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Udhampur Banihal Raillink: पहाड़ सी चुनौतियां और हमारे इंजीनियरों का जुनून; Corona भी बौना हो गया, पढ़ें पूरी कहानी

रेलवे अफसरों की मानें तो लॉकडाउन में कुछ स्टाफ कम करना पड़ा था लेकिन इंजीनियरों के जज्बे ने काम की रफ्तार पर ब्रेक नहीं लगने दी। इसके परिणाम अब दिखने लगे हैंं। विश्व के सबसे ऊंचे रेलवे पुल की आर्च का 95 फीसद निर्माण कार्य पूरा हो चुका है।

By VikasEdited By: Published: Tue, 05 Jan 2021 07:00 AM (IST)Updated: Tue, 05 Jan 2021 11:29 AM (IST)
देश की महत्वाकांक्षी रेल परियोजना में निर्माण कार्य कोरोना में भी जारी रहा।

जम्मू, दिनेश महाजन कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत को एक करने के रेलवे इंजीनियरों के जुनून को सलाम है। सामने पहाड़ सी चुनौतियां थी, लेकिन इंजीनियरों के हौसले बुलंद रहे। कभी पहाड़ खिसकने की चिंता तो कभी अचानक झरने फूटना। तमाम चुनौतियों से जूझते रहे। जब कार्य गति पकडऩे लगा तो कोरोना ने झटके देने आरंभ कर दिए। यह झटके भी हौसला नहीं तोड़ पाए और इस प्रोजेक्‍ट के महारथी लड़ते हुए आगे बढ़ते रहे।

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गत वर्ष कोरोना से सब कुछ थम सा गया, लेकिन देश की महत्वाकांक्षी रेल परियोजना में निर्माण कुछ एहतियात बरतते हुए जारी रहा। इस दौरान एक-एक कर 366 इंजीनियर कोरोना से संक्रमित हो गए, पर कार्य बंद नहीं होने हुआ। क्‍वारंटाइन में रहकर भी इंजीनियर हो या श्रमिक मोबाइल से वीडियो काल कर दिशा निर्देश जारी करते रहे और काम चलता रहा।

ऐसे जुझारू दल की बदौलत ही जम्मू से बारामुला रेल ट्रैक का कार्य अब अंतिम चरण में पहुंचता दिख रहा है। कश्मीर की वादियों में ट्रेन की गूंज एक दशक पहले ही सुनाई देने लग गई थी पर ट्रैक पर सबसे बड़ी चुनौती पीर पंजाल की पहाडिय़ों को काटकर और वहां के दरियाओं को नापकर दर्जनों सुरंग और पुल बनाने की थी। ऊधमपुर से बनिहाल तक का यह रेल लिंक एक और कुदरत की चुनौती को बौना साबित करने की इंसानी जिद की मिसाल है और वहीं देश के इंजीनियरिंग कौशल का नायाब नमूना भी।

रेलवे अफसरों की मानें तो लॉकडाउन में रेलवे को कुछ स्टाफ कम करना पड़ा था, लेकिन इंजीनियरों के जज्बे ने काम की रफ्तार पर ब्रेक नहीं लगने दी। इसके परिणाम अब दिखने लगे हैंं। विश्व के सबसे ऊंचे रेलवे पुल की आर्च का 95 फीसद निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। अब देश के पहले केबल ब्रिज अंजी पुल का निर्माण तेजी से चल रहा है। इस ट्रैक की बड़ी चुनौतियों में शामिल दोनों महत्वपूर्ण पुलों का कार्य इस वर्ष के अंत तक पूरा होने की उम्मीद है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे ट्रैक का कार्य पूरा करने की डेडलाइन 15 अगस्‍त 2022 तय की है।

नार्दन रेलवे के जनरल मैनेजर आशुतोष गंगल ने बताया कि 111 किलोमीटर लंबे कटड़ा-बनिहाल रेल सेक्शन में निर्माण कार्य के दौरान रेलवे के 366 इंजीनियर और कर्मी कोरोना संक्रमित हो गए। रियासी और रामबन जिले महीनों तक रेड जोन में रहे और इन जिलों में ही सबसे अधिक सुरंगे और पुल बन रहे हैं। रेलवे ने कर्मचारियों की सुविधाओं को देख निर्माण स्थल पर ही आइसोलेशन सेंटर बना दिए। कुशल कर्मियों का अलग से कैंप बनाया हैं। रेलवे कर्मियों की मेहनत व कार्य निष्ठा के चलते कठिन हालात में बन रहे कटड़ा बनिहाल रेल सेक्शन का निर्माण चलता रहा। रेलवे की तीन एजेंसियों इरकान, केआरसीएल और नार्दर्न रेलवे इस महत्वाकांक्षी परियोजना में अहम भूमिका निभा रही हैं।

जब कोरोना ने दी चुनौती
सीन-1 ::विश्व के सबसे ऊंचे पुल के आर्च के निर्माण के दौरान कई दिक्कतें भी आईं। कोरोना से कई इंजीनियर संक्रमित हो गए। उस दौरान क्‍वारंटाइन में वह अन्य संक्रमित इंजीनियरों और मौके पर मौजूद टीम को वीडियो कांफ्रेंसिंग से दिशा-निर्देश देकर काम आगे बढ़ाते रहे। यही कारण था कि काम नहीं रुका। इंजीनियर विकास ने कहा कि हमारे लिए यह परियोजना चुनौती है।

सीन-2 : कोरोना के समय (मार्च से) कामकाज बंद होने के बाद देशभर में श्रमिक घरों की तरफ निकल पड़े थे, लेकिन रेलवे की सभी एजेंसियों ने किसी श्रमिक को ऐसी नौबत नहीं आने दी। यही कारण था श्रमिक इंजीनियरों के साथ जुनून के साथ काम में जुटे थे। वेतन को लेकर भी कोई दिक्कत नहीं आने दी।

सीन-3 : कोरोना से संक्रमित सभी 366 इंजीनियर व कर्मचारियों के लौटने के बाद काम में और तेजी आई। वे दिन-रात साइट पर ही जुटे रहते और कहते कि पंद्रह दिन छुट्टी काटी है, देश की महत्वाकांक्षी  परियोजना में देरी हमारे लिए शर्मनाक होगी। हालांकि कोरोना के समय श्रमिकों का भी रोस्टर था। साइट पर श्रमिकों की संख्या कम रहती थी पर वह यही दोहराते रहते कि काम तय समय पर ही पूरा होगा।

चूंकि देश का सवाल है....: कुछ इंजीनियरों ने नाम न बताते हुए कहा कि चुनौतियां पहले भी आईं लेकिन पिछले सात-आठ माह का समय वाकई चुनौतियों वाला था। अपने मनोबल को बुलंद रखा। काम के साथ स्वास्थ्य का ध्यान रखा। इस अवधि में परिवार से जरूर दूर रहे। हां, बीच में हमारे कुछ साथी संक्रमित हो गए, लेकिन हौसले पहले जैसे थे। देश का मसला है। यह परियोजना हमारे लिए चुनौती है। पहाड़ों को चीर दिया, इस मुश्किल समय को भी पार कर लेंगे।

सभी जुटे हैं, मंजिल पास है: श्रमिकों ने भी कहा कि काम करते हमारे स्टाफ और इंजीनियर बाबुओं को कोरोना  हो गया था, लेकिन कभी मोबाइल फोन से तो कभी अन्य बड़े इंजीनियर हमें दिशा-निर्देश देकर काम करवाते। लॉकडाउन में पूरे बचाव से खूब काम किया। काम रुकने नहीं दिया। प्रधानमंत्री मोदी जी ने कहा कि 2022 में काम खत्म हो। सभी जुटे हुए हैं, मंजिल पास है।

हमने काम रुकने नहीं दिया : 
इरकान के चिनाब पुल के प्रोजेक्ट मैनेजर विश्वामूर्ति कहते हैं कि कोरोना के समय साइट में काम काफी सतर्कता से किया। साइट पर ही एंबुलेंस, डाक्टर और टेस्टिंग टीम मौजूद रहती थी। दिक्कत आने पर तुरंत इलाज के प्रबंध किए जाते थे। विपरीत परिस्थितियों में हमने काम रुकने नहीं दिया। एसओपी का पालन किया। हमारी साइट पर छह सौ से अधिक इंजीनियर, श्रमिक व अन्य काम में जुटे हैं। उन्होंने कहा कि छुट्टी काट आने वाला पहले रियासी अस्पताल में टेस्ट करवाता फिर साइट पर। रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद अनुमति होती। इसी जज्बे से हमने 85 फीसद काम खत्म कर लिया है।

15 अगस्त 2022 तक पूरा होना है कार्य : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेलवे के इंजीनियरों का मनोबल बढ़ाते हुए उनकी प्रशंसा की है। प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त 2022 तक जम्मू बारामूला रेल सेक्शन के निर्माण कार्य को पूरा करने को कहा है। यह प्रोजेक्‍ट देश की शान है।



जम्मू-ऊधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेल ट्रैक-- यह है कश्मीर को देश से जोड़ने का मेगा प्रोजेक्ट

1. जम्मू-ऊधमुपर -कटड़ा :: 78 किलोमीटर

माता वैष्णो देवी के धाम कटड़ा तक ट्रेन पहले ही पहुंच चुकी है। प्रतिदिन हजारों लोग रेल मार्ग से मां वैष्णो देवी के दर्शनों के लिए यहां पहुंचते हैं। ऊधमपुर और कटड़ा के 25 किलोमीटर के ट्रैक में से 11 किलोमीटर सुरंगों से गुजरता है।

2. कटड़ा - काजीकुंड -- 129 किलोमीटर

यह इस रेलवे ट्रैक का सबसे कठिन कार्य है। बनिहाल से काजीगुंड पीर पंजाल टनल के माध्यम से जुड़ चुके हैं और 18 किलोमीटर का यह ट्रैक चल रहा है। शेष कटड़ा से बनिहाल 111 किलोमीटर के लिंक पर कार्य चल रहा है। इस लाइन पर कुल 27 पुल, 37 सुरंगें हैं। इसे इस तरह समझा जा सकता है कि कुल 111 किलोमीटर ट्रैक में से 97 किलोमीटर पुल या सुरंग से ट्रैक गुजरेगा। इसमें 81 किलोमीटर का निर्माण भी हो चुका है।

3. काजीकुंड - बारामुला -- 119 किलोमीटर
 काजीगुंड से बारामुला तक रेलवे ट्रैक काफी समय से चल रहा है। यह मुख्य तौर पर कश्मीर की वादियों और बागानों से होकर गुजरता है। सॢदयों में  बर्फ से लदी पहाडिय़ों के बीच काफी मनमोहक हो जाती हैं। करीब एक दशक से यह ट्रैक चल रहा है।

यूं बदल रही क्षेत्र की तस्वीर

  1. ऊधमपुर-बनिहाल रेल लिंक का कार्य पूरा होने के बाद जम्मू कश्मीर हर मौसम में देश से जुड़ा रहेगा और हमारी कूटनीतिक ताकत में जोरदार इजाफा होगा। देश कन्याकुमारी से कश्मीर तक रेलमार्ग से जुड़ जाएगा। बर्फबारी के दौरान राजमार्ग बंद होने के बावजूद यह ट्रैक चलता रहेगा। सेना का काफिला कुछ घंटों में ही जम्मू से उत्तरी कश्मीर तक पहुंच जाएगा।
  2. इस रेलवे ट्रैक के निर्माण की सामग्री साइट तक पहुंचाने के लिए 262 किलोमीटर से अधिक अतिरिक्त सड़क का निर्माण किया गया। इससे 73 गांवों की डेढ़ लाख से अधिक आबादी को सीधा लाभ हुआ।
  3. रोजगार के अवसर :: निर्माण कार्य के दौरान स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा हुए। करीब सात हजार को सीधा रोजगार मिला और हजारों अन्य को अप्रत्यक्ष रोजगार मिला।
  4. यह रेल मार्ग प्रदेश के सबसे दुर्गम व पर्वतीय क्षेत्र से होकर गुजरेगा। ज्यादातर क्षेत्र विकास से अछूता ही रहा। इससे विकास की तीव्र गति से पहुंचेगा ही, पर्यटन में भी काफी इजाफा होगा। इससे पूर्व क्षेत्र लाभान्वित होगा। इस पर बनने वाले पुल और सुरंगे भी पर्यटनों के लिए आकर्षण का केंद्र होंगी। 

यह चमत्‍कार दुनिया को अचंभित कर रहे

  1. सबसे ऊंचा आर्क पुल : रियासी जिले में चिनाब नदी पर दुनिया का सबसे ऊंचा आर्क पुल बन रहा है और इस पुल का निर्माण इसी साल दिसंबर में पूरा कर लिया जाएगा। इसके आर्क का 95 फीसद निर्माण पूरा किया जा चुका है। इस पुल की एफिल टावर से भी 35 मीटर अधिक ऊंचाई पर है। 1400 करोड़ की लागत से बन रहे इस पुल की चिनाब की जलधारा से ऊंचाई 359 मीटर और आर्क की ऊंचाई 465 मीटर होगी। यह हमारी इंजीनियरिंग का सबसे नायाब नमूना होने वाला है। यह पुल 250 किलोमीटर प्रतिघंटा की हवाओं का वेग भी सहने सक्षम होगा।
  2. देश का पहला झूलता रेलवे ब्रिज : इसी ट्रैक पर रेलवे देश का पहला केबल आधारित झूलता ब्रिज बना रहा है जिससे ट्रेन फर्राटा भरते हुए दौड़ेगी। यह पुल भी चिनाब पर ही बन रहा है। इस पुल की लंबाई 473 मीटर है और केबल को सपोर्ट देने के लिए पिलर बनाया जा रहा है। अस खंभे की ऊंचाई नदी तल से 331 मीटर है और यह कुतुबमीनार से लगभग गुना ऊंचा है। इस पुल को सपोर्ट देने के लिए 96 केल का जाल बनाया जाएगा। यह पुल भी इसी वर्ष पूरा होने की संभावना है।  यह पुल कटड़ा को रियासी से जोड़ेगा।
  3. सबसे बड़ी टनल : ऊधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेलमार्ग पर ही देश की सबसे लंबी पीर पंजाल सुरंग है। पीर पंजाल की पहाडि़यों के बीच बनी इस सुरंग की लंबाई 11 किलोमीटर है। यह जम्‍मू संभाग को कश्‍मीर से जोड़ती है। सड़क मार्ग पर बनी जवाहर टनल से करीब 400 मीटर नीचे से गुजरने के कारण बर्फबारी से भी सुरक्षित है और इस कारण रेलवे ट्रैक सदाबहार चलता है।
  4. दस साल लग गए टनल के निर्माण में : रामबन जिले के बनिहाल में 8.6 किलोमीटर लंबी रेलवे सुरंग (टी-74) की खोदाई का काम 10 साल बाद पिछले वर्ष अक्‍टूबर माह में पूरा कर लिया गया। यह भी ऊधमपुर-बनिहाल रेल लिंक की परियोजनाओं में से एक है। यह सुरंग खारी-बनिहाल खंड को जोड़ेगी।

जब पहाड़ से रिसने लगा झरना

रियासी में बन रही यह टनल नंबर-5 में सबसे बड़ी चुनौती पहाड़ से रिसने वाला पानी था। हिमालयन शृंखला बन रही छह किलोमीटर की इस टनल का निर्माण किसी चुनौती से कम नहीं था। पानी के रिसाव के कारण तीन कंपिनयां काम छोड़कर प्रोजेक्‍ट से किनारा कर गईं और प्रोजेक्‍ट के आरंभ होने के करीब डेढ़ दशक बाद टनल की खोदाई पूरी हो पाई। निर्माण कंपनी के अधिकारियों के अनुसार वर्ष 2017 के अगस्त माह में टनल के ऊपरी भाग से लगभग 300 लीटर प्रति सेकेंड पानी रिसने लगा और यह इंजीनियरों की अपेक्षा से कई गुना अधिक था। निर्माण कंपनी ने खुदाई में 50 लीटर प्रति सेकंड पानी निकलने की तैयारी कर रखी थी। ऐसे में तुरंत रणनीति बदलनी पड़ी और अब इस कार्य को पूरा किया जा चुका है। 


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