Jammu: प्रकृति का अनमोल तोहफा ही नहीं डुग्गर संस्कृति का हिस्सा भी हैं बावलियां
बाबली के चारों ओर पत्थरों पर कलाकारी की गई है। देवी-देवताओं की कलाकृतियां बनी हैं। पहले बाबली पर एक पत्थर का बहुत प्यारा से नाडू नल जैसा बना होता था।
जम्मू, अंचल सिंह: देवी-देवताओं की कलाकृतियों से सुसज्जित बावलियां आज भी अपनी कहानियां खुद कह रही हैं। इनमें बहुत सी विशाल बावलियां सदियों से अपनी पहचान बनाए हुए हैं। गर्मियों में ठंडा और सर्दियों में गर्म पानी इन्हें दूसरों से भिन्न बनाए हुए है। आज जबकि हर घर में नलकों से पानी मिल रहा है, इन बावलियों की पहचान कम जरूर हुई है लेकिन आसपास के परिवार आज भी इन्हीं का पानी पीने को तरजीह देते हैं।
जम्मू संभाग में ऐसे बावलियों की कमी नहीं। ऐसी ही एक बाबली जम्मू के प्रसिद्ध शिवखौड़ी स्थल के आधार शिविर रनसू के गांव माड़ा में अपनी छठा बिखेर रही है। गांव के बुजुर्गों की मानें तो करीब डेढ़ सौ साल पहले यह बावली बनाई गई थी। करीब पांच पीढ़ियों से इस बाबली के होने की बातें सुनते आ रहे हैं। पंचायत तियोट का यह गांव काफी ऊंचाई पर स्थित थे। पिछले कुछ वर्षों में यहां जाने के लिए कच्ची सड़क तो बनी है लेकिन दस साल पहले तक यहां के लोग कई-कई किलोमीटर पैदल चलने के बाद सड़क तक पहुंचते थे। आज भी गांव के अधिकतर घरों में नलके नहीं लगे हैं। अलबत्ता गांव में एक पानी की टंकी जरूर बनी है। दो साल पहले इससे नलकों की पाइपें लगाई तो गई लेकिन पानी छोड़ने तक की नौबत ही नहीं आई। कोई अधिकारी सुध लेने नहीं पहुंचा। नतीजतन आज भी लोग इस बाबली का पानी पीकर जीवनयापन कर रहे हैं।
बाबली के चारों ओर पत्थरों पर कलाकारी की गई है। देवी-देवताओं की कलाकृतियां बनी हैं। पहले बाबली पर एक पत्थर का बहुत प्यारा से नाडू नल जैसा बना होता था। करीब बीस पहले वह टूट गया। करीब सौ फुट के दायरे में बनी इस बाबली में पिछले कुछ वर्षों से गर्मियों में पानी कम होने लगा है। सरकारी उदासीनता और कोई संरक्षण नहीं होने और मौसम के बदलाव के चलते जिंदगी देने वाली यह बाबली दयनीय होने लगी है। बाबली के बाहर नहाने धोने की व्यवस्था के साथ मवेशियों के लिए पानी का भी इस तरह से प्रबंध है कि कोई मवेशी बाबली में मुंह नहीं मार सकता। साफ-सुथरा अौर स्वच्छ जल बीमार तक नहीं होने देता।
जलशक्ति विभाग पर आज भी हावी हैं बावलियां: जल शक्ति विभाग यूं तो घर-घर पानी पहुंचाने में जी-जान से जुटा है लेकिन पहाड़ों में आज भी बावलियों का पानी लोगों की पहली पसंद है। नलकों से आने वाले पानी से लोग कपड़े धोने से लेकर अन्य काम तो करते हैं लेकिन पीने के पानी के लिए बावली को ही तरजीह देते हैं। मजबूरी में ही लोग फ्रिज से ठंडा पानी निकालते हैं। अन्यथा बावली का ठंडा पानी ही मंगवा कर पीते हैं।
हमारी पहचान हैं यह बाबली : स्थानीय निवासी विक्रम सिंह, बलदेव सिंह, मोहन लाल, पारी, शंकर सिंह आदि का कहना है कि उन्होंने बुजुर्गाें से भी यही सुना है कि सदियों से यह बाबली बनी हुई है। इससे भी बड़ी एक बाबली यहां से करीब 10 किलोमीटर दूर बाईं नाला में है। इतना ही नहीं अलया के टारा मोड, घाई, छप्पड़बाड़ी में भी ऐसी ही बाबलियां हैं लेकिन वो इनसे थोड़ी छोटी हैं। करीब पांच साल पहले तक तो हर कोई इन्हीं बाबलियों का पानी पीता था। इनका पानी पाचन क्रिया में बहुत अच्छा है। भूख खुलती है। दो दिन पानी पीने के बाद कोई भी अच्छी खासी रोटी खाने लगता है। पीने में भी स्वादिष्ट पानी लगता है। पिछले कुछ सालों में ज्यादा गर्मी होने पर इसमें पानी सूखने लगा है। उन दिनों मुश्किल हो रही है। प्रशासन गांव में नलके जरूर लगवाए ताकि गर्मियों में दिक्कत न रहे।