जम्मू कश्मीर में भारी मांग से मत्स्य पालन रोजगार का अच्छा साधन
जम्मू कश्मीर में मांस और डेयरी की अच्छी मांग हैं। अगर मछली की ही बात करें तो आज भी हम अ
जम्मू कश्मीर में मांस और डेयरी की अच्छी मांग हैं। अगर मछली की ही बात करें तो आज भी हम अपने प्रदेश की मांग पूरा करने में कोसों पीछे हैं। हालांकि राज्य में जल स्त्रोत की कोई कमी नहीं। मछली पालन का उचित वातावरण भी है। फिर भी बहुतायत में मछली का निर्यात दूसरे राज्यों से करना पड़ रहा है। मत्स्य पालन से भी अच्छा रोजगार निकल सकता है। बढ़ावे के लिए केंद्र सरकार भी आगे आई है। कई योजनाएं शुरू की गई हैं। धीरे-धीरे बदलाव भी हुआ है। मगर अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। मत्स्य पालन कैसे करें, इससे रोजगार की कितनी संभावनाएं हैं, इसके बारे में दैनिक जागरण के वरिष्ठ संवाददाता गुलदेव राज ने शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी (स्कास्ट) जम्मू के असिस्टेंट प्रोफेसर फिशरीज डॉ. राज कुमार से बातचीत की। पेश है बातचीत के कुछ अंश। मछली उत्पादन में प्रदेश की क्या स्थिति हैै?
आज भी हम मछली उत्पादन में पीछे हैं। हर साल राज्य में 60 हजार टन मछली की मांग होती है। जम्मू कश्मीर के नदी नालों और मछली पालन के जरिए हम 20.7 हजार टन का उत्पादन ही कर पा रहे हैं। यानी आज भी दो तिहाई मछली दूसरे राज्यों से मंगाई जा रही है। चूंकि जम्मू कश्मीर के अधिकतर क्षेत्र पहाड़ी हैं। वहां पर साल के अधिकतर माह ठंड ही रहती है। ऐसे में यहां पर मछली की अच्छी खपत है। इसलिए मछली पालन का धंधा राज्य में अच्छे तरीके से चल सकता है। फिर भी पैदावार कम है, इसके लिए सरकार कितनी जिम्मेदार?
सरकार की ओर से कोई कमी नहीं है। किसानों और युवाओं को भी अपनी सोच बदलनी होगी। मछली पालन के बढ़ावे के लिए केंद्र सरकार व राज्य प्रशासन की कई योजनाएं हैं। मछली पालन के लिए सरकार कई योजनाओं के तहत सब्सिडी भी उपलब्ध कराती है। मुझे लगता है कि और ज्यादा जागरूकता चलाए जाने की जरूरत है। केंद्र सरकार व राज्य प्रशासन का पूरा ध्यान इस ओर है। लोगों को मछली पालन व्यवसाय में आने के लिए और ज्यादा प्रेरित किया जाना चाहिए है। धीरे-धीरे मछली पैदावार में बढ़ोतरी हो रही है। जम्मू कश्मीर में 70 फीसद लोग गांवों में रहते हैं, खेतीबाड़ी करते हैं। वे अपनी खेती के साथ मछली पालन कैसे कर सकते हैं?
आज कल खेती का ट्रेंड बदल गया हे। किसानों को एकीकृत खेती करने पर जोर दिया जा रहा है। यानी कि खेती के साथ इससे जुड़े धंधे जैसे मशरूम, डेयरी, मुर्गी पालन, मधुमक्खी पालन भी किया जाता है। ऐसे में किसान मछली पालन भी तो कर सकता है। अगर किसी किसान का छह सात कनाल का बाड़ा है तो उसमें अन्य प्रोजेक्ट के साथ मछली पालन का प्रोजेक्ट भी लगाया जा सकता है। इससे किसानों की आय में बढ़ोतरी हो जाएगी और खर्चा बचेगा। क्योंकि तालाब से मवेशियों के पीने को पानी मिलेगा, खेती की सिचांई होगी तो वहीं मछली पालन भी होगा। एग्रीकल्चर वेस्ट से ही मछली की खुराक बन जाएगी। अगर कोई युवा बेरोजगार मछली पालन के लिए आगे आना चाहता है तो वह क्या करे। कैसे तैयारी करे और उसकी कितनी आमदनी होगी?
दो कनाल में मछली पालन के लिए 25 गुणा 40 मीटर या 30 गुणा 35 मीटर आयाताकार तालाब बना सकते हैं। यह इसलिए ताकि प्रबंधन में आसानी रहे। मछलियों को भी विचरण का अच्छा वातावरण मिल पाएगा। वहीं मछली पकड़ने के लिए जाल डालने के काम में भी सुविधा रहेगी। ख्याल रहे कि तालाब 6 से 8 फुट गहरा होना चाहिए। यहां पाली गई मछली बेहतर प्रबंधन से आपको साल में 40 से 60 हजार रुपये की कमाई करा सकती हैं। खेती में जुटे किसानों के लिए यह छोटा प्रोजेक्ट उनकी आमदनी बढ़ा देगा। अगर कोई युवा बड़े पैमाने पर काम करना चाहता है तो तालाब का आकार बढ़ाना होगा। मछली पालन कर रहे लोगों को क्या क्या खास ख्याल रखना चाहिए?
सबसे जरूरी है कि तालाब का पानी कम नहीं होना चाहिए। दूसरा यह कि तालाब का पानी प्रदूषित नहीं होने देना चाहिए। कुछ माह पहले बाबा तालाब में इतने लोग स्नान करने उतर गए कि पानी में मिट्टी बेहद घुल गई और इससे ऑक्सीजन की कमी होने से मछलियां मर गई। वहीं, दूसरी ध्यान रखना चाहिए कि समय पर तालाब के पानी में साफ पानी जुड़ता रहे। जैसे नहर, नदी-नाले का पानी पड़ता हो। यही नहीं तो हैंडपंप, नलकूप का पानी मछली के तालाब में जोड़ा जा सकता है। साफ पानी जुड़ने से मछली के तालाब में ऑक्सीजन की कमी नहीं रहेगी। वहीं मछलियों की खुराक प्राकृतिक तौर पर भी पनप आती है तो वहीं एग्रीकल्चर वेस्ट को तालाब में डाला जा सकता है। सरसों मूंगफली की खल, बुगदू, पतरी यह सब मछली की खुराक है। नया बीज डालते समय ध्यान रखें कि बीज ¨फगर लाइन यानी अंगुली साइज से बड़ा नही होना चाहिए। मछली पालन से जुड़ता दूसरा और कोई धंधा जो आज बेरोजगारों की आमदनी का जरिया बने?
जी हां, आज कल ऑरनामेंटल फिश का धंधा खूब फलफूल रहा है। यानी शो के लिए रंगीन मछलियां घर-घर पालने का रिवाज सा चल पड़ा है। मगर शहर में रंगीन मछलियों की चु¨नदा दुकानें हैं। इन मछलियों का पालन कर बेचा जा सकता है। इसके लिए बहुत ज्यादा जगह की जरूरत नहीं रहती। बल्कि एक कमरे में भी इन मछलियों का पालन कर बेचा जा सकता है। इसके लिए बड़े कंटेनर, टब या एक्वेरियम की जरूरत रहेगी। जम्मू में कितने किस्म की मछलियों का पालन हो सकता है?
चूंकि जम्मू में सर्द व गर्म दोनों तरह के वातावरण हैं, इसलिए यहां पर मछली पालन का अच्छा वातावरण है। कार्क फैमिली में छह प्रजाति की मछलियां जिसमें केटला, रोहू, कामन कार्क ग्रास कार्क, सिल्वर कार्क शामिल है जिनको जम्मू में आसानी से पाला जा सकता है। जम्मू के ठंडे इलाके जहां बर्फ पड़ती है, वहां के नदी नालों या तालाबों में ट्राउट मछली का पालन हो सकता है।