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Jammu Kashmir Domicile: डोमिसाइल नीति ने पाक से आए विस्थापितों के जीवन में लाया नया सवेरा

पश्चिमी पाक से 70 साल पहले उजड़कर जम्मू कश्मीर में बसे लोगों के हक के लिए संघर्षरत लब्बा राम गांधी ने कहा कि पांच अगस्त 2019 को अंधेरा छंटा था आज तो सुबह हुई है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Fri, 03 Apr 2020 02:06 PM (IST)Updated: Fri, 03 Apr 2020 02:06 PM (IST)
Jammu Kashmir Domicile: डोमिसाइल नीति ने पाक से आए विस्थापितों के जीवन में लाया नया सवेरा

श्रीनगर, नवीन नवाज। COVID-19 के संक्रमण के बीच जम्मू कश्मीर के मन में नागरिकता और मौलिक अधिकारों को लेकर असमंजस दूर हो गया। डोमिसाइल नीति से अनुच्छेद 370 के कारण वंचित रहे लाखों परिवारों को उनका हक मिलना सुनिश्चित हो गया और सभी भारतीय मुख्यधारा में एकसार हो गए।

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पांच लाख परिवारों को बच्चों के भविष्य को संवारने के लिए उन्हें अन्य राज्यों में नौकरी के लिए भेजने की मजबूरी नहीं रही है। निवेशकों निवेश के भविष्य को लेकर आशंकित नहीं रहेंगे। साथ ही स्थानीय लोगों का संपत्ति का हक सुरक्षित रहेगा। सियासी दल नौकरियों पर बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश में हैं। जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के लागू होने के बाद जम्मू कश्मीर का अलग नागरिकता कानून समाप्त हो गया था। स्थानीय लोगों में भविष्य को लेकर चिंता पैदा हो गई थी।

वह अपनी जमीन, सामाजिक सरोकारों और रोजगार के मुद्दे पर डोमिसाइल की गारंटी चाहते थे। बंटवारे के दौरान पाकिस्तान से आए विस्थापित और बाहर से आकर बरसों से रह रहे लोग भी चाहते थे कि उनसे न्याय हो। स्थानीय लोगों के साथ साथ उन लोगों को जो यहां बरसों से बसे लोगों को भी अब जम्मू कश्मीर का स्थायी आवास प्रमाणपत्र (डोमिसाइल) की व्यवस्था की है। पश्चिमी पाक से 70 साल पहले उजड़कर जम्मू कश्मीर में बसे लोगों के हक के लिए संघर्षरत लब्बा राम गांधी ने कहा कि पांच अगस्त 2019 को अंधेरा छंटा था, आज तो सुबह हुई है। हमने हिन्दोस्तान को गले लगाया और बावजूद बरसों तक पाक नागरिक बनकर घूमते रहे। हम यहां बराबर हो गए हैं। अब हम आवंटित मकान में नहीं खुद के मकान में रहेंगे।

निवेश बढ़ेगा और अवसर भी: समाज शास्त्री राकेश कुमार ने कहा कि राज्य में आठ लाख उन परिवारों को लाभ पहुंचा है, जो यहां नागरिकता कानून के कारण सुविधाओं से वंचित थे। इस फैसले से सामाजिक आर्थिक व औद्योगिक विकास में तेजी आएगी। इन परिवारों के पास मकान नहीं है। यहां कामगार बसने के बारे में सोंचेगे। इससे आबादी में कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, अलबत्ता निवेश बढ़ेगा। रोजगार बढ़ेंगे और प्रतिस्पर्धा भी।

आने वाली पीढ़ियां सुधर जाएंगी: वाल्मिकी समाज से जुड़े रामकुमार ने कहा कि सिर्फ हमारा समुदाय ही नहीं यहां गोरखा समुदाय के लोग भी यहां की मिट्टी में रचने-बसने के बावजूद बाहरी ही थे। हमारे लिए तो साफ सफाई का ही काम था और वहां भी हमारी नौकरी नियमित नहीं होती थी। अब उम्मीद है कि हमारी आने वाली पीढ़ियां सुधर जाएंगी। स्थानीय लोगों का वर्चस्व कहीं भी कम होता नजर नहीं आ रहा है।

यह थी पहले व्यवस्था: पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के लागू होने से पहले जम्मू कश्मीर लद्दाख एक राज्य था। अनुच्छेद 370 और 35ए के कारण यहां सिर्फ उन्हीं लोगों को राज्य सरकार के अधीनस्थ नौकिरयों का अधिकार था जिनके बाप-दादा 1944 से पहले से ही यहां रह रहे थे। 


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