकर गत 20 जनवरी के बाद से ही अलर्ट जारी हो रहे थे, लेकिन कोई सूचना पुख्ता नहीं थी। पहली पुख्ता सूचना फरवरी के पहले सप्ताह के दौरान मिली। उसी समय राज्य पुलिस ने सभी सुरक्षा एजेंसियों को सूचित किया था। यह अलर्ट दोहराते हुए आतंकी हमले की आशंका को लगातार तीव्र बताया जा रहा था।
उत्तरी कश्मीर की ओर भाग गए हैं सरगना
सूत्रों की मानें तो गाजी रशीद, उमर, उमैर, कामरान व इस्माइल हमले से कुछ दिन पहले तक अवंतीपोर के आसपास ही थे। पुलवामा हमले के बाद से इनमें से कुछ उत्तरी कश्मीर की तरफ गए हैं, जबकि दो जैश कमांडर अभी भी श्रीनगर या दक्षिण कश्मीर में त्राल के आसपास हैं। उन्होंने बताया कि पुलवामा हमले में लिप्त जैश कमांडरों के गुलाम कश्मीर लौटने की आशंका से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। सूत्रों ने बताया कि वीरवार को हमले के बाद से अब तक पूछताछ के लिए करीब दो दर्जन लोगों को पकड़ा गया है। इनमें से अधिकांश का संबंध प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जैश के साथ किसी न किसी रूप में है। इनसे मिल रही विभिन्न जानकारियों को आपस में जोड़ा जा रहा है।