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घरों में इबादत और खुद की हिफाजत करते मनाई ईद

कोरोना महामारी ने ईद के जश्न में खलल डालने की कोशिश बेशक की लेकिन उत्साह में कोई कमी नहीं दिखी। सिर्फ ईद मनाने का तरीका इस बार बदला-बदला रहा। ईदगाह में सामूहिक नमाज नहीं पढ़ी गई।

By JagranEdited By: Published: Mon, 25 May 2020 05:52 AM (IST)Updated: Mon, 25 May 2020 06:17 AM (IST)
घरों में इबादत और खुद की हिफाजत करते मनाई ईद
घरों में इबादत और खुद की हिफाजत करते मनाई ईद

जागरण संवाददाता, जम्मू : कोरोना महामारी ने ईद के जश्न में खलल डालने की कोशिश बेशक की, लेकिन उत्साह में कोई कमी नहीं दिखी। सिर्फ ईद मनाने का तरीका इस बार बदला-बदला रहा। ईदगाह में सामूहिक नमाज नहीं पढ़ी गई। मुस्लिम समुदाय के लोगों ने 'घरों में इबादत और खुद की हिफाजत' के तर्ज पर त्योहार मनाया। उसके बाद फोनकॉल, वीडिया कॉल और सोशल साइट के जरिए एक-दूसरे को ईद मुबारक कहा। बाजारों में थोड़ी रौनक भी अधिक दिखी।

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शनिवार देर रात को चांद दिखने बाद से ही ईद की मुबारकबाद देने का सिलसिला शुरू हो गया था। रविवार को त्योहार के दिन किसी ईदगाह में सामूहिक नमाज नहीं पढ़ी गई। कहीं कोई मेला नहीं लगा। दावतों का दौर नहीं चला। बाजारों में भी वैसी रौनक नहीं दिखी, जैसी हर साल ईद पर दिखती रही है। किसी से किसी ने गला मिलकर मुबारकबाद नहीं दिया। शारीरिक दूरियां बनी रही, लेकिन दिली नजदीकियां बरकरार रही। कोरोना महामारी ने कई त्योहारों की तरह ईद पर भी ग्रहण लगाने का प्रयास किया, लेकिन सभी ने डटकर कोरोना को हराने के लिए ईद को सादगी से मनाया।

दरअसल, रमजान के दौरान तमाम मुस्लिम तंजीमों और उलेमा बार-बार एलान करते रहे कि ईद के दिन भी शारीरिक दूरी बनाए रखें और घरों में इबादत कर कोरोना संकट खत्म होने की दुआ करें। एलान के मुताबिक लोगों ने शारीरिक दूरी बरकरार रखते हुए खुशी-खुशी ईद मनाई। हालांकि सामान्य हालात में ईद पर एक-दूसरे के घर जाकर ईद मुबारक कहने और गले मिलने का रिवाज रहा है। बस इस बार लोगों ने अपने परिवार के साथ घर में रहना की मुनासिब समझा। बाजारों में आम दिनों के मुकाबले रौनक कुछ अधिक रही। बच्चों ने अपनी मनमर्जी की खरीदारी जरूर की। मस्जिदों के बाहर पुलिस का पहरा कोरोना महामारी से बचाव के लिए हालांकि लोगों ने खुद हिफाजत से घरों में रहकर ही त्योहार के सारे रस्म पूरे किए, फिर भी एहतियात मस्जिदों के बाहर पुलिस का पहरा रहा। पुलिस कर्मियों की तैनाती इसलिए की गई थी कि अगर कोई नियम को तोड़कर मस्जिद में नमाज पढ़ने आ जाए तो उसे रोका जा सके। लेकिन कहीं से इस तरह का कोई मामला नहीं आया।


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