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देश की रक्षा करते बलिदान होने वाला पहला जांबाज आर्मी असाल्ट डाग था 'बैकर्स', युद्ध डायरी में दर्ज हैं किस्से

आपको शायद यह जानकारी नहीं होगी कि इन दोनों सेना के जांबाज श्वान से पहले भी किसी योद्धा श्वान ने अपना बलिदान दिया था। उस योद्धा श्वान की बहादुरी के किस्से सेना की युद्ध डायरी में भी दर्ज हैं।हम आपको पहले बलिदान सेना के श्वान की कहानी बताते हैं।

By Lokesh Chandra MishraEdited By: Published: Fri, 04 Nov 2022 04:58 PM (IST)Updated: Fri, 04 Nov 2022 05:20 PM (IST)
बैकर के बलिदान होेने के बाद सेना में डाग यूनिट की अहमियत और बढ़ गई।

जम्मू, डिजिटल डेस्क : आतंकियों के साथ हुए भीषण मुठभेड़ के दौरान दो बहादुर आर्मी असाल्ट डाग 'जूम' और 'एक्सल' की कहानी तो आपको याद ही होगा। सेना के इन दोनों श्वान की बहादुरी से ही न केवल कई जिंदगियां बचाई जा सकी थी, बल्कि आतंकियों के छिपे होने के सही ठिकाने का पता चला और उन्हें ढेर भी किया गया था। लेकिन आपको शायद यह जानकारी नहीं होगी कि इन दोनों सेना के जांबाज श्वान से पहले भी किसी योद्धा श्वान ने अपना बलिदान दिया था। उस योद्धा श्वान की बहादुरी के किस्से सेना की युद्ध डायरी में भी दर्ज हैं।

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बात मध्य 90 के दशक की है। तब कश्मीर में आतंकवाद चरम पर था। घाटी की हालत बेहद खराब हो चुकी थी। तब सैन्य काफिला अनंतनाग से गुजरना था। इससे पहले रोड क्लीयरेंस के लिए तीन साल के योद्धा श्वान लेब्राडोर 'बैकर' को लगाया गया। उसने कुछ ही देर में एक इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आइईडी) का पता लगा लिया। तुरंत बम निरोधक दस्ता सक्रिय हुआ, लेकिन उससे पहले धमाका हुआ और 'बैकर' ने बलिदान हो गया। ये बातें सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने समाचार एजेंसी पीटीआई-भाषा को बताई। अधिकारी ने यह जानकारी श्रीनगर स्थित 12 आर्मी डाग यूनिट (ADU) इकाई में रखी गई एक पुरानी युद्ध डायरी के हवाले से दी।

सवोच्च बलिदान देने वाला यह खोजी कुत्ता बैकर 12 आर्मी डाग यूनिट (ADU) का हिस्सा था, जिसे चिनार हंटर्स के नाम से भी जाना जाता है। यूनिट के वरिष्ठ सेना अधिकारी ने कहा कि बहादुर 'बैकर' ने अपने बलिदान से कई सैनिकों और अन्य लोगों की जान बचाई थी। बैकर को 1 आरआर द्वारा रोड क्लीयरेेंस के लिए ही तैनात किया गया था। आइईडी ब्लास्ट से वह गंभीर रूप से घायल हो गया, जिसे बचाने के तमाम प्रयास नाकाम हो गए थे। बैकर भारतीय सेना का पहला कैनाइन बलिदानी बना। यह 1994 की युद्ध डायरी में अंकित है।

तब इंटरनेट और सोशल मीडिया नहीं होने से बैकर के बलिदान को नहीं जान सका देश

बैकर के बलिदान होेने के बाद सेना में डाग यूनिट की अहमियत और बढ़ गई। यूनिट के सैन्य अधिकारी ने बताया कि कुत्ता हमारे लिए सैनिकों की तरह ही हैं। ये चार पैर वाले योद्धा कई मामलों में आतंकवाद विरोधी अभियानों में सबसे बड़ी भूमिका मेें होता है। वे आतंकवादियों का पीछा करते हैं। इसलिए उनका जीवन हमेशा जोखिम में होता है, लेकिन वे मदद करते हैं। एडीयू के 12 वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ये बहादुर कुत्ते सेना की टीम को सतर्क करते हुए कई लोगों की जान बचाते हैं। 'बैकर' की शहादत को लोग इसलिए नहीं जान सके, क्योंकि 90 के दशक में इंटरनेट और सोशल मीडिया जैसी कोई चीज नहीं थी।

प्रशस्ति पत्र प्राप्त करने वाली वाली पहली यूनिट है 12 आर्मी डाग यूनिट

अधिकारी ने कहा कि 12 आर्मी डॉग यूनिट 1996 में चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ यूनिट प्रशस्ति पत्र प्राप्त करने वाली पहली डाग यूनिट भी थी। 1990 में उठाए गए 12 एडीयू से कुत्तों, कैनाइन संचालकों या अन्य लोगों द्वारा प्राप्त कई अन्य सम्मान और पुरस्कार, यहां बादामी बाग छावनी के अंदर स्थित इकाई के परिसर में दीवार पैनलों पर प्रदर्शित या उल्लेखित हैं।

देश भर में सेना के तहत 30 से अधिक डाग यूनिट्स हैं। इनमें 20 इकाइयां उत्तरी कमान क्षेत्रों में ही हैं। आठ कश्मीर घाटी में और एक लद्दाख में स्थित हैं। इसके अलावा जम्मू क्षेत्र में अन्य इकाइयां हैं। प्रत्येक इकाई में 24 कुत्ते हैं।

मेरठ में सेना की रिमाउंट वेटरनरी कोर में दिया जाता है प्रशिक्षण

डाग यूनिट के अधिकारी ने कहा कि योद्धा कुत्तों को जन्म के बाद ही मेरठ में सेना की रिमाउंट वेटरनरी कोर (RVC) में डेढ़ साल तक प्रशिक्षित किया जाता है। फिर विभिन्न इकाइयों में उन्हें भेजा जाता है। आरवीसी में प्रजनन सुविधा है, लेकिन 'कैडोक' और 'कैन' नागरिकों से पिल्ले के रूप में खरीदे गए थे। इन डाग ब्रदर्स को क्रूर योद्धा बनने के लिए प्रशिक्षित किया गया था। कुत्ता सदियों से वफादारी का प्रतीक रहा है।

इसी आशय से संबंधित एक पोस्टर चिनार हंटर्स के मुख्य द्वार पर लगा है, जिस पर एक कुत्ता आसमान की तरफ देख रहा है, जैसे वह भगवान से प्रार्थना कर रहा हो और पोस्टर पर कुत्ते के हवाले से लिखा गया है- "प्रिय भगवान, मेरे बहादुर हैंडलर की रक्षा करें। अपनी सर्वशक्तिमान सुरक्षा प्रदान करें। कर्तव्य के समाप्त होने के बाद मेरे हैंडलर को परिवार से सुरक्षित मिलाएं। मैं अपने लिए कुछ नहीं मांगता।

13 अक्टूबर को जूम भी अनंतनाग में ही हुआ बलिदान

संयोग ही करें कि देश के लिए बलिदान होने वाला सेना का पहला श्वान बैकर ने अनंतनाग में ही बलिदान दिया था और पिछले महीने ही 13 अक्टूबर को बलिदान होने वाला आर्मी असाल्ट डाग जूम भी अनंतनाग में बलिदान हुआ। उसे मुठभेड़ के दौरान आतंकियों ने गोलियां मारीं। लेकिन इस जांबाज जूम ने अपने शरीर पर लगे बाडी कैमरे की मदद से आतंकियों के ठिकाने की जानकारी सेना के जवानों तक पहुंचा दी, जिससे कई जिंदगियां बचीं और सैन्य आपरेशन सफल रहा था। जूम 10 अक्टूबर को घायल हुआ था, लेकिन इलाज के दौरान बलिदान 13 को हुआ था। इससे पूर्व

30 जुलाई को बलिदान हुए सेना के कुत्ते को मिला था वीरता पुरस्कार

जूम से पहले इसी साल 30 जुलाई को आतंकवाद विरोधी अभियान के दौरान बारामूला के क्रीरी के वानीगाम बाला इलाके में एक्सल नाम का सेना कुत्ता बलिदान हुआ था। आठ घंटे तक चली मुठभेड़ में सुरक्षा बलों ने छिपे आतंकियों का पता लगाने के लिए एक्सल को आतंकियों की मांद मेें भेजा था। उसके ठिकाने का उसने पता तो लगा लिया, लेकिन आतंकियों की गोलियों का शिकार हो गया था। आजादी की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर भारतीय सेना के ‘एक्सल’ को मरणोपरांत वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।


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