'हॉकी के जादूगर ' ध्यानचंद जब हॉकी देखने के लिए लाइन में खड़े हुए ..
ध्यानचंद को मछली पकडऩा और खाना पकाना पसंद था।
कोलकाता, पीटीआई। ध्यानचंद की हॉकी के जादू को देखने के लिए जहां दुनिया लाइन लगाए रहती थी लेकिन भारतीय खेलों की राजनीति ने उन्हें अपने खेल को देखने के लिए टिकट की लाइन में खड़ा कर दिया था। एक किताब में इसका दावा किया गया है।
ओलंपिक स्वर्ण पदकधारी और पूर्व कप्तान गुरबक्श सिंह ने अपनी आत्मकथा 'माई गोल्डन डेज' में भारत के इस महान खिलाड़ी के बारे में लिखा है, जिनकी जयंती को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। किताब के मुताबिक, ध्यानचंद को मछली पकडऩा और खाना पकाना पसंद था। किताब में गुरुबक्श ने 1960 और 70 के दशकों की हॉकी की राजनीति और भारतीय हॉकी के पतन की व्याख्या की है।
यह घटना 1962 अहमदाबाद अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट के दौरान हुई, जब पटियाला के राष्ट्रीय खेल संस्थान (एनआइएस) और भारतीय हॉकी महासंघ के बीच टकराव चल रहा था और ध्यानचंद को मुख्य कोच होने के बावजूद इसका दंश झेलना पड़ा। ध्यानचंद तब एनआइएस पटियाला के मुख्य कोच थे और वह अपने प्रशिक्षुओं के साथ टूर्नामेंट देखने पहुंचे थे। गुरबक्श ने किताब में लिखा, 'उन्हें प्रवेश कार्ड नहीं दिया गया। ध्यानचंद जैसे व्यक्ति को अपने खिलाडिय़ों के साथ हर मैच के लिए टिकट खरीदने के लिए पंक्ति में खड़ा होने को बाध्य कर दिया गया। गुरबक्श ने लिखा, 'बलबीर सिंह सीनियर शायद गोल करने वाले भारत के सबसे महान खिलाड़ी हैं। केडी सिंह बाबू शायद सबसे महान ड्रिबलर थे। तो ध्यानचंद क्या थे? उन्होंने कहा, 'जवाब आसान है। वह पूर्ण खिलाड़ी थे।