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सीएजी रिपोर्ट में हुआ खुलासा, नेशनल ई-गर्वनेंस प्लान को लागू करने में विफल रहीं जम्मू-कश्मीर सरकार

सीएजी ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में वन कवर साल 2009 से लेकर 2015 के बीच 16.09 से कम होकर 15.78 फीसद रह गया है। राष्ट्रीय वन नीति 1988 के तहत 66 फीसद भुगौलिक क्षेत्र को कवर करने का लक्ष्य तय किया गया था लेकिन मात्र 24.02 फीसद ही कवर किया।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Wed, 30 Sep 2020 12:03 PM (IST)Updated: Wed, 30 Sep 2020 12:03 PM (IST)
कौशल विकास के लिए कार्य क्षमता का प्रशिक्षण कार्यक्रम भी नहीं करवाया गया।

जम्मू, राज्य ब्यूरो: सीएजी ने जम्मू कश्मीर सरकार की नेशनल ई-गर्वनेंस प्लान को लागू करने में विफल रहने पर आलोचना करते हुए कहा कि दस सालों में लोगों को स्थानीय जन सेवाओं का लाभ दिलाने का मकसद पूरा नहीं हुआ। सीएजी की गैर सार्वजनिक उपक्रमों की सामाजिक, आर्थिक, सामान्य क्षेत्रों की 31 मार्च 2017 को समाप्त हुए वित्त वर्ष की रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम (एनएपी) में कई खामियां रहीं।

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पूर्व जम्मू-कश्मीर में साल 2010 से लेकर वन विकास एजेंसी ने कोई वार्षिक रिपोर्ट तैयार नहीं की। हाल ही में संसद में पेश की गई रिपोर्ट में कहा गया कि नेशनल ई-गर्वनेंस प्लान के तहत सूचना तकनीक विभाग को छह योजनाएं सौंपी गई थी। इसके लिए 212.10 करोड़ रूपये मंजूर किए गए थे। केंद्र सरकार ने इनके लिए 60.38 करोड़ रुपये जारी किए। राज्य सरकार को 151. 72 करोड़ की शेष राशि केंद्र ने इसलिए जारी नहीं की क्योंकि राज्य का बीस फीसद केंद्र को नहीं मिला। साल 2012 से 2017 के बीच सिर्फ 41 फीसद धनराशि ही खर्च की गई। स्टेट वाइड एरिया नेटवर्क प्रोजेक्ट के तहत कार्य का लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सका क्योंकि इसके लिए प्राप्त हुए 15.25 करोड़ में 6.90 करोड़ वापिस दे दिए गए और 7.92 करोड़ रुपये अवरुद्ध हो गए।

राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम पर सीएजी ने कहा कि जम्मू कश्मीर में वन कवर साल 2009 से लेकर 2015 के बीच 16.09 से कम होकर 15.78 फीसद रह गया है। राष्ट्रीय वन नीति 1988 के तहत 66 फीसद भुगौलिक क्षेत्र को कवर करने का लक्ष्य तय किया गया था लेकिन मात्र 24.02 फीसद ही कवर किया जा सका। रिपोर्ट में कहा गया कि राज्य वन विकास एजेंसी ने 265 दिनों तक अपने पास 24.46 करोड़ रुपये रखे और 6.30 करोड़ जारी करने में भी 681 दिनों की देरी कर दी। यह धनराशि गांवों की वन कमेटियों को दी जानी थी। वार्षिक कार्य योजनाएं बनाने में देरी की गई। कौशल विकास के लिए कार्य क्षमता का प्रशिक्षण कार्यक्रम भी नहीं करवाया गया। 


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