Move to Jagran APP

टाटा-टी का अभियान 'जागो रे' बदलती सोच के नाम

टाटाटी के जागो रे अभियान ने अपनी मुहिम के ज़रिये ये कोशिश की है कि समाज में महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिया जाए।

By Tilak RajEdited By: Published: Fri, 16 Feb 2018 06:45 PM (IST)Updated: Tue, 20 Feb 2018 06:43 PM (IST)
टाटा-टी का अभियान 'जागो रे' बदलती सोच के नाम
टाटा-टी का अभियान 'जागो रे' बदलती सोच के नाम

घर-आँगन में खेलता कूदता बचपन यानी आने वाले समय का सुनहरा भविष्य, जिस पर सिर्फ परिवार का ही नहीं अपितु देश का भी दायित्व है। बचपन रूपी इस पौधे को युवावस्था तक पहुँचने के लिए कई पड़ावों से गुज़रना होगा। इन पड़ावों और इस दौरान ली गई सीख ही बचपन रूपी इस पौधे को एक ज़िम्मेदार युवावस्था की ओर अग्रसर करेगा।

loksabha election banner

कभी आर्थिक तो कभी सामाजिक कारणों का असर भावी पीढ़ी में देखने को मिल ही जाता है और ऐसे ही कारणों का अवलोकन कर 'टाटा टी जागो रे' ने एक पूर्व-सक्रियता की मुहिम चलायी, जिसके दो चरण थे- पहला लैंगिक संवेदनशीलता और दूसरा स्कूलों में खेल को अनिवार्य विषय बनाना। इसी ध्येय को सामने रख टाटा टी ने स्कूलों में खेलों की अनिवार्यता और लैंगिक संवेदनशीलता जैसे विषयों को उठा कर एक अभियान में तब्दील करने की कोशिश की। इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए टाटा टी ने अपने अभियान ‘अलार्म बजने से पहले जागो रे’ के जरिये खेल की जरूरत और उसकी अहमियत को समझाया। इस अभियान में लोगों से एक याचिका पर हस्ताक्षर करने की अपील की गई, जिसे न केवल समाज द्वारा सराहा गया, बल्कि 18,00,000 लोगों ने इस याचिका पर हस्ताक्षर कर इसे सहर्ष स्वीकृति प्रदान की और इस अभियान को मानव संसाधन विकास मंत्रालय तक पहुंचाने में अपना योगदान भी दिया।

2016 ओलिंपिक्स से पहले, कुछ चुनिंदा लोग ही ‘पी. वी. सिन्धु’, ‘साक्षी मलिक’, मीराबाई चानू’ के नाम से परिचित थे, लेकिन ओलिंपिक्स में देश के लिए मेडल हासिल कर, इन महिला खिलाड़ियों ने विश्व भर में अपनी पहचान बना ली। इनकी जीत ने देश को बेटियों की अहमियत के बारे में समझाया। इसके साथ ही देशभर के हर माता-पिता को यह सीख भी मिली कि सिर्फ़ बेटे ही नहीं, बल्कि बेटियां भी उनका नाम रौशन कर सकती हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि इन महिला खिलाड़ियों की जीत से देश का हर अभिभावक अपनी बेटी को अपने बेटे जितना दर्जा देने लग जाएगा। इसकी सबसे बड़ी वजह है हमारी प्राचीन पित्तृसत्ता आधारित सोच। हमें ज़रूरत है कि हम अपनी बेटियों को बढ़ावा दें, जिससे पित्तृसत्ता सोच से प्रभावित लोगों के सामने हर बार एक नई मिसाल पेश की जा सके। ताकि वो भी इस बात को समझ पाएं कि उनकी बेटी भी देश के लिए उतनी हीअहमियत रखती है जितना कि उनका बेटा।

टाटाटी के जागो रे अभियान ने अपनी मुहिम के ज़रिये ये कोशिश की है कि समाज में महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिया जाए। आज के आधुनिक युग में महिलाएं पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है जहां महिलाओं ने अपनी निपुणता का प्रमाण न दिया हो। तो फिर क्या वजह है कि हम महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कमतर मानें।

कहते हैं कि बदलाव ही प्रकृति का नियम है, और इस मुहिम के ज़रिये हमारे समाज में भी बदलाव की एक लहर दौड़ गई है। इस मुहिम में समर्थन व्यक्त करने वाले लोग आज व्यक्तिगत रूप से अपनी बेटियों को बराबरी का दर्जा देते हुए उन्हें खेल प्रशिक्षण और दूसरे क्षेत्रों में जाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। जहाँ कल तक देश में केवल पुरुष खिलाड़ियों, उद्यमियों और सितारों का नाम लिया जाता था, वहीं आज लैंगिक संवेदनशीलता की हर बाधा को लांघते हुए महिलाएं भी इन नामों में शुमार की जाने लगी हैं। समय आ गया है कि हम लैंगिक भेदभाव के चक्रव्यूह को भेद,अपनी बेटियों को सफ़ल बनाने में उनका साथ दें, जिससेबेटियों के मन में नयी आशाओं के बीज अंकुरित हों और यह अंकुरित बीज सिर्फ़ उनके परिवार के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए फलदायी हों।

दैनिक जागरण के माध्यम से यकीनन, इस अभियान में प्रस्तुत की गयी वीडियो, फोटो और लिखित सामग्री के बाद लगभग देश का प्रत्येक नागरिक इन दोनों सामाजिक मुद्दों की अहमियत से भलीभाँति परिचित हो गया है, तो क्यों न हम भी अपने ज़हन से लैंगिक असमानता के भेद को दूर कर अपनी बेटियों को समान अवसर प्रदान करें, जिससे वो भी विश्वरूपी इस आसमान में उड़ान भर सफ़लता की बुलंदियों को चूम सकें। बदलाव आ रहा है, हम बदल रहे हैं तो निश्चित ही देश भी बदलेगा और यह सकारात्मक नज़रिये का ही परिणाम है कि "टाटाटी जागो रे" अभियान' द्वारा बनाई गईपूर्व-सक्रियताकी याचिका 'मानव संसाधन मंत्रालय' (एचआरडी मिनिस्ट्री) के समक्ष प्रस्तुत होने वाली है, जिसको स्वीकृति मिलने की पूरी आशा है। सरल शब्दों में हमारे भीतर हो रहे व्यावहारिक और भावनात्मक बदलावों के कारण नई समझ पैदा हो रही है, जिससे हम सही समय पर सही दिशा में सही कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित हो चुके हैं। अब वक़्त आ गया है कि हमें अपने पारिवारिक माहौल को बदलने की ज़रूरत है।

अब ज़रूरत है कि लड़कियों को परिवार के भीतर ही ऐसा माहौल दिया जाए कि वो खुद को प्रेरित और सशक्त महसूस करें। हर अभिभावक को इस बात का ध्यान रखना होगा कि उनकी बेटी को किसी तरह से यह नहीं लगना चाहिए कि परिवार में उसे कम अहमियत दी जा रही है। क्योंकि बेटियों की सफ़लता की नींव परिवार से ही रखी जा सकती है, अगर पारिवारिक माहौल में ही बेटियों को बढ़ने के लिए प्रेरित नहीं किया जाएगा तो बेटियां कभी भी समाज के सामने अपनी क़ाबिलियत साबित नहीं कर पाएंगी। यक़ीन कीजिए, हमारे देश का भविष्य यही बेटियां और बहनें ही लिखेंगी। तो तोड़ दीजिए लैंगिक भेदभाव की ये दीवार और जुट जाइये अपने हाथों से अपनी बेटियों का भविष्य संवारने में, क्योंकि आज बेटियां होंगी सशक्त तो आप और आपका देश होगा सशक्त।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.