J&K : 100 दिन में धोया 70 साल पुराना कलंक, 370 हटाने के बाद अब गुलाम कश्मीर को भारत का हिस्सा बनाने का रास्ता भी तैयार
बीते 100 दिन जम्मू कश्मीर के लिए बहुत अहम रहे हैं। इस दौरान देश की सियासत ही नहीं जम्मू कश्मीर का नक्शा सियासत सबकुछ बदल गया है।
श्रीनगर, नवीन नवाज । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की केंद्र में दूसरी पारी के 100 दिन पूरे हो गए हैं। उन्होंने इन 100 दिनों में जम्मू कश्मीर की आधी आबादी को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाते हुए उनके सभी मौलिक अधिकार बहाल किए। जनजातीय समूहों को राजनैतिक रूप से खड़ा किया और 70 सालों से पाकिस्तानी धब्बा लेकर घूम रहे पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों को भी सम्मानित नागरिक होने का गौरव प्रदान किया। उन्होंने 370 हटाकर कश्मीर समस्या को लगभग खत्म ही नहीं कर दिया बल्कि गुलाम कश्मीर को पाकिस्तान के कब्जे से मुक्त करवाकर उसे भारत का हिस्सा बनाने का रास्ता भी तैयार कर दिया है।
बीते 100 दिन जम्मू कश्मीर के लिए बहुत अहम रहे हैं। इस दौरान देश की सियासत ही नहीं जम्मू कश्मीर का नक्शा, सियासत सबकुछ बदल गया है। 1947 में भारत-पाक विभाजन के बाद शुरू हुई कश्मीर समस्या जो साल-दर-साल सुलझने के बजाय लगातार जटिल हो रही थी, नरेंद्र मोदी की दृढ़ इच्छा शक्ति के चलते अब लगभग समाप्त हो गई है। कुछ राजनीतिक दलों (प्रमुख तौर पर नेकां और पीडीपी) द्वारा धर्मनिरपेक्षता का नारा लगाकर मुस्लिम और अलगाववाद की भावनाओं पर पोषित होने वाली सियासत और व्यवस्था का अंत हुआ है। इससे राज्य में एक मजबूत लोकतंत्र की बहाली का सपना जो 1947 में भारत विलय के समय लोगों ने देखा था, पूरा होता नजर आने लगा है।
जम्मू कश्मीर की बेटियों के साथ अनुच्छेद 35ए की आड़ में होने वाला अन्याय और जम्मू कश्मीर को भारत के भीतर एक अलग मुल्क जैसी व्यवस्था का मालिक बनाने वाले अनुच्छेद 370 को पांच अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिशा-निर्देश में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में एक बिल लाकर समाप्त कर दिया। हालांकि, जम्मू प्रांत की अलग राज्य की मांग पूरी नहीं हुई है, लेकिन उसे भी कश्मीर की ब्लैकमेल करने वाली सियासत से मुक्ति मिली है।
अनुच्छेद 35ए के नाम पर होने वाले संवैधानिक अत्याचार को भी समाप्त कर दिया गया
लखनपुर से लेकर लेह तक राज्य की बेटियों के साथ अनुच्छेद 35ए के नाम पर होने वाले संवैधानिक अत्याचार को भी समाप्त कर दिया गया है। अब राज्य की कोई भी बेटी चाहे वह राज्य के भीतर रहे या राज्य के बाहर कहीं जाकर बसे, अपनी पुश्तैनी संपत्ति के अधिकार से वंचित नहीं हो सकती। जम्मू कश्मीर में उसके सभी संवैधानिक, राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक अधिकार सुरक्षित रहेंगे।भारत-पाक विभाजन के समय पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों के साथ जम्मू कश्मीर में हो रहा पक्षपात भी बीते 100 दिनों विशेषकर पांच अगस्त को ही दूर हुआ है।
पहली बार आतंकी और अलगाववादी खेमे में खामोशी
बीते 100 दिनों में जम्मू कश्मीर में लोगों ने पहली बार आतंकवाद व अलगाववाद पर कड़ा प्रहार होते देखा है। पहली बार आतंकी और अलगाववादी खेमे के साथ-साथ ब्लैकमेल की सियासत करने वाले मुख्यधारा के राजनीतिक खेमे में यूं खामोशी देखी गई है। आतंकियों और अलगाववादियों का आका पाकिस्तान पहली बार कश्मीर मुद्दे पर बैकफुट पर खड़ा नजर आ रहा है। वह आज जम्मू कश्मीर में जिहादी तत्वों का साथ देने के बजाय गुलाम कश्मीर पर अपना कब्जा बनाए रखने के लिए हताश नजर आ रहा है।
गुज्जर बक्करवाल समुदाय सियासी रूप से मजबूत होगा
मुस्लिम बहुल जम्मू कश्मीर में गुज्जर-बक्करवाल समुदाय जो आबादी के लिहाज से एक बहुत बड़ा वर्ग है, अब पूरी तरह से राजनीतिक रूप से मजबूत होगा। देश के अन्य भागों के विपरीत जम्मू कश्मीर में इस समुदाय को राजनीतिक रूप से पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं था। अब इस समुदाय को राज्य विधानसभा में न्यूनतम सात सीटों पर आरक्षण प्राप्त होगा। राज्य में रहने वाले इसाई, जैन और सिख समुदाय को पहली बार अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा व लाभ मिलेगा। पहली बार राज्य में पंचायत राज व्यवस्था मूल रूप में बहाल होती नजर आ रही है। पंच-सरपंच और नगर निकायों के सदस्यों में पहली बार यूं उत्साह देखा गया है। आजादी के बाद पहली बार गत जून में राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों ने प्रशासन को बैक-टू-विलेज कार्यक्रम के तहत अपनी दहलीज पर देखा है। राज्य का कोई भी कस्बा आज कॉलेज के बिना नहीं रहा है, राज्य के हर गांव में अब हायर सेकेंडरी स्कूल है। प्रत्येक तहसील और ब्लॉक स्तर पर आइटीआइ और पालीटेक्निकल खोले जा रहे हैं। हर पंचायत में खेल मैदान बन रहा है। राज्य में नौकरियों की बहार शुरू हो रही है। जम्मू कश्मीर में करीब 35 हजार करोड़ का निवेशकरने के लिए देश के नामी बिजनेस घराने अपनी सहमति दे चुके हैं।
कश्मीर में तनाव के बावजूद शांति ही सबसे बड़ी उपलब्धि
जम्मू कश्मीर मामलों के जानकार और फ्रेंडस ऑफ साउथ एशिया नामक संस्था के संयोजक सलीम रेशी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी उपलब्धि बीते एक माह के दौरान कश्मीर में तनाव के बावजूद व्यापत शांति है। जो लोग यह कहते थे कि अनुच्छेद 35ए के साथ छेड़खानी करने पर कश्मीर में ज्वालामुखी फटेगा, उन्हें उनकी औकात दिखा दी गई है। केंद्र सरकार ने साबित कर दिया है कि आम कश्मीरी अलगाववाद, आतंकवाद का स्वेच्छा से नहीं, मजबूरी में साथ देता आया है।