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सुपोषण की जंग : जम्मू-कश्मीर में बदलती जीवनशैली बच्चों को धकेल रही कुपोषण में, पांच साल तक के 16.3 फीसद बच्चों का वजन कम

जम्मू कश्मीर में बेशक देश के अन्य भागों की तुलना में कुपोषण के मामले कम हों लेकिन गंभीरता से गौर करें तो स्थिति यहां भी सामान्य नहीं है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Sun, 01 Sep 2019 10:58 AM (IST)Updated: Sun, 01 Sep 2019 10:58 AM (IST)
सुपोषण की जंग : जम्मू-कश्मीर में बदलती जीवनशैली बच्चों को धकेल रही कुपोषण में, पांच साल तक के 16.3 फीसद बच्चों का वजन कम
सुपोषण की जंग : जम्मू-कश्मीर में बदलती जीवनशैली बच्चों को धकेल रही कुपोषण में, पांच साल तक के 16.3 फीसद बच्चों का वजन कम

जम्मू, राज्य ब्यूरो । जम्मू-कश्मीर में बेशक देश के अन्य भागों की तुलना में कुपोषण के मामले कम हों, लेकिन गंभीरता से गौर करें तो स्थिति यहां भी सामान्य नहीं है। बदल रही जीवनशैली का असर बच्चों के स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले ही नहीं बल्कि समृद्ध परिवारों के बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार जम्मू कश्मीर में पांच साल की उम्र तक के 16.3 फीसद बच्चों का वजन कम है। जबकि 23.5 फीसद बच्चों को पर्याप्त आहार मिल पाता है। सरकार की ओर से स्कूलों में चल रहे कार्यक्रमों का लाभ बच्चों को नहीं मिल रहा है। राज्य में 19 वर्ष तक के बच्चों और किशोरों की संख्या 40 से 50 लाख है। इनमें कई बच्चे ऐसे हैं जोकि फास्ट फूड के कारण तो कई गरीबी के कारण कुपोषण से पीड़ित हैं।

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यासमीन और निलोफर ने किया सर्वे

कश्मीर विश्वविद्यालय के दो विद्यार्थियों यासमीन खान और निलोफर खान द्वारा किए सर्वे के अनुसार जम्मू में 14.1 फीसद और कश्मीर में 17.2 फीसद बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। सर्वे में कश्मीर में 29.2 फीसद और जम्मू में 16.2 फीसद बच्चों का वजन सामान्य से कम है।

न्यूट्रीशिनल रिहैबिलिटेशन सेंटर स्थापित किए

श्री महाराजा गुलाब सिंह अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. संजीव ढिगरा का कहना है कि बच्चों में कुपोषण की समस्या तो है। इसके लिए जम्मू में एसएमजीएस अस्पताल और श्रीनगर में जीबी पंत अस्पताल में न्यूट्रीशिनल रिहैबिलिटेशन सेंटर स्थापित किए हैं। डॉ. हरजीत राय का कहना है कि इन सेंटरों में बच्चों को खाने के अलावा सभी सुविधाएं दी जाती हैं। यह सेंटर नेशनल हेल्थ मिशन के तहत चल रहे हैं।

ऐसे रखें ख्याल

जन्म के बाद बच्चे को छह महीने के लिए मां अपना दूध पिलाए। खिचड़ी, फल और सब्जियां खिलाने से बच्चों में कुपोषण की समस्या नहीं होती। उच्च मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चों में फास्ट फूड का सेवन करना आम बात है। वे मां के दूध, फल और सब्जियां सही मात्र में नहीं लेते हैं, जिस कारण बच्चों की सेहत गिर रही है।

यह है कुपोषण

अगर बच्चे का वजन सामान्य से कम हो तो वह कुपोषण से पीड़ित होता है। अगर वजन अधिक हो तो उसे कुपोषण का शिकार कहा जाता है। कई बार बच्चों को दूध, सब्जियां व फल नहीं मिलते हैं। बच्चों में विटामिन और मिनरल्स की कमी है। अगर बच्चे में विटामिन-ए की कमी हो तो उसे नजर की समस्या होती है। साफ नहीं दिखाई देता। विटामिन डी की कमी से हड्डियां कमजोर होती हैं। विटामिन सी की कमी से मसूड़ों में खून आना शुरू हो जाता है। आयरन की कमी से खून कम होता है। राज्य में बच्चों को नेशनल हेल्थ मिशन के तहत विटामिन व आयरन फोलिक टेबलेट निशुल्क दी जाती है। यह स्कूल स्तर पर दी जाती है। बच्चों में कीड़े की समस्या को दूर करने के लिए दवाई दी जाती है। इससे बच्चों में कुपोषण की समस्या दूर होती है।


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