देश में एक समान कानून के लिए संघर्षरत हैं अंकुर
जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी राष्ट्र विरोधी एजेंडे को हवा दे रहे हैं। वहीं राज्य में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस एजेंडे को खत्म करने की दिशा में संघर्षरत हैं।
जम्मू, रोहित जंडियाल। जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी राष्ट्र विरोधी एजेंडे को हवा दे रहे हैं। वहीं राज्य में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस एजेंडे को खत्म करने की दिशा में संघर्षरत हैं। कठुआ जिला निवासी युवा एडवोकेट अंकुर शर्मा इन्हीं में से एक हैं।
अनुच्छेद 370, 35-ए, राज्य में अल्पसंख्यक आयोग के गठन सहित कई मुद्दों पर वह सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं। कई मामलों में उन्होंने लोगों को इंसाफ भी दिलाया है जबकि कुछ मुद्दे कोर्ट के विचाराधाीन हैं। अंकुर शर्मा कठुआ जिले के दूरदराज गांव डिंगा अंब के रहने वाले हैं। इनकी प्रारंभिक शिक्षा हीरानगर और कठुआ से हुई। इसके बाद पुणे से बीटेक और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून में डिग्री करने के बाद जम्मू आ गए।
इस दौरान उन्होंने पाया कि लोगों को अपने काम करवाने के लिए दरबदर होना पड़ रहा है। यहीं से उनकी सोच में परिवर्तन आया और उन्होंने लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए संघर्ष शुरू कर दिया। आरंभ में सूचना के अधिकार (आरटीआइ) का सहारा लिया। इनकी मुख्य लड़ाई उस समय शुरू हुई जब उन्हें लगा कि जम्मू कश्मीर और देश के अन्य भागों में रहने वाले लोगों के अधिकारों में अंतर है।
एक ही देश में दो प्रकार के अधिकार हैं। इसका कारण अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35-ए है। उन्होंने 'व्ही द सिटीजन' संगठन के साथ मिलकर 35-ए हटाने के लिए जनहित याचिका दायर की। इस पर अभी भी सुनवाई चल रही है। अंकुर शर्मा का कहना है कि इस प्रावधान से भारतीय संविधान ने जो मौलिक अधिकार दिए हैं, उनका उल्लंघन होता है। यह एक ऐसा मुद्दा है जो राज्य की सियासत से भी जुड़ा है। इस पर कोर्ट का क्या रुख रहता है, इस पर भी सभी की निगाहें हैं।
बेटियों के हक के लिए भी आगे आए
राज्य में स्थायी नागरिकता प्रमाणपत्र के कारण अगर यहां की बेटियों की शादी राज्य के बाहर किसी गैर स्थायी नागरिकता प्रमाणपत्र वाले नागरिक से होती है तो उनकी नागरिकता भी चली जाती है। वह राज्य में किसी भी प्रकार की प्रापर्टी नहीं खरीद सकती। अब इसे हटाने के लिए एडवोकेट अंकुर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने जा रहे हैं। उनका कहना है कि राज्य की बेटियों के साथ यह नाइंसाफी अनुच्छेद 370 और 35-ए के कारण है।
अल्पसंख्यक आयोग के लिए लड़ी लड़ाई
अंकुर शर्मा राज्य में अल्पसंख्यकों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर जनहित याचिका से चर्चा में आए हैं। उन्होंने याचिका दायर कर पूछा है कि जम्मू-कश्मीर में कौन अल्पसंख्यक है। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें राहत भी दी। इसी साल 12 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका पर राज्य सरकार को निर्देश दिए कि राज्य सरकार राज्य अल्पसंख्यक आयोग का गठन करे।
हालांकि बावजूद इसके आयोग का गठन नहीं हुआ है। अब अंकुर शर्मा ने राज्यपाल एनएन वोहरा को पत्र लिखकर अल्पसंख्यक आयोग का गठन करने को कहा है ताकि यहां पर जो सही मायनों में अल्पसंख्यक हैं, उन्हें अधिकार मिल सकें।53 साल पुराने नियम में बदलाव राज्य में 1962 में बने पुराने नियमों के तहत ही खनिजों का खनन हो रहा था। इससे पर्यावरण को नुकसाान पहुंच रहा था।
यह जानकारी जब एडवोकेट अंकुर को मिली तो उन्होंने आरटीआइ दायर की। आरटीआइ में जब नियमों का उल्लंघन होने की जानकारी दी गई तो उन्होंने इसी को आधार बना कर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर दी। फैसला उनके हक में आया और कोर्ट ने पर्यावरण अनुकूल नियम बनाने के निर्देश दिए। इस पर राज्य सरकार ने खनन के लिए नया कानून बनाया।
53 साल बाद राज्य में खनन के लिए पर्यावरण अनुकूल नियम बने और अब खनन के लिए पर्यावरण विभाग से भी इजाजत लेनी पड़ती है।
लोगों को दिलाए उनके अधिकार
अंकुर शर्मा ने राज्य के लोगों को उनके अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने सिटीजन चार्टर पर आरटीआइ डाली। इससे पूरे प्रशासन में हलचल आई और प्रशासन ने सिटीजन चार्टर को लागू करवाया। इसके अलावा नगर निगमों में हाई मास्ट लाइट और वाटर कूलर लगवाने के लिए उन्होंने आरटीआइ का ही सहारा लिया। एडवोकेट अंकुर का कहना है कि सूचना का अधिकार कोई भी जानकारी हासिल करने के लिए सबसे बेहतर हथियार है।