कश्मीर में 1962 के युद्ध सेनानी के घर फरिश्ते बनकर पहुंची सेना, जवानों को देख छलक उठे आंसू
वयोवृद्ध सेनानी मरी ने कहा कि उनके पूर्व कमांडिंग आफिसर हमेशा यह कहा करते थे कि सेना कभी अपने जवान को अकेला नहीं छोड़ती। हर परिस्थिति में सेना अपने जवानों के साथ खड़ी है।
श्रीनगर, राहुल शर्मा। उत्तरी कश्मीर के रफियाबाद में रहने वाले वयोवृद्ध युद्ध सेनानी मीर वली खान की आज आंखे नम थी। लॉकडाउन के बीच आर्थिक तंगी की वजह से भूखमरी की कगार पर पहुंच गए मीर के दरवाजे पर खाकी वर्दी वाले फरिश्ते बनकर खड़े थे। मिट्टी और जंग लगी टिन से बनी कोठरी के दरवाजे पर खटखटाहट होने पर मीर ने जब दरवाजा खोला तो सेना की वर्दी पहने एक जवान ने उन्हें सैल्यूट व जय हिंद करते हुए कहा कि सेना की 32 आरआर बटालियन की तरफ से उनके लिए कुछ सामान भेजा गया है। वयोवृद्ध मीर और उनकी पत्नी ने जब दल में शामिल छह से अधिक जवानों के हाथों में राशन व घर में इस्तेमाल होने वाले अन्य जरूरी सामान को देखा तो उनकी आंखों से आंसू छलक आए।
खान ने दल का नेतृत्व कर रहे अधिकारी से उन्हीं नम आंखों व कांपते हुए स्वर में कहा कि आज उन्हें अपने पूर्व कमांडिंग आफिसर की कही बात याद आ गई। वह अकसर कहा करते थे कि सेना कभी अपने जवान को अकेला नहीं छोड़ती। हर परिस्थिति में सेना अपने जवानों के साथ खड़ी है।
खान भारत-पाकिस्तान के बीच हुई 1962 की जंग में शामिल हो चुके हैं। यही नहीं उन्होंने 14 लद्दाख स्काउट्स में रहकर 16 साल काराकोरम रेंज में तैनात रहकर देश की सेवा की है। आंखों से छलकते आंसुओं के साथ खान ने बताया कि कोरोना संक्रमण के बीच प्रशासन द्वारा जारी लॉकडाउन की वजह से उनका परिवार आर्थिक तंगी व कई परेशानियों का सामना कर रहा है। इसका कारण यह है कि वह ही एकमात्र अपने परिवारवालों के लिए जीविका का जरिया हैं। उन्हें बीस हजार रूपये पेंशन मिलती है परंतु वह भी बेटों की दवाइयों पर खर्च हो जाती है।
खान की पत्नी ने बताया कि उनके दो बेटे हैं परंतु वे दोनों ही जन्म से मानसिक रूप से ठीक नहीं है। लॉकडाउन की वजह से वे दिन-प्रतिदिन भूखमरी की कगार पर पहुंचते जा रहे थे। आज सुबह सेना के कुछ जवान रोशन व अन्य जरूरी सामान के साथ उनके घर आए तो ऐसा लगा कि अब दुखों का अंत हो गया है। उनके साथ आए सेना के अधिकारी ने कहा कि ये सामान सियालकोट सीओबी 32 आरआर यूनिट ने भेजा है। इतना कहना था कि खान व उनकी पत्नी की आंखों में आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। वयोवद्ध दंपति ने नम आंखों के साथ सेना का धन्यवाद किया।
वहीं टीम के साथ आए सेना के अधिकारी ने बताया कि मीर की दयनीय हालत को देख वह भी दुखी हो गए। उनका परिवार मिट्टी से बनी कोठरी में रह रहा है। मकान का कुछ हिस्सा गत दिनों भूस्खलन व बारिश की चपेट में आकर ढह गया। कुछ दिन पहले ही उन्हें वयोवृद्ध युद्ध सेनानी मीर के बारे में पता चला। उनसे रहा नहीं गया। बिना पल गवाएं वह 32 आरआर सियालकोट सीओबी की टीम के साथ उनके घर पहुंच गए। यूनिट की ओर से मीर को कुछ राहत राशि भी प्रदान की गई।
अधिकारी ने जाते हुए उन्हें ये विश्वास भी दिलाया कि उनके पूर्व कमांडिंग आफिसर की कही बात सच है। भविष्य में जब कभी भी उन्हें कोई परेशान हो, वह सेना से संपर्क कर सकते हैं। हालांकि अधिकारी ने कहा कि वह स्वयं भी उनकी कुशलक्षेम लेते रहेंगे। अधिकारी ने बताया कि मीर एक स्वभाविमानी पूर्व सैनिक हैं। आर्थिक तंगी की वजह से उन्होंने व उनके परिवार ने पिछले कई दिनों से भर पेट भोजन नहीं किया था।
वहीं सेना की इस कार्रवाई का जब स्थानीय लोगों को पता चला तो उन्होंने इसकी सराहना करते हुए कहा कि मानवता अभी भी जीवित है। उन्होंने कहा कि सेना की यह त्वरित कार्रवाई प्रशंसा योग्य है। उन्होंने कहा कि सेना ने जिस तरह अपने पूर्व सैनिक व उसके परिवार की मदद की है, वह उदाहरण है। उनका यह भी कहना था कि उन्होंने पूर्व सैनिक व उसके परिवार को भूखमरी से बचाया है।