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जानवरों के काटने पर न बरतें लापरवाही, करें ये उपाय

कश्मीर में छह वर्षो में तीस हजार से अधिक लोगों को कुत्तों ने काटा है। अस्पतालों में आने वाले मरीजों में 70 फीसद ऐसे होते हैं, जिन्हें कुत्तों ने बुरी तरह से काटा होता है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 28 Sep 2018 08:48 AM (IST)Updated: Fri, 28 Sep 2018 09:00 AM (IST)
जानवरों के काटने पर न बरतें लापरवाही, करें ये उपाय
जानवरों के काटने पर न बरतें लापरवाही, करें ये उपाय

जम्मू, राज्य ब्यूरो। राज्य में कुत्तों और अन्य जानवरों का आतंक बढ़ता ही जा रहा है। जम्मू कश्मीर के दोनों मेडिकल कॉलेजों सहित अन्य अस्पतालों में हर साल कुत्तों के काटने के हजारों मामले समस्या की गंभीरता को बयां कर रहे हैं।

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चिंताजनक तथ्य यह है कि जागरूकता और सुविधाओं के अभाव में कई मरीज कुत्ते या बिल्ली के काटने के बाद अस्पतालों में पहुंचने के बजाय झाड़-फूंक में विश्वास करते हैं। ऐसे लोगों में रेबीज होने की आशंका सबसे अधिक रहती है।राज्य के मेडिकल कॉलेजों से मिले आंकड़ों के अनुसार, राजकीय मेडिकल कॉलेज अस्पताल, जम्मू में चार वर्षो में 25 हजार से अधिक मामले जानवरों के काटने के आए हैं। इनमें से करीब 22 हजार मरीज सिर्फ कुत्तों के काटने के हैं। शेष मरीज अन्य जानवरों के काटने के आ रहे हैं।

इसी तरह कश्मीर में छह वर्षो में तीस हजार से अधिक लोगों को कुत्तों ने काटा है। अस्पतालों में आने वाले मरीजों में 70 फीसद ऐसे होते हैं, जिन्हें कुत्तों ने बुरी तरह से काटा होता है। इस साल छह महीने में ही मेडिकल कॉलेज जम्मू में 4011 मरीज कुत्तों के काटने के आए हैं, लेकिन डॉक्टरों को चिंता यह है कि अधिकांश पीडि़त इलाज के लिए अस्पतालों में आते ही नहीं हैं। डॉक्टरों के अनुसार आधे से भी कम लोग इलाज के लिए अस्पतालों में आते हैं।

मेडिकल कॉलेज जम्मू में कम्युनिटी मेडिसीन विभाग के एचओडी डॉ. दिनेश कुमार का कहना है कि जो भी पीडि़त चौबीस घंटे के भीतर वैक्सीन और सेरम ले लेता है, उसमें रेबीज की आशंका नहीं रहती है। कई ऐसे मामले देखने को मिले हैं जहां लोग अपना इलाज नहीं करवाते हैं। ऐसे लोगों को रेबीज हुआ है। एक बार रेबीज होने के बाद बचने की संभावना न के बराबर रहती है। ऐसे में इस रोग के प्रति जागरूकता बहुत जरूरी है। इसमें घबराने की जरूरत नहीं है। अगर लापरवाही न बरती जाए और समय पर इलाज करवाएं तो स्वस्थ रहा जा सकता है। राजकीय मेडिकल कॉलेज अस्पताल जम्मू में भी इसका इलाज उपलब्ध है।

जख्म को तुरंत साफ करें स्वास्थ्य विभाग में एपीडेमालोजिस्ट डॉ. जेपी का कहना है कि अगर आपको कुत्ता या फिर अन्य कोई जानवर काट लेता है तो अस्पताल आने के स्थान पर तुरंत साबुन से जख्म को अच्छी तरह धो लें। जख्म धोने से थूक साफ हो जाएगी। 80 फीसद इंफेक्शन दूर हो जाती है। यह सुनिश्चित बनाएं कि जख्म वाली जगह पर किसी सुई या फिर अन्य चीज का इस्तेमाल न करें। इससे इंफेक्शन का खतरा रहता है।

वैक्सीनेशन जरूरी

जख्म को धोने के बाद तुरंत अस्पताल जाएं और वैक्सीनेशन करवाएं। यह वैक्सीनेशन महंगी है, लेकिन इससे रेबीज से बचा जा सकता है। वैक्सीनेशन का एक तय शेड्यूल है। पांच बार वैक्सीनेशन होती है। इसे जीरो, तीन, सात, 14 और 28वें दिन में बांटा गया है। वैक्सीनेशन के अलावा सेरम भी दिया जाता है। यह प्रयास रहना चाहिए कि जानवर के काटने के चौबीस घंटों के दौरान सेरम दे दिया जाए। सेरम पीडि़त के वजन के अनुसार दिया जाता है। सेरम से पहले मरीज का एलर्जी टेस्ट होता है। अगर उसे एलर्जी न हो, तभी सेरम दिया जाता है। वैक्सीनेशन और सेरम के अलावा टेटनस का इंजेक्शन भी लगवाना चाहिए। इससे भी खतरा नहीं रहता है।

कभी भी हो सकता है

रेबीज डॉक्टरों के अनुसार अगर आप इलाज न करवाएं तो कभी भी रेबीज होने का खतरा रहता है। विशेष तौर पर जानवर के काटने के दस दिन से लेकर छह महीने तक सबसे अधिक खतरा रहता है। रेबीज के कई लक्षण हैं। मरीज को बुखार और कमजोरी महसूस होती है। खाना खाने और पानी पीने में भी परेशानी आती है। यह सीधा मरीज के नर्वस सिस्टम को प्रभावित करता है और इससे पैरालिसेस भी हो जाता है।

जीएमसी में उपलब्ध है इलाज

अगर किसी को भी कुत्ता या फिर अन्य कोई जानवर काटता है तो उसे घबराने की जरूरत नहीं है। इलाज जीएमसी में उपलब्ध है और इसे निशुल्क किया जाता है। बस पीडि़त को चौबीस घंटे के भीतर इलाज के लिए अस्पताल पहुंच जाना चाहिए।

--डॉ. दिनेश कुमार, एचओडी कम्यूनिटी मेडिसीन विभाग, जीएमसी

जम्मू संभाग में कुत्तों के काटने के मामले

वर्ष जानवरों के काटने के मामले कुत्तों के काटने के मामले

2015 5671 4852

2016 7312 6472

2017 8339 7076

2018 4698 4011


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