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अपने ही घर में बेगानी हुई डोगरी

डोगरी को उसका हक न मिलने के विरोध में कुछ पैनलिस्ट और कवियों ने अपनी रचनाएं नहीं पढ़ी।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 24 Feb 2018 02:38 PM (IST)Updated: Sat, 24 Feb 2018 02:38 PM (IST)
अपने ही घर में बेगानी हुई डोगरी

जम्मू, जागरण संवाददाता। जम्मू-कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी की ओर से आयोजित तीन दिवसीय साहित्यिक एवं सांस्कृतिक उत्सव में जम्मू में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली डोगरी और राष्ट्र भाषा हिंदी घर में ही बेगानी हो गई।डोगरी और हिंदी को उसका हक न मिलने पर डोगरी हिंदी के साहित्यकारों ने रोष व्यक्त किया।

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 कवि गोष्ठी हो या कहानी गोष्ठी, सांस्कृतिक कार्यक्रम हों या पैनल डिस्कशन हर जगह कश्मीरी को प्रमुखता

दी गई है। डोगरी को उसका हक न मिलने के विरोध में कुछ पैनलिस्ट और कवियों ने अपनी रचनाएं नहीं पढ़ी। डुग्गर संस्कृति संगम भटैड़ा के अध्यक्ष मास्टर ध्यान सिंह ने कहा कि इतने बडे़ इस सांस्कृतिक एवं साहित्यिक उत्सव में जम्मू की उपेक्षा की गई है।

भाखों का एक भी कार्यक्रम नहीं हुआ। डोगरी साहित्य की भी अनदेखी की गई है। कार्यक्रम में भागेदारी जहां बोली

जाने वाली भाषाओं के प्रतिशत के आधार पर होना चाहिए था। ऐसा नहीं हुआ। वरिष्ठ आलोचक शशांक चौधरी ने कहा कि जिस स्तर का कार्यक्रम था, उस हिसाब से आयोजन फीका रहा। परिचर्चाओं में पिछली बातों को लेकर तो एक दूसरे की पीठ खुजलाने का खूब काम हुआ लेकिन भविष्य में क्या किए जाने की जरूरत है, इसको लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखी।

वरिष्ठ नाट्य लेखक दीपक कुमार ने उत्सव पर अपनी प्रतिक्रिया कुछ जूं व्यक्त की ‘खामोश रहो, सच अच्छा, पर इसके लिए कोई और मरे तो अच्छा।’ वरिष्ठ अभिनेता जेआर सागर ने कहा कि प्रयास अच्छा है लेकिन अभी बहुत ज्यादा सुधार करने की जरूरत है। हिन्दी साहित्यकार प्रो. चंचल डोगरा ने कहा कि राष्ट्रभाषा की उपेक्षा हुई है। कार्यक्रम में कुछ ऐसी भाषाओं के कहानीकारों और कवियों को भी पढ़ने को मिला, जिनकी किसी कोई समझ नहीं आई। अगर अकादमी ने प्रयास किए होते तो लाभकारी हो सकता था। सुनील शर्मा ने कहा कि साहित्य अकादमी के इस तरह के कार्यक्रमों में दूसरी भाषाओं में अनुवादित लेख पाठकों के हाथों में होते हैं। हिन्दी, डोगरी, गोजरी, पहाड़ी पंजाबी तो जम्मू के दर्शकों की समझ आ रही थी लेकिन कश्मीरी साहित्यकार तक बाहर चले जाते रहे।

हिन्दी साहित्यकार प्रो. किरण बख्शी का भी यही कहना था कि जम्मू संभाग में बोली जाने वाली भाषाओं को प्राथमिकता मिलनी चाहिए थी। अकादमी की ओर से आयोजित तीन दिवसीय सांस्कृतिक एवं साहित्यिक उत्सव शुक्रवार को संपन्न हुआ। वरिष्ठ रंगकर्मी संजीव गुप्ता और पंकज शर्मा ने साबित कर दिया कि अकादमी का चाहे कोई भी विभाग हो प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। रीता खडियाल, बिशन दास आदि ने मन मोह लिया। 


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