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युद्घ के हालात देख छुट्टी रद कर रेजीमेंट लौटे थे सेवा सिंह

रोहित जंडियाल, जम्मू नवंबर के अंत में भारत व पाकिस्तान के बीच युद्ध के बादल मंडरा रहे थे।

By JagranEdited By: Published: Sun, 16 Dec 2018 02:44 AM (IST)Updated: Sun, 16 Dec 2018 02:44 AM (IST)
युद्घ के हालात देख छुट्टी रद  कर रेजीमेंट लौटे थे सेवा सिंह
युद्घ के हालात देख छुट्टी रद कर रेजीमेंट लौटे थे सेवा सिंह

रोहित जंडियाल, जम्मू

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नवंबर के अंत में भारत व पाकिस्तान के बीच युद्ध के बादल मंडरा रहे थे। छुट्टी पर गए सैनिकों को बुलाने की तैयारी हो रही थी। कुछ ऐसे जांबाज जवान थे जिन्होंने बुलावे का इंतजार तक नहीं किया और खुद ही रेजीमेंट में आ पहुंचे। उन्हीं वीरों में नायब सुबेदार सेवा राम भी थे। वह जम्मू के सतवारी में रहते थे। उस समय उनकी पत्नी गर्भवती थी। मकान का काम भी चल रहा था। युद्ध के हालात देख सेवा सिंह गर्भवती पत्नी व दो नन्हे बच्चों को छोड़ 21 पंजाब रेजीमेंट में चले गए। तीन दिसंबर को युद्ध शुरू हो गया। जम्मू संभाग के पुंछ जिले की कृष्णा घाटी सेक्टर में पाकिस्तान ने कब्जा करने का प्रयास किया। वहां 21 पंजाब रेजीमेंट को भेजा गया। इसमें नायब सूबेदार सेवा राम भी थे। जवानों ने जांबाजी से पाकिस्तान के दांत खट्टे कर भगा दिया। पाकिस्तान हार देख बौखलाया था। पाक ने 10 दिसंबर की रात को इसी सेक्टर की नेगी टेकरी पोस्ट पर हमला किया। पोस्ट पर तैनात वीर जवानों ने धूल चटा दी थी। पाक को भारी नुकसान हुआ। अधिकांश सैनिक मारे गए। जो बचे थे वे वहां से भाग खड़े हुए। अंधेरे में किए हमले में भी जवानों ने दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए। हमले में नायब सूबेदार सेवा राम सहित एक अधिकारी, जेसीओ और बीस अन्य जवान शहीद हो गए। इसी रेंजीमेंट के 23 जवानों की वीरता के लिए महावीर चक्र, वीरच्रक, दो सेना पदक दिए गए।

घर में आई अस्थियां

उस समय हालात ऐसे नहीं थे कि शहादत के बाद जवानों के पार्थिव शरीरों को घरों में भेजा जाता। शहीद सेवा राम के करीबी रिश्तेदार सूबेदार रमनीक ¨सह भी उसी क्षेत्र में अलग यूनिट में तैनात थे। उन्हें उन्होंने वहां पर बुलाया और शहीद का अंतिम संस्कार हुआ। शहादत के करीब सात दिन बाद वह अस्थियां लेकर घर में आए और उन्हें सूचना दी। आज भी याद है वह दिन

वीरनारी स्वर्णो देवी को आज भी वह दिन अच्छी तरह से याद है जब शहीद पति की अस्थियां लेकर उनका भाई घर में आया था। उस समय लगा कि सब कुछ खत्म हो गया। दो छोटे बच्चे थे और एक गर्भ में था। परिवार की पूरी जिम्मेदारी कंधों पर पड़ गई थी। एक महीने बाद तीसरे बच्चे को जन्म दिया। वह इतने बहादुर थे कि मकान का काम अधूरा छोड़ यह कह चले गए कि दुश्मन को सबक सिखा वापस आउंगा। उनकी शहादत के बाद तीन बच्चों को पालना बहुत ही मुश्किल था। हालात से लड़ती रहीं। तीनों बच्चे आज अपनी जिम्मेदारी को अच्छी तरह से निभा रहे हैं। स्मारक देता है प्रेरणा

शहीद नायब सूबेदार सेवा राम के छोटे बेटे पवन चौधरी का कहना है कि उन्होंने अपनी पिता को तो नहीं देखा लेकिन जिस जगह पर वह शहीद हुए हैं। वहां पर दो-तीन बार जाने का अवसर मिला। उस जगह पर बने स्मारक में शहीद पिता का नाम देखकर सिर फº से ऊंचा होता है और देश के लिए कुछ करने की प्रेरणा मिलती है। उन्होंने कहा कि उनके पिता उन 21 पंजाब रेजीमेंट के उन 23 जवानों में थे जिन्होंने पाकिस्तानियों को खदेड़ते हुए शहादत का जाम पिया।


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