EXCLUSIVE: मिडफिल्डर निक्की प्रधान ने टोक्यो ओलंपिक में पदक जीतने की उम्मीद जताई
देश के लिए इतने मैच खेलूंगी यह मैने सोचा नहीं था वह भी उस समय जब शुरुआत में ही मैं चोटिल हो गई थी। उस समय लग रहा था कि मेरा करियर समाप्त हो गया।
भारतीय महिला हॉकी टीम की नियमित सदस्य मिडफिल्डर निक्की प्रधान को उम्मीद है कि इस बार टोक्यो ओलंपिक में भारत पदक जीत सकता है। लॉकडाउन के कारण पिछले ढाई महीने से बेंगलुरु में टीम के अन्य सदस्यों के साथ रह रही निक्की प्रधान से संजीव रंजन ने खास बातचीत की। पेश के बातचीत के मुख्य अंश-
- लॉकडॉउन में क्या कर रही हैं, खुद को कैसे फिट रख रही हैं?
-साई बेंगलुरु में टीम के अन्य सदस्यों के साथ समय व्यतीत कर रही हूं। फिटनेस पर सभी ध्यान दे रहे हैं। जिम में ज्यादा वक्त बीत रहा है। मैदान से दूर रहना किसी को भी पसंद नहीं है हमलोग भी जल्द मैदान में उतरना चाहते हैं।
-मैदान से दूर रहना ओलंपिक तैयारी पर कितना असर डाल रहा है?
- ढाई माह से हम मैदान में नहीं जा रहे हैं, लेकिन मानसिक रूप से मैच की तैयारी अवश्य कर रहे हैं। हमें किन टीमों के खिलाफ खेलना है उनका वीडियो देख कर दिमाग में खाका तैयार कर रहे हैं। सभी खिलाड़ी मानसिक मजबूती पर ध्यान दे रही हैं। सभी टीमों की मजबूती व कमजोरी पर ध्यान दे रहे हैं।
-देश के लिए सौ से ज्यादा मैच खेलने पर कैसा लग रहा है?
- देश के लिए इतने मैच खेलूंगी यह मैने सोचा नहीं था वह भी उस समय जब शुरुआत में ही मैं चोटिल हो गई थी। उस समय लग रहा था कि मेरा करियर समाप्त हो गया। मुझे पता ही नहीं चला कि 110 मैच मैं खेल चूकी हूं। जब तक मैं फिट हूं और देश के लिए बेहतर प्रदर्शन करने का मादा रखती हूं तब तक मैं देश के लिए खेलना चाहूंगी।
-करियर में कोई ऐसी तमन्ना जिसे आप पूरा करना चाहती हैं?
- ओलंपिक पदक जीतने की तमन्ना है। मैं चाहती हूं कि जब मैं इस खेल को अलविदा कहूं तो मुझे लोग सिर्फ ओलंपियन ना कहें बल्कि ओलंपिक में पदक जीतने वाली खिलाड़ी के रूप में याद करें। ओलंपिक में पदक जीतना सारे उपलब्धियों से बड़ा समान है। हर खिलाड़ी चाहता है जीवन में वह ओलंपिक पदक जीते। मैं भी इससे अछूती नहीं हूं। लेकिन उसके लिए सभी को जमकर परिश्रम करना होगा और अपना सर्वश्रेष्ठ देना होगा।
-झारखंड की पहली महिला ओलंपियन बनेगी क्या ऐसा सोचा था?
- यह भी नहीं सोचा था। रियो ओलंपिक के बाद अगर मैं टोक्यो ओलंपिक में उतरी तो मेरा दूसरा ओलंपिक होगा। मैं पहले भी कह चूकी हूं कि ओलंपियन बनना अच्छा है लेकिन मैं ओलंपियन मेडलिस्ट बनना चाहती हूं।
-क्या कारण है कि राष्ट्रीय टीम में झारखंड का प्रतिनिधित्व सिमटता जा रहा है?
- यह बात सही है कि एक समय राष्ट्रीय टीम में झारखंड से हमारी पांच-छह लड़कियां एक साथ खेलती थी। धीरे-धीरे यह संख्या कम हो गया है। अभी मैं व सलीमा टेटे हैं, लेकिन आने वाले समय में यह संख्या बढ़ेगी। झारखंड की कई जूनियर खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं। निकट भविष्य में वे भी सीनियर टीम में जगह बनाने में सफल रहेंगी।