Surgical Strike 2: आतंकवाद और अलगाववाद के खिलाफ अब केंद्र की निर्णायक जंग, जिहादियों समर्थकों में मची खलबली
केंद्र सरकार ने राज्य में आतंकवाद और अलगाववाद का अंतिम अध्याय लिखना शुरू कर दिया है।अलगाववादियों और जिहादियों के समर्थकों में खलबली मची है।
जम्मू , नवीन नवाज। केंद्र सरकार ने राज्य में आतंकवाद और अलगाववाद का अंतिम अध्याय लिखना शुरू कर दिया है। पाकिस्तान में जिहादी फैक्ट्रियों पर भारतीय वायुसेना के हमले और वादी में अलगाववादियों के घरों पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) की छापेमारी यही संकेत दे रही है। इससे वादी के भीतर अलगाववादियों और जिहादियों के समर्थकों में खलबली मची हुई है।
हिन्दुस्तान के खिलाफ जहर उगलने वाले कई अलगाववादियों ने कुछ दिनों से चुप्पी साध ली है और बयानबाजी में नपे तुले शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि कोई बात उन पर भारी न पड़े। गौरतलब है कि भारतीय वायुसेना ने गत मंगलवार तड़के पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा इलाके में जैश-ए-मुहम्मद के एक बड़े आतंकी कैंप को तबाह कर दिया है। इससे न सिर्फ आतंकी सरगना बल्कि पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आइएसआइ से लेकर कश्मीर में सक्रिय अलगाववादी भी सन्न रह गए हैं।
अपने आका पाकिस्तान के घर में हुई कार्रवाई से सन्न अलगाववादी खेमा कुछ समझ पाता, एनआइए की टीम सात वरिष्ठ हुर्रियत नेताओं के घर पहुंच गई। इनमें मीरवाइज मौलवी उमर फारूक, अशरफ सहराई, यासीन मलिक, जफर अकबर फतेह, नसीम गिलानी, शब्बीर शाह और मसर्रत आलम शामिल हैं। हालांकि एनआइए ने किसी को गिरफ्तार नहीं किया, लेकिन इन लोगों के घरों से जो साजो-सामान जब्त किया है, वह इन लोगों को तिहाड़ जेल पहुंचा सकता है।
गौरतलब है कि शब्बीर शाह, नईम खान और कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी के दामाद अल्ताफ फंतोश समेत एक दर्जन अलगाववादियों को एनआइए ने पहले ही डेढ़ साल से तिहाड़ जेल में बैठा रखे हैं। आज तक इन लोगों की जमानत नहीं हुई है।
पाकिस्तान में जैश के ठिकाने पर हमला और वरिष्ठ हुर्रियत नेताओं के घरों में छापेमारी से अलगाववादियों के साथ कश्मीर में आतंक के समर्थकों ने लगभग चुप्पी साध ली है। मीरवाइज मौलवी उमर फारूक जैसे नेता भी बड़े ही नपे तुले शब्दों में कह रहे हैं कि यह छापे सिर्फ कश्मीरियों की आजादी की मांग दबाने के लिए है। कोई भी अलगाववादी नेता अब खुलकर आतंकियों के समर्थन की बात नहीं करता। कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी और उनके सहयोगी मोहम्मद अशरफ सहराई ने बीते चौबीस घंटों के दौरान अपने किसी भी बयान में हिंसा को सही नहीं ठहराया। इन दोनों नेताओं के साथ मीरवाइज, जावेद मीर व बिलाल गनी लोन ने संयुक्तराष्ट्र की सिफारिशों का हवाला देते हुए कश्मीर मसले के हल पर जोर दिया है। बिलाल गनी लोन और प्रो. अब्दुल गनी बट ने आतंकी हिंसा के समर्थन में एक भी बयान नहीं दिया है।
जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के कभी डिप्टी चीफ कमांडर रहे जावेद मीर पूरी तरह शांत हो गए हैं। यासमीन रजा और फरीदा बहनजी जैसी महिला अलगाववादियों ने भी चुप्पी साध ली है। हुर्रियत की दूसरी पंक्तिमें गिने जाने वाले एक नेता ने अपना नाम न छापे जाने की शर्त पर कहा कि जिस तरह से हालात बदले हैं, उसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। इसे देखते हुए हम लोगों को भी अब अपनी रणनीति बदलनी होगी या अपना एजेंडा बदलना होगा।
फ्रेंडस ऑफ साउथ एशिया के चेयरमैन सलीम रेशी ने कहा कि कश्मीर में बीते एक सप्ताह की गतिविधियों के आधार पर कहा जाता सकता है कि यहां अब केंद्र सरकार आतंकवाद और अलगाववाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई में जुटी है। केंद्र अब ढील देने के मूड में नहीं है। कुछ लोग कह सकते हैं कि यह सब लोकसभा चुनावों के लिए हो रहा है, लेकिन मैं यह मानने को तैयार नहीं हूं। कश्मीर और कश्मीर को लेकर केंद्र की सियासत को थोड़ा बहुत मैं अच्छी तरह समझता हूं।