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भारत और पाकिस्तान के बीच परंपरागत रास्ते खोले जाएं : फारूक अब्दुल्ला

डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने पीडीपी के साथ गठबंधन को सही ठहराते हुए कहा कि हमने यह गठजोड़ कुर्सी के लिए नहीं किया था।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sun, 02 Dec 2018 10:55 PM (IST)Updated: Sun, 02 Dec 2018 10:55 PM (IST)
भारत और पाकिस्तान के बीच परंपरागत रास्ते खोले जाएं : फारूक अब्दुल्ला
भारत और पाकिस्तान के बीच परंपरागत रास्ते खोले जाएं : फारूक अब्दुल्ला

 श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने रविवार को कहा कि करतारपुर गलियारे को जिस भावना से खोला गया है, उसी भावना के तहत भारत व पाकिस्तान सरकार को राज्य में अंतर्राष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर स्थित सभी रास्तों को खोल देना चाहिए। दोनों मुल्कों के लोगों में जितना संवाद और दोस्ती होगी, उतने ही मसलों का हल होगा।

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रविवार को उत्तरी कश्मीर में जिला बारामुला के दीवान बाग में पहले एक सभा और उसके बाद पत्रकारों को संबोधित करते हुए डॉ. फारूक ने कहा कि मैं भारत और पाकिस्तान की हुकूमत से अपील करता हूं कि दोनों मुल्कों के बीच सभी परंपरागत रास्ते खोले जाएं। इससे सरहद के दोनों तरफ आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलने के अलावा भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ती बढ़ेगी।

सत्ता नहीं रियासत प्यारी 
डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने पीडीपी के साथ गठबंधन को सही ठहराते हुए कहा कि हमने यह गठजोड़ कुर्सी के लिए नहीं किया था। हमारे लिए रियासत जरूरी है। इसकी विशिष्ट पहचान, इसके लोगों का हक और इज्जत जरूरी है। धारा 35ए और धारा 370 पर खतरा मंडरा रहा था, इसलिए हमने पीडीपी को सरकार बनाने के लिए सहयोग देने का फैसला किया।

हम सरकार नहीं बनाना चाहते थे। नेकां कभी सत्ता की भूखी नहीं रही है। अगर होती तो मेरे पिता दो दशकों तक जेल में नहीं रहते। जगमोहन को जब राज्यपाल बनाया गया तो मैंने मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया था। हमारे लिए रियासत और इसके लोगों को मान सम्मान जरूरी है।

स्वायत्तता ही एकमात्र हल 
डॉ. फारूक ने कहा कि राज्य के लिए 1953 की पूर्व संवैधानिक स्थिति और स्वायत्तता की बहाली ही कश्मीर समस्या का एकमात्र व्यावहारिक हल है। इससे ही केंद्र व राज्य के रिश्ते मजबूत होंगे। केंद्र ने हमारे स्वायत्तता संबंधी प्रस्ताव को टाला है, रद नहीं किया है। वह इसे खारिज नहीं कर सकते क्योंकि जम्मू कश्मीर के लोगों ने यह मांग संविधान के दायरे में रहते हुए ही की है।


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