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कश्मीर में शारदा संस्कृति की पुनर्बहाली की शुरुआत, कुपवाड़ा में दो केंद्रों का नींव पत्थर रखा

भारत-पाकिस्तान विभाजन से पूर्व देश-विदेश से शारदा पीठ की यात्रा करने वाले श्रद्धालु किशनगंगा दरिया जिसे नीलम कहते हैं के पार एक पहाड़ी पर सदियों पुरानी शारदा पीठ में देवी शारदा के दर्शन व पूजा से पूर्व रात टीटवाल में बिताते थे।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Fri, 03 Dec 2021 07:39 AM (IST)Updated: Fri, 03 Dec 2021 07:40 AM (IST)
कश्मीर में शारदा संस्कृति की पुनर्बहाली की शुरुआत, कुपवाड़ा में दो केंद्रों का नींव पत्थर रखा
70 साल बाद हम एतिहासिक व धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण स्थल को फिर से जीवंत बना रहे हैं।

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो : कश्मीर में शारदा संस्कृति की पुनर्बहाली की शुरुआत हो गई है। उत्तरी कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर स्थित टीटवाल (कुपवाड़ा) मेें वीरवार को वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच शारदा अध्ययन केंद्र और शारदा आराधना केंद्र की स्थापना का शुभारंभ हुआ।

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केंद्रीय अल्पसंख्यक मामले मंत्रालय के अधीन वक्फ विकास समिति की अध्यक्ष और भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य डा. द्रख्शां अंद्राबी ने केंद्र का नींव पत्थर रखा। इस मौके पर शारदा यात्रा समिति के अध्यक्ष रङ्क्षवद्र पंडिता और टंगडार के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी मौजूद थे।

शारदा अध्ययन और आराधना केंद्र उसी जगह पर बनाए जा रहे हैं जहां वर्ष 1948 तक शारदा पीठ जाने वाले श्रद्धालुओं के विश्राम के लिए सदियों पुरानी धर्मशाला थी। भारत-पाकिस्तान विभाजन से पूर्व देश-विदेश से शारदा पीठ की यात्रा करने वाले श्रद्धालु किशनगंगा दरिया जिसे नीलम कहते हैं, के पार एक पहाड़ी पर सदियों पुरानी शारदा पीठ में देवी शारदा के दर्शन व पूजा से पूर्व रात टीटवाल में बिताते थे।

कश्मीरी पंडितों के अलावा देश के विभिन्न ङ्क्षहदू धार्मिक संगठन कई वर्षाें से भारत-पाकिस्तान सरकार से गुलाम कश्मीर में स्थित देवी शारदा पीठ की यात्रा को फिर से बहाल करने का आग्रह कर रहे हैं। कश्मीरी पंडित चाहते हैं कि जिस तरह से करतारपुर कारिडोर शुरू किया है, उसी तरह से शारदापीठ के लिए भी कारिडोर बने।

सनातनियों के लिए ऐतिहासिक दिन : पंडिता

शारदा यात्रा समिति के अध्यक्ष रङ्क्षवद्र पंडिता ने कि यह दिन सिर्फ कश्मीरी पंडितों के लिए ही नहीं बल्कि सभी सनातनियों के लिए ऐतिहासिक है। शारदा अध्ययन केंद्र और शारदा आराधना केंद्र की स्थापना की शुरुआत हुई है। टीटवाल में जहां हम यह केंद्र बना रहे हैं, वहां से खड़े होकर नीलम दरिया के पार गुलाम कश्मीर में पहाड़ी पर स्थित शारदा देवी के प्राचीन मंदिर के दर्शन भी कर सकते हैं। यह कश्मीर में शारदा संस्कृति की पुनर्बहाली की शुरुआत भी कहा जा सकता है। हम बरसों से प्रयासरत थे। इसके लिए जम्मू कश्मीर सरकार, भारतीय सेना और स्थानीय नागरिक समाज का भी आभारी हूं ।

महत्वपूर्ण स्थल को फिर से जीवंत बना रहे : द्रख्शां

द्रख्शां अंद्राबी ने कहा कि शारदा पीठ तो सदियों से कश्मीर की पहचान है। शारदा पीठ पौराणिक काल से ज्ञान और आध्यात्म का बड़ा केंद्र रहा है। यह सनातन धर्म का एक प्रमुख स्थल है। भारत पाक विभाजन के समय जब पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला किया था तो कश्मीर का एक हिस्सा जिसे हम गुलाम कश्मीर कहते हैं, पाकिस्तान के कब्जे में चला गया। इसके साथ ही शारदा देवी का मंदिर और पीठ गुलाम कश्मीर में चली गई। 70 साल बाद हम एतिहासिक व धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण स्थल को फिर से जीवंत बना रहे हैं। यहां एक गुरुद्वारा भी बनाया जा रहा है। 


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