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चार सौ आंदोलनकारियों के घर जाकर आपबीती सुनेगी भाजपा

प्रदेश भाजपा पांच से 20 अगस्त तक विभिन्न जिलों में ऐसे 53 आंदोलकारियों तक पहुंच रही है जो 67 साल पहले की आपबीती सुनाने के लिए जीवित हैं। इसके साथ ही करीब साढ़े तीन सौ आंदोलनकारियों के घरों तक पार्टी पहुंच रही है जो अब इस दुनिया में नहीं हैं।

By JagranEdited By: Published: Thu, 13 Aug 2020 08:17 AM (IST)Updated: Thu, 13 Aug 2020 08:17 AM (IST)
चार सौ आंदोलनकारियों के घर जाकर आपबीती सुनेगी भाजपा
चार सौ आंदोलनकारियों के घर जाकर आपबीती सुनेगी भाजपा

राज्य ब्यूरो, जम्मू : जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के एक साल बीतने के उपलक्ष्य में प्रदेश भाजपा प्रजा परिषद के आंदोलन में हिस्सा लेने वाले करीब चार सौ आंदोलनकारियों के घरों तक पहुंचने की मुहिम पर है।

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प्रदेश भाजपा पांच से 20 अगस्त तक विभिन्न जिलों में ऐसे 53 आंदोलकारियों तक पहुंच रही है, जो 67 साल पहले की आपबीती सुनाने के लिए जीवित हैं। इसके साथ ही करीब साढ़े तीन सौ आंदोलनकारियों के घरों तक पार्टी पहुंच रही है, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं।

वर्ष 1953 के प्रजा परिषद के आंदोलन में हिस्सा लेने वाले जम्मू वासियों को सम्मानित करने की भाजपा की मुहिम के प्रभारी व पार्टी के वरिष्ठ नेता कुलभूषण महोत्रा का कहना है कि जिला स्तर पर आंदोलनकारियों को तलाश कर उन्हें सम्मानित किया जाएगा। जिलों में यह कार्यक्रम 20 अगस्त तक जारी रहेंगे। पिछले एक सप्ताह में डेढ़ सौ से अधिक जम्मू वासियों व शहीदों के परिजनों को सम्मानित किया गया है। 15 वीरों ने तिरंगे हाथ में लेकर दी थी कुर्बानी

भाजपा के इन कार्यक्रमों के माध्यम से वर्ष 1953 के आंदोलन की यादों को ताजा किया जा रहा है। इस आंदोलन की शुरुआत वर्ष 1949 में पंडित प्रेमनाथ डोगरा की कमान में हुई थी। संपूर्ण विलय के आंदोलन को कुचलने के लिए शेख अब्दुल्ला सरकार ने प्रजा परिषद के प्रधान पंडित प्रेमनाथ डोगरा समेत 294 सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया था। जबकि 15 वीरों ने तिरंगे हाथ में लेकर अपनी कुर्बानी दी थी। श्यामा प्रसाद मुखर्जी व प्रेमनाथ डोगरा थे आंदोलन के जन नायक

इस बीच जम्मूवासी आंदोलन के लिए कमर कस रहे थे। जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी व पंडित प्रेमनाथ डोगरा इस आंदोलन के जन नायक थे। ऐसे में परमिट सिस्टम, 370 खत्म करने की मांग को लेकर हजारों जम्मूवासी सड़कों पर उतर आए थे। शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार आंदोलन से घबरा गई थी। ऐसे में पुलिस फायरिग में आंदोलन कर रहे 15 लोग शहीद हो गए और करीब दस हजार से अधिक लोगों को जेलों में बंद कर यातनाएं दी गई थी। जम्मू जिले में सात युवा हुए थे शहीद

14 दिसंबर 1952 और 30 जनवरी 1953 में जम्मू जिले के सीमांत ज्यौडि़यां में तिरंगा लेकर सत्याग्रह कर रहे लोगों पर गोलीबारी में सात युवा शहीद हुए। पहले मेला राम व उसके बाद नानक चंद, बसंत चंद, बलदेव सिंह, साई सिंह, वरयाम सिंह व त्रिलोक सिंह थे। कठुआ के हीरानगर में 11 जनवरी 1953 में पुलिस की फायरिग में क्षेत्र के भीखम सिंह व बिहारी लाल शहीद हो गए। इसके बाद राजौरी जिले के सुंदरबनी में गोलीबारी में बाबा कृष्ण दास, बाबा रमजी दास व बेली राम ने कुर्बानी दी। जम्मू संभाग के रामबन जिले में तिरंगा हाथ में लेकर प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस की गोलीबारी में शिवाजी, देवी शरण व भगवान दास ने शहादत दी।


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