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खेत खलिहानः मूल्य संवर्धन से किसान होंगे मालामाल, बढ़ जाएगी कमाई

इन दिनों धान की फसल पर ब्राउन स्पाट बीमारी का प्रकोप बढ़ रहा है। यह एक फंगस की बीमारी है जोकि तापमान व नमी के कारण ही पनपती है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Thu, 19 Sep 2019 05:21 PM (IST)Updated: Thu, 19 Sep 2019 05:21 PM (IST)
खेत खलिहानः मूल्य संवर्धन से किसान होंगे मालामाल, बढ़ जाएगी कमाई
खेत खलिहानः मूल्य संवर्धन से किसान होंगे मालामाल, बढ़ जाएगी कमाई

जम्मू, जागरण संवाददाता। किसानों की कड़ी मेहनत के बाद कृषि उत्पाद प्राप्त होता है तो किसान इसे ऐसे ही बेच देता है। इससे किसानों को ज्यादा लाभ नहीं हो पाता। लेकिन इस उत्पाद का मूल्य संवर्धन (वेल्यू अडिशन) किया जाए तो उत्पाद के दाम और बढ़ जाएंगे और किसानों की आमदनी बढ़ जाएगी। कृषि विशेषज्ञ अमरीक सिंह ने बताया कि मूल्य संवर्धन का मतलब यह कि उत्पाद की महत्ता को और बढ़ाना कि दाम मिल सकें। जो किसान खेती के साथ साथ चार छह माल मवेशी पालते हैं, दूध का कारोबार करते हैं, मूल्य संवर्धन कर सकते हैं। यानि की महज दूध नहीं बेचना, दूध का दही बनाकर बेचे, या पनीर बनाकर बेचे तो दाम ज्यादा मिलेंगे।

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कुछ महिला किसान इससे भी ऊपर की सोच रही हैं। घर के दूध से पनीर तैयार कर कलाड़ी तैयार कर बेचती हैं। इससे उनकी कमाई बढ़ जाती है। यानि कि घर का चार पांच किलो दूध जोकि उनको डेरी से डेढ़ सौ रुपये दिलाता था, लेकिन मूल्य संवर्धन से आठ सौ रुपये तक कमाए जा सकते हैं। अगर किसान सब्जियों की खेती कर रहे हैं तो उनको जैविक सब्जियों की खेती पर आना चाहिए। क्योंकि दूसरी सब्जियों के मुकाबले जैविक सब्जियों के दाम ज्यादा मिलते हैं। वहीं आरएसपुरा के धान उत्पादक किसान जोकि महज उत्पाद प्राप्त होते ही बेच देते हैं, को नए एंगल से सोचना चाहिए। अगर वह इस पारपंरिक बासमती जोकि अपनी महक व स्वाद के लिए मशहूर है, मूल्य संवर्धन से उत्पाद के महत्व को और बढ़ा सकते हैं। अगर वे आर्गेनिक तौर पर बासमती की खेती करते हैं तो आरएसपुरा की बासमती उत्पाद की कीमत अपने आप ही बढ़ जाएगी। इससे दाम बढऩा निश्चित है। ऐसे ही अनेक तरीकों से किसान अपने उत्पाद का महत्व बढ़ा कर अच्छी कमाई कर सकती है।

ब्राउन स्पाट से दिलाएं फसल को छुटकारा

इन दिनों धान की फसल पर ब्राउन स्पाट बीमारी का प्रकोप बढ़ रहा है। यह एक फंगस की बीमारी है जोकि तापमान व नमी के कारण ही पनपती है। खासकर जब आद्रता ज्यादा हो और तापमान 30-32 डिग्री सेल्सियस में चल रहा हो तो बीमारी के पनपने की आशंका बनी रहती है। जमीन में ज्यादा नमीं से भी बामारी पनप सकती है। इस बीमारी में धान के पौधे के पत्ते पर भूरे रंग के धब्बे बन आते हैं। फिर एक समय ऐसा आता है कि धब्बों की संख्या बढ़ती जाती है और पत्ते का हरापन खत्म हो जाता है। फिर पौधा अपनी खुराक तैयार नही कर पाता। किसानों को बाद में पैदावार का नुकसान उठाना पड़ता है। इसलिए जब बीमारी के लक्षण दिखें तो सबसे पहले खेतों से जमा हुए पानी को बाहर निकाल दें। अगर यूरिया खाद फसल को देनी है तो कुछ दिनों के लिए त्याग दें। बहुज ज्यादा प्रकोप है तो प्रापीजोनाकोल 25 ईसी का छिड़काव किया जा सकता है। नहीं तो मेनकोजब 25 ग्राम एक लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव किया जा सकता है। अगर बासमती की फसल पर पत्ता लपेट के कीटों ने हमला किया हो तो मोनोक्रोटोफास दवा का छिड़काव किया जा सकता है।

कुछ जरूरी बातें

  • दुधारू जानवरों के चारे में मिनरल बढ़ाया जाए। नित्य 50 ग्राम आयोडाइज नमक दिया जाए।
  • दूध दोहने से पहले और बाद में थनों को अच्छी तरह से धोया जाए, ताकि थनेला बीमारी आने के खतरे से बचा जा सके।
  • पोल्ट्री फार्म में पोल्ट्री बर्ड को पिलाएं जाने वाले पानी में विटामिन सी मिलाएं।
  • माल मवेशी का वाड़ा साफ सुथरा रखें और हवा के आने का बंदोबस्त हो।
  • माल मवेशियों को साफ सुथरा पानी पिलाया जाए। गंदे पानी से मवेशी बीमार हो सकते हैं।
  • बाग बगीचों में अगर बारिश का पानी जमा है तो उसे बाहर निकाल दें।

अब आया सब्जियां लगाने का सीजन

बारिश का मौसम अब खत्म है और किसान सब्जियों की खेती में जुट गए हैं। अगेती सब्जियों की खेती कर किसान जल्दी ही मंडी में सब्जी पहुंचाने की फिराक में रहते हैं, लेकिन इस बार देरी तक बारिश का दौर जारी रहा, जिससे समय पर किसान सब्जियों की खेती आरंभ नही कर पाए। ऐसे में अगेती सब्जी तैयार करने वाले किसानों को कुछ नुकसान तो है। लेकिन देरी से ही सब्जियों की अच्छी खेती कर किसान अच्छा पैसा बना सकते हैं। कृषि विशेषज्ञ सागर शर्मा का कहना है कि सब्जी की खेती के लिए अच्छा रहेगा कि किसान ट्रे में पनीरी उगाएं, क्योंकि इस विधि से पौधे को जमीन में हस्तांतरित करना बहुत आसान रहता है। वहीं पौधा स्वस्थ तैयार होता है। किसान ख्याल रखें कि सब्जी की खेती के लिए इस्तेमाल होने वाला बीज प्रमाणित और रोग मुक्त होना चाहिए। बीज को अगर रोग मुक्त नही बनाया गया तो बाद में इसका नुकसान किसानों को उठाना पड़ता है। इसलिए बीज के साथ कोई समझौता न किया जाए। बीज वहीं चुनें जोकि वहां की जलवायु में पनप सकता हो। जम्मू के मैदानी इलाकों में मूली, शलगम, प्याज, फूल गोभी, गोभी बंदमटर, बींस, पालक, गाजर लहुसन आदि लगा सकते हैं। अगर जम्मू में मूली की खेती करनी है तो जापानी सफेद, मिनी बेस, पूसा चेतकी, पूसा रेशमी) किस्म का उपयोग किया जा सकता है । एक कनाल भूमि के लिए 500 ग्राम बीज की जरूरत रहेगी। अगर शलगम लगानी है तो एल-1 बीज का इस्तेमाल किया जा सकता है। एक कनाल भूमि के लिए 350 ग्राम बीज की जरूरत पड़ेगी। प्याज के लिए एन.53 बीज इस्तेमाल किया जा सकता है।


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