परमात्मा को पाने के लिए चुनें अध्यात्म का रास्ता
कहा कि मनुष्य जीवन की निजी आवश्यकताएं बेहद कम हैं, लेकिन शायद मानव स्वभाव ही ऐसा है कि वह संग्रहण के चक्कर में पड़ जाता है और अधिक से अधिक बटोरने की इच्छा से अपना मानसिक सुख चैन खो बैठता है। उनका कहना था कि संसार में प्रगति और समृद्धि के लिए व्यक्ति को अपने आप से धोखा नहीं देना चाहिए।
संवाद सहयोगी, ¨चतपूर्णी : विचारक डॉ. रामकुमार कौल ने कहा है कि भारतीय संस्कृति के कुछ ऐसे विश्वास विद्यमान हैं, जिनसे मानव के जीवन में स्वयं ही सद्गुणों का संचार होने लगता है। ¨चतपूर्णी में श्रीमद्भागवत कथा में प्रवचन करते हुए उन्होंने कहा कि पुर्नजन्म का विश्वास ही भारतीय संस्कृति का प्राण कहा जा सकता है। ¨हदुत्व में आस्था रखने वाला मनुष्य समझता है कि जीवात्मा अमर है और यह प्रवाह अनादि व अनंत है। भारतीय संस्कृति में कर्म को इसलिए अधिक महत्व दिया गया है ताकि मनुष्य जीवन में उच्च आदर्शो को अपनाए। परमात्मा को पाने के लिए अध्यात्म के रास्ते पर चलना चाहिए। तृष्णा, वासना व अहंकार से मन भगवान से दूर चला जाता है। उन्होंने कहा कि हर पदार्थ व हर प्राणी भगवान की संपदा है। हमें तो उनके साथ सद व्यवहार की जिम्मेवारी सौंपी गई है। इसे पूरा करते रहने तक ही अपने को सोचना है। दरअसल हम किसी भी वस्तु या व्यक्ति पर अधिकार जमाने की भूल कर बैठते हैं। अगर यह सच समझ आए जाते तो फिर वियोग, कुंठा या दुख का स्थान ही जीवन में नहीं शेष बचता है। इसी को ज्ञान दृष्टि कहते हैं। मनुष्य जीवन की निजी आवश्यकताएं बेहद कम हैं, लेकिन शायद मानव स्वभाव ही ऐसा है कि वह संग्रहण के चक्कर में पड़ जाता है और अधिक से अधिक बटोरने की इच्छा से अपना मानसिक सुख चैन खो बैठता है। संसार में प्रगति और समृद्धि के लिए व्यक्ति को अपने आप से धोखा नहीं देना चाहिए।