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दोनों हाथ नहीं हैं, लेकिन हौसला दोगुना है, बिना हाथ लिख रही इतिहास

दोनों हाथ नहीं हैं, लेकिन हौसला दोगुना है। जो मन में ठान लिया, वह कर दिखाने वाली असिस्टेंट प्रोफेसर शालू गुप्ता आज समाज में एक मुकाम रखती हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 08 Aug 2018 09:44 AM (IST)Updated: Wed, 08 Aug 2018 09:44 AM (IST)
दोनों हाथ नहीं हैं, लेकिन हौसला दोगुना है, बिना हाथ लिख रही इतिहास
दोनों हाथ नहीं हैं, लेकिन हौसला दोगुना है, बिना हाथ लिख रही इतिहास

जम्मू,सतनाम सिंह। दोनों हाथ नहीं हैं, लेकिन हौसला दोगुना है। जो मन में ठान लिया, वह कर दिखाने वाली असिस्टेंट प्रोफेसर शालू गुप्ता आज समाज में एक मुकाम रखती हैं। बचपन में एक हादसे में दोनों हाथ गंवा चुकी शालू में कलम से लेकर बंदूक तक चलाने का जज्बा है।

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वह दिव्यांगों के लिए ही नहीं बल्कि सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। मौलाना आजाद मेमोरियल कॉलेज जम्मू में कंप्यूटर साइंस की असिस्टेंट प्रोफेसर शालू ने कभी हार नहीं मानी। शालू जब 12वीं कक्षा में पढ़ती थीं तब एक भयानक हादसे में उनके दोनों हाथ चले गए। वर्ष 1995 में 28 अक्टूबर को स्कूल से पढ़ाई कर घर लौटी। वह अपने घर की छत पर टीवी का एंटीना ठीक करने के लिए चढ़ी थी तो नजदीक से गुजरती हाई टेंशन वायर का करंट एंटीना में आ गया। हजारों वोल्ट के करंट की चपेट में आई शालू के दोनों हाथ जल गए।

कुछ देर बाद दोनों हाथ बिलकुल नष्ट हो चुके थे। इस घटना के बाद वह अवसाद में नहीं गई। एक वर्ष अवश्य बर्बाद हुआ, लेकिन पढ़ाई नहीं छोड़ी। शालू बताती हैं कि एक दिन उसकी मां ने बाजू पर पैन बांधा और लिखने के लिए प्रेरित किया। यह उसके जीवन को बदलने वाला मोड़ था। बिना हाथों लिखने का अभ्यास किया।

कॉलेज से बीएससी पास की। परीक्षा में कभी हेल्पर की मदद नहीं ली। बीएससी के बाद एमसीए की। एमसीए के लिए कंप्यूटर जरूरी होता है। बिना हाथों के कंप्यूटर चलाना भी सीखा। इतना ही नहीं नेट और सेट परीक्षा भी पास की। वर्ष 2012 में साइंस कॉलेज जम्मू में कांट्रेक्ट पर लेक्चरर नियुक्त हुई। नौकरी का सफर शुरू हुआ और वर्ष 2016 तक कांट्रेक्ट पर विद्यार्थियों को पढ़ाया। वर्ष 2017 में ओपन मेरिट में कंप्यूटर साइंस की असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्त हुई।

वर्ष 1998 में सर्वश्रेष्ठ दिव्यांग विद्यार्थी का पुरस्कार हासिल कर चुकी शालू ने हमेशा ही दिव्यांगों को प्रेरित किया। समाजसेवा में बढ़ चढ़कर भाग लिया। शालू खाना बना लेती हैं, मोबाइल चला लेती हैं। इनकी शादी हो चुकी है और दो बच्चे हैं। सफलतापूर्वक जीवन जी रही शालू कहती हैं कि कभी एक चीज जब खत्म हो जाती है तो दूसरे रास्ते खुल जाते हैं।

मैं भयानक घटना के बाद भी मानसिक तनाव में नहीं रही। बस ¨जदगी को जज्बे के साथ जीना सीखा। शालू ने एनसीसी कैंप में बंदूक भी चलाई। वह जम्मू शहर के जिस भी डिग्री कॉलेज में नियुक्त हुई, वहां पर जरूरतमंद विद्यार्थियों को पढ़ाया। उन्हें प्रेरणा दी कि हमें अपने जीवन को सफल बनाने के लिए कभी घबराना नहीं चाहिए। चाहे कितनी भी परेशानियां आएं, हमें पार करते हुए अपने लिए ही नहीं बल्कि समाज और देश के लिए कुछ करना चाहिए। 


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