World Anaesthesia Day : जम्मू-कश्मीर में कोविड-19 के मरीजों के इलाज में अहम भूमिका निभा रहे हैं एनेस्थीसिया विशेषज्ञ
इस समय जम्मू-कश्मीर में तीन सौ के करीब कोविड 19 का ऐसा मरीज है जो कि आक्सीजन के सहारे हैं। इनमें कई आइसीयू (इंटेंसिव केयर यूनिट) में भर्ती हैं। ऐसे मरीजों की जिंदगी सबसे अधिक खतरे में होती है
जम्मू, रोहित जंडियाल । देश के अन्य भागों की तरह ही जम्मू कश्मीर में भी कोविड 19 एक चुनौती बना हुआ है। सैकड़ों मरीजों की अब तक यहां जान चली गई है लेकिन एनेस्थीसिया विशेषज्ञ इन मरीजों को जिंदगी देने के लिए दिन रात एक किए हुए हैं। इन डाक्टरों की भूमिका इसीलिए भी अहम है कि यह सबसे गंभीर मरीजों के इलाज में जुटे हुए हैं। मरीजों की सर्जरी से लेकर उनकी सांसों और दिल की धड़कन पर नजर रख उन्हें सही तरीके से चलाने की जिम्मेदारी भी इन्हीं की है। उन्हें यह भी सुनिश्चित बनाना होता है कि मरीज काे कहीं दर्द तो नहीं हो रहा।
इस समय जम्मू-कश्मीर में तीन सौ के करीब कोविड 19 का ऐसा मरीज है जो कि आक्सीजन के सहारे हैं। इनमें कई आइसीयू (इंटेंसिव केयर यूनिट) में भर्ती हैं। ऐसे मरीजों की जिंदगी सबसे अधिक खतरे में होती है और इन्हीं मरीजों की 24 घंटे देखभाल करने की जिम्मेदारी एनेस्थीसिया विभाग के डाक्टरों पर है। हाई वायरल लोड सहित कई लक्षणों वाले मरीजों के साथ सीधे संपर्क में आने के कारण इनके संक्रमित होने की आशंका भी सबसे अधिक रहती है। लेकिन यह डाक्टर अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटे। जीएमसी जम्मू में विवाद भी हुए पर इससे इन डाक्टरों के मनोबल पर कोई असर नहीं पड़ा। पहले की तरह ही यह काम कर रहे हैं।
इंडियन सोसाइटी ऑफ एनेस्थिसियोलॉजिस्ट के जम्मू चैप्टर के प्रधान डा. गुरमीत सिंह का कहना है कि कोविड 19 के कारण एनेस्थीसिया विशेषज्ञों की चुनौती तो बढ़ी है। लेकिन सभी मरीजों की सेवा में दिन रात एक किए हुए हैं। उनके पास मरीज के आक्सीजन स्तर, सांसों को चलाए रखने, ब्लड प्रेशर पर नजर रखने के अलावा कई जिम्मेदारियां हैं। मरीज भी गंभीर अवस्था वाले ही आते हैं। मगर जूनियर से लेकर सीनियर डाक्टर अपनी भूमिका को सही तरीके से निभा रहे हैं। वेंटीलेटर को चलाने से लेकर मरीज की पूरी निगरानी आइसीयू में एनेस्थीसिया विशेषज्ञ ही कर रहे हैं। वहीं मेडिकल कालेज जम्मू के एनेस्थीसिया विभाग के पूर्व एचओडी डा. सत्यदेव गुप्ता का कहना है कि बहुत से लोगों को लगता है कि सर्जरी के समय मरीज को बेहोश करना ही एनेस्थीसिया विशेषज्ञों की जिम्मेदारी है लेकिन ऐसा नहीं है। बेहोश करने से लेकर होश तक लाने का काम हमारा है। कोविड 19 के मरीजों की सर्जरी करवाने में एनेस्थीसिया विशेषज्ञ पीछे नहीं रहे हैं। सरकारी अस्पतालों से लेकर निजी अस्पतालों तक में अपनी भूमिका निभा रहे हैं।
सरकार को यह प्रयास भी करने चाहिए
पिछले कुछ सप्ताह में मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल और अन्य बड़े संस्थानों में ऑक्सीजन और वेंटीलेटर की कमी के कारण लोगों को कुछ कठिनाइयों और समस्याओं का सामना करना पड़ा। सरकार ने अपनी ओर से प्रयत्न कर इन कमियों को दूर करने का प्रयास किया। जम्मू और कश्मीर में कई छोटे अस्पताल और स्वास्थ्य संस्थान हैं, जिनमें कामकाज महामारी के कारण बहुत कम हो रहा है। हर जिले में एक अस्पताल बनाकर कोरोना के रोगियों को एक ही छत में लाया जाए और जो वेंटीलेटर कई जिलों में धूल फांक रहे हैं या व्यर्थ पड़े हैं उन्हें उसी हॉस्पिटल में लाया जाए और अन्य सहायता उपकरण भी लगाए जाएं साथ ही साथ स्वास्थ्य कर्मी विशेषकर एनेस्थीसिया विशेषज्ञों और अन्य सहायक कर्मचारियों की सेवाएं ली जाएं । यह कार्य युद्ध स्तर पर किया जाना चाहिए और एक बार स्वास्थ्य संस्थान की स्थापना हो जाए और सुचारू रूप से कार्य शुरू हो जाए तो हम इस महामारी पर पूर्ण रूप से विजय पा सकते हैं। डा. सत्यदेव गुप्तपूर्व एचओडी एनेस्थीसिया विभाग जीएमसी जम्मू
अब बढ़ गई है भूमिकासमय के साथ एनेस्थीसिया विशेषज्ञों की भूमिका बढ़ गई हे। गांधीनगर अस्पताल में सौ से अधिक कोविड 19 गर्भवती महिलाओं के सीजेरियन करवाए गए। अन्य सर्जरी भी हुई। मरीज को दर्द न हो, यह भी एनेस्थीसिया विशेषज्ञ ही सुनिश्चित बनाते हैं। अब तो पैलेटिव केयर की जिम्मेदारी भी एनेस्थीसिया विशेषज्ञों के पास ही है। कोविड 19 में जम्मू-कश्मीर के सभी अस्पतालों में हमारे साथी डयूटी दे रहे हैं।- डा. रोहित लाहौरी, एनेस्थीसिया और दर्द विशेषज्ञ, गांधीनगर अस्पताल
गहन चिकित्सा केंद्र और आईसीयू का जन्म1952 में डेनमार्क मैं विशेषकर के कोपनहेगन नगर में पोलियो की महामारी फैली। बहुत से बच्चे इससे प्रभावित हुए और उनकी मृत्यु हो गई। पोलियो में बच्चों के श्वास क्रिया के मांसपेशियों में शिथिलता होने से सांस लेने में बहुत कठिनाई आती है और कई बार सांस रुक जाने से उनकी मृत्यु हो जाती है। डेनमार्क के प्रसिद्ध एनेस्थीसिया डॉक्टर और प्रोफेसर बिजोरन इबसन ने अपने ज्ञान और विज्ञान के अनुसार एक योजना बनाई । उन्होंने बच्चों की श्वास नलिका का छेदन कर उसमें नलिका ट्रेकियास्टमी ट्यूब डालकर अंबु बैग से कृत्रिम सांस देना प्रारंभ कर के 87 प्रतिशत से मृत्यु दर 31 प्रतिशत पर ला दी। उन्होंने स्कूल के विद्यार्थियों और स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षण देकर बच्चों की मृत्यु दर को कम किया।