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असंभव को संभव कर कैप्टन बाना सिंह ने पोस्ट पर तिरंगा फहराया, वीरता की अलख जगा रहे ये परमवीर

कैप्टन बाना सिंह की वीरता की दास्तां अब कॉमिक्स पर भी बच्चों के लिए उपलब्ध है। स्कूलों की लाइब्रेरी में हजारों बच्चों ने कैप्टन की तरह बहादुर बनने के सपने संजोए हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 03 Aug 2018 09:57 AM (IST)Updated: Fri, 03 Aug 2018 10:36 AM (IST)
असंभव को संभव कर कैप्टन बाना सिंह ने पोस्ट पर तिरंगा फहराया, वीरता की अलख जगा रहे ये परमवीर
असंभव को संभव कर कैप्टन बाना सिंह ने पोस्ट पर तिरंगा फहराया, वीरता की अलख जगा रहे ये परमवीर

जम्मू, विवेक सिंह । सियाचिन में शून्य से 50 डिग्री नीचे का तापमान और बर्फीला तूफान। भारतीय चौकी पर पाक का कब्जा। परिस्थितियां बेहद मुश्किल थी, लेकिन भारतीय शूरवीरों ने अदम्य साहस दिखाकर अपनी चौकी पर कब्जा कर दुश्मनों को खदेड़ दिया।

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साल 1987 में 21 हजार 253 फीट की ऊंचाई पर हुए इस लड़ाई का नेतृत्व परमवीर चक्र विजेता कैप्टन (सेवानिवृत्त) बाना सिंह कर रहे थे। अब वह पिछले 18 वर्षो से आतंकवादग्रस्त जम्मू-कश्मीर के युवाओं में वीरता की अलख जगा रहे हैं। उनके मार्गदर्शन से सैकड़ों युवा सैनिक और अधिकारी बन चुके हैं।70 वर्षीय कैप्टन बाना सिंह साल में देश के विभिन्न हिस्सों में स्कूलों, कॉलेजों, एनडीए, आइएमए व अन्य शिक्षण संस्थानों में तीस कार्यक्रमों में हिस्सा लेकर युवाओं से रूबरू होते हैं।

कैप्टन बाना सिंह की वीरता की दास्तां अब कॉमिक्स पर भी बच्चों के लिए उपलब्ध है। देशभर के स्कूलों की लाइब्रेरी में पढ़कर हजारों बच्चों ने कैप्टन बाना सिंह की तरह बहादुर बनने के सपने संजोए हैं। जम्मू के आरएसपुरा के निवासी कैप्टन बाना सिंह का कहना है कि मैदान चाहे युद्ध का हो, या खेल का, जोश के साथ लहराए जाने वाला तिरंगा जीत की खुशी को दोगुना कर देता है।

देश की सरहदों की सुरक्षा का जिम्मा युवाओं के हवाले में है। ऐसे में मेरे जीवन का लक्ष्य है कि मैं अधिक से अधिक युवाओं को देशभक्ति का पाठ पढ़ाकर उन्हें सैनिक बनाने के लिए प्रेरित करूं। कार्यक्रमों में युवा मुझे ऐसे देखते हैं जैसे कि मैं एक सुपर हीरो हूं। मैं एक आम भारतीय हूं। उनसे मिलने वाला प्यार मेरी हिम्मत बढ़ाता है। देश ने मुझे सम्मान दिया है, मेरी भी जिम्मेदारी बनती है कि नई पीढ़ी को देशभक्ति का पाठ पढ़ाकर उनमें देश के लिए कुछ कर दिखाने का जज्बा पैदा करूं।

गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति भवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मेरी हिम्मत बढ़ाई थी। कैप्टन बाना सिंह का कहना है कि उनसे सबसे अधिक कार्यक्रम दक्षिण भारत में होते हैं। बेंगलुरू व अन्य बड़े शहरों में इंजीनियरिंग कॉलेजों, मेडिकल कॉलेजों में भी युवाओं को मैंने यही संदेश दिया है कि वे सेना में किसी भी फील्ड में योगदान देकर देश को सशक्त बना सकते हैं।

पंजाब में कार्यक्रमों में युवाओं में फौजी बनने का जुनून सिर चढ़कर बोलता है। उन्होंने बताया कि गत वर्ष मोहाली में बाल संवाद में पंजाब के विभिन्न शहरों के एक हजार बच्चों ने उनसे मिलकर जानकारी ली कि वे सेना में कैसे भर्ती हो सकते हैं। इन बच्चों में सेना में भर्ती होने संबंधी पाठन सामग्री भी बांटी गई। मैं 31 अक्टूबर 2000 को सेवानिवृत हुआ था। उसके बाद मेरी भूमिका बदल गई। अब मैं भले ही युद्ध के मैदान में ना जा पाऊं लेकिन मेरी कोशिश यही रहेगी कि मैं युवाओं में वीरता की ऐसी आग भर दूं कि सीमा पर तैनात होकर दुश्मन को मिट्टी में मिला दें।

इन स्कूली बच्चों, कॉलेजों के युवाओं में भविष्य के परमवीर, महावीर चक्र विजेता छिपे हुए हैं। देश के अन्य राज्यों के साथ जम्मू कश्मीर में बाना सिंह एक अहम भूमिका निभा रहे हैं। वह देशभक्ति को बढ़ावा देने के कार्यक्रमों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। हाल में राज्यपाल एनएन वोहरा ने भी राज्य सैनिक कल्याण बोर्ड को हिदायत दी थी कि देशभक्ति को बढ़ावा देने के लिए बाना सिंह जैसे वीरों से अधिक से अधिक स्कूली बच्चों को मिलाया जाए।

कैप्टन बाना सिंह ने असंभव को संभव कर दिखाया था कैप्टन बाना सिंह द्वारा कायद पोस्ट पर तिरंगा फहराने के साथ ही यह बाना टॉप पोस्ट हो गई। पाकिस्तान ने साजिश के तहत सियाचिन की चोटियों पर कब्जा कर लिया था। कायद पोस्ट को वापस लेने के लिए अभियान वर्ष 1987 की गर्मियों में शुरू हुई। मई 1987 में पहली कोशिश के दौरान लेफ्टिनेंट राजीव पांडे समेत 9 सैनिक शहीद हो गए थे।

दूसरी कोशिश में भी दो जवान शहीद हुए। ऐसे चुनौतीपूर्ण हालात में नायब सूबेदार बाना सिंह के नेतृत्व में सोनम पोस्ट से पांच सैनिकों ने बाना टॉप तक पहुंचने की मुहिम छेड़ी। यह करो या मरो अभियान था। हर तरफ बर्फ थी, तापमान 50 डिग्री से भी नीचे थे। यहीं नही सफर तय करने के बाद पोस्ट तक पहुंचने के लिए डेढ़ सौ मीटर बर्फ की सीधी दीवार भी चढ़नी थी।

ऐसे हालात में 23 जून 1987 को अभियान छेड़ने वाले ये वीर तीन दिन का दुर्गम सफर तय करने के बाद दुश्मन के बीच थे। रास्ते में उन्हें अपने नौ साथियों के पार्थिव शरीर भी दिखे, ऐसे में बदला लेने का जज्बा और बुलंद हो गया। सुबह चार बजे टॉप पर पहुंचते ही सैनिकों ने हमला कर दिया, हाथों हाथ लड़ाई के साथ बाना सिंह ने दुश्मन के बंकर में ग्रेनेड फेंककर दरबाजा बंद कर दिया।

सभी दुश्मनों को मार गिराया गया। बर्फीले तूफान के बीच सेना की 8 जैकलाई के नायब सुबेदार बाना सिंह ने कायद पोस्ट को दुश्मन से आजाद करवाया था। इसके बाद कैप्टन बाना सिंह ने पोस्ट पर तिरंगा फहराया। खाने के लिए कुछ नही था। ऐसे में दुश्मन के स्टोव पर चाय बनाकर जीत का जश्न मनाया।


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