Road Safety With Jagran: स्कूलों में पढ़ाया जाए यातायात नियमों का पाठ, SP ऊना बोले, तभी रुकेंगे हादसे
Road Safety With Jagran जिला ऊना में सड़क दुर्घटनाएं रोकने के लिए जिला पुलिस अधीक्षक लगातार अलग-अलग तरीकों से कोशिश में जुटे हुए हैं। तेज रफ्तार से वाहन चलाने पर न सिर्फ चालान काटे जा रहे हैं बल्कि करीब 600 लाइसेंस रद करने की सिफारिश की गई है।
ऊना, अविनाश विद्रोही। Road Safety With Jagran, जिला ऊना में सड़क दुर्घटनाएं रोकने के लिए जिला पुलिस अधीक्षक लगातार अलग-अलग तरीकों से कोशिश में जुटे हुए हैं। तेज रफ्तार से वाहन चलाने पर न सिर्फ चालान काटे जा रहे हैं बल्कि करीब 600 लाइसेंस रद करने की सिफारिश की गई है। सड़क दुर्घटना के कारणों को जानने के लिए बाकायदा एक ग्राफ तैयार किया गया है जिसमें प्रतिदिन होने वाली घटना का स्थान, समय और कारण पर शोध किया जाता है। पुलिस की कार्यप्रणाली को और ज्यादा सरल करने के लिए करीब 200 सीसीटीवी कैमरा भी लगाए गए हैं ताकि हर घटना पर पुलिस की पैनी नजर रहे। इसके बावजूद सड़क दुर्घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। पुलिस इन तमाम कारणों और उनके समाधान पर क्या कर रही है, इस पर दैनिक जागरण ने जिला पुलिस अधीक्षक अर्जित सेन से बातचीत की।
दुर्घटनाएं लगातार हो रही हैं। पुलिस की सख्ती के बावजूद ऐसा क्यों?
पुलिस चालान करती है। ब्लैक स्पाट चिह्नित करके उन्हें ठीक करवाने के लिए संबंधित अथारिटी को कहती है, लेकिन सड़क दुर्घटना का सबसे बड़ा कारण सड़कों की खराब इंजीनियरिंग है। सड़कें बनी हैं, लेकिन तेज गति नहीं कर सकते। सड़कों पर गति के मानक भी अलग-अलग हैं। यदि इंजीनियरिंग सही होगी तो दुर्घटना नहीं होगी।
जिला ऊना में अधिकतर दोपहिया वाहन चालक हेलमेट नहीं पहनते हैं। पुलिस के तमाम दावे और सख्ती अब तक बेअसर रही है, ऐसा क्यों?
हेलमेट तो देखिए चालान से बचने के लिए नहीं बल्कि अपनी सुरक्षा के लिए जरूरी है। हर जगह पुलिस नहीं है लेकिन दुर्घटना कहीं भी हो सकती है। दोपहिया वाहनों की सबसे अधिक दुर्घटना होती है और दोपहिया वाहन चालकों की ही सबसे ज्यादा मौतें सड़क दुर्घटना में दर्ज की गई हैं। इसलिए हेलमेट पहनें और अच्छी गुणवत्ता का पहनें। हेलमेट के साथ-साथ कार में सीट बेल्ट का भी अनिवार्य रूप से प्रयोग करें।
क्या कोई विशेष अभियान या लोगों को जागरूक करने के लिए कोई कैंप लगाया जाता है?
जागरूकता शिविर लगातार लगाए जाते हैं। कालेज, ट्रक यूनियन व अन्य ऐसी संस्थाएं ऐसे अभियान में शामिल की जाती हैं जहां पर वाहनों का ज्यादा प्रयोग होता है। ड्रंक एंड ड्राइव रोकने के लिए विशेष नाके लगाए जाते हैं। ओवरस्पीड रोकने के लिए भी जागरूक किया जाता है।
पुलिस का दावा है कि लगातार लोगों को जागृत किया जा रहा है लेकिन दुर्घटनाएं फिर भी रुक नहीं रही?
सड़क दुर्घटना को रोकने के लिए तीन पहलू हैं। पहली अच्छी शिक्षा यानी यातायात नियमों की सही जानकारी। दूसरा अच्छी सड़कें मतलब सड़क निर्माण में हर तरह से वाहन चालकों की सुविधा का ध्यान रखा जाए। मोबाइल सुनने के लिए सड़क के किनारे स्थान हो, क्रश बैरियर हो, सड़क को क्रास करने के लिए पैदल लोगों के लिए जेबरा क्रासिंग हो, सड़क में गड्ढे या ब्लैक स्पाट न हों तो दुर्घटना रुकेगी। तीसरी जिम्मेदारी हमारी यानी पुलिस की है। पुलिस कानून का पालन करवा सकती है, उसका उल्लंघन करने वालों के चालान काट सकती है।
क्या ट्रैफिक में तैनात कर्मचारियों को कोई विशेष ट्रेनिंग दी जाती है?
ट्रैफिक कर्मचारी करीब हर दो माह बाद ट्रेनिंग पर जाते हैं। वाहनों की नई तकनीक और अन्य तरह की नई तकनीक ट्रैफिक कर्मचारी सीखते हैं। अक्सर शिमला में ऐसी ट्रेनिंग आयोजित की जाती है।
सब कुछ करने बावजूद दुर्घटना रुके कैसे?
यदि मेरी मानी जाए तो स्कूली पाठ्यक्रम में बाकी शिक्षा के साथ-साथ ट्रैफिक नियम और सड़क दुर्घटना का विषय भी जोड़ देना चाहिए क्योंकि आजकल स्कूल से ही वाहन चलाना शुरू हो जाता है और फिर जो आदत शुरू में बन जाती है, वो फिर नहीं जाती। यदि स्कूल में ही बच्चों को हेलमेट और सीट बेल्ट पहनने की अनिवार्यता मालूम हो तो उन्हें अलग से सीखना नहीं पड़ेगा।
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