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Jammu : कर्नल राज मनावरी प्रो राम नाथ शास्त्री मेमोरियल सम्मान के लिए चयनित

डोगरी साहित्यकार कर्नल राज मनावरी को इस वर्ष के प्रो राम नाथ शास्त्री सम्मान के लिए चयनित किया गया है। उन्हें यह सम्मान उनकी पुस्तक गजलों और रुबाइयों के संंग्रह ‘हांब’ के लिए दिया जाएगा। 29 नवंबर को डोगरी संस्था जम्मू की ओर से हाेने वाले कार्यक्रम में किया जाएगा।

By VikasEdited By: Published: Sat, 21 Nov 2020 03:40 PM (IST)Updated: Sat, 21 Nov 2020 03:40 PM (IST)
Jammu : कर्नल राज मनावरी प्रो राम नाथ शास्त्री मेमोरियल सम्मान के लिए चयनित
डोगरी साहित्यकार कर्नल राज मनावरी को इस वर्ष के प्रो राम नाथ शास्त्री सम्मान के लिए चयनित किया गया है।

जम्मू, जागरण संवाददाता । डोगरी साहित्यकार कर्नल राज मनावरी को इस वर्ष के प्रो राम नाथ शास्त्री सम्मान के लिए चयनित किया गया है। उन्हें यह सम्मान उनकी पुस्तक गजलों और रुबाइयों के संंग्रह ‘हांब’ के लिए दिया जाएगा। उन्हें यह सम्मान 29 नवंबर को डोगरी संस्था जम्मू की ओर से हाेने वाले कार्यक्रम में किया जाएगा।सम्मान में 21 हजार रुपये नकद राशि एक शाल एवं प्रशसित पत्र दिया जाता है।

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इसकी जानकारी डोगरी संस्था के अध्यक्ष प्रो. ललित मगोत्रा ने दैनिक जागरण को दी।उन्होंने बताया कि यह सम्मान डोगरी की सर्वश्रेष्ठ पहली पुस्तक को दिया जाता है। कर्नल मनावरी का चयन डोगरी संस्था द्वारा गठित निर्णायक मंडल ने किया है। निर्णायक मंडल में प्रो. ललित मगोत्रा, ज्ञानेश्वर शर्मा, प्रो वीना गुप्ता, डा. निर्मल विनोद, सुशील बेगाना और प्रो. राम नाथ शास्त्री के पुत्र अजीत खजूरिया शामिल थे।यह वार्षिक पुरस्कार स्वर्गीय प्रो. नाथ शास्त्री के परिवार द्वारा स्थापित किया गया है। कर्नल राज मनावरी का पूरा नाम सुभाष चंद्र बाली है।कर्नल राज मनावरी उनका साहित्यिक उपनाम है।

दैनिक जागरण से बातचीत में कर्नल राज मनावरी ने प्रसन्नता व्यक्त की कि उन्हें इस सम्मान के लिए चयनित किया गया।वह बताते हैं कि जब वह गांव से जम्मू पढ़नेे के लिए आए थे, तो उनकी इच्छा थी कि उनकी प्रो. राम नाथ शास्त्री से मुलाकात हो।जब उनसे मुलाकात हुई तो उन्होंने मुझे अपने बच्चे की तरह समझाया। वह उन से हमेशा ऐसे मिलते जैसे अपने बच्चे से मिल रहे हों। लेकिन उनका स्वभाव इतना अच्छा था कि पता ही नही चला कि कब बच्चे से उनका मित्र बन गया। मनावरी ने बताया कि सेना में जाने से पूर्व वह उर्दू में लिखते थे लेकिन सेना में रहते हुए जब विभिन्न भाषाओं के लेखकों से मिलने का मौका मिला तो अहसास हुआ कि हमें अपनी मातृ भाषा में ही लिखना चाहिए। आज इस सम्मान की घोषणा ने उनके डोगरी में लिखने के निर्णय को सही साबित कर दिया है।


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