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समय के पानी में बह गई वो बचपन की कश्ती, अब मौज-मस्ती करते भी नहीं दिखते बच्चे

बारिश का दौर वही है लेकिन बच्‍चे कहीं खो गये हैं अब बारिश के मौसम में बच्चे मौज मस्ती करते हुए नहीं दिखते।

By Babita kashyapEdited By: Published: Mon, 05 Aug 2019 11:11 AM (IST)Updated: Mon, 05 Aug 2019 11:11 AM (IST)
समय के पानी में बह गई वो बचपन की कश्ती, अब मौज-मस्ती करते भी नहीं दिखते बच्चे
समय के पानी में बह गई वो बचपन की कश्ती, अब मौज-मस्ती करते भी नहीं दिखते बच्चे

चिंतपूर्णी (ऊना), नीरज पराशर। जगजीत सिंह की एक मशहूर गजल के बोल हैं... यह दौलत भी ले लो, यह शोहरत भी ले लो, भले छीन लो मुझसे सारी जवानी, मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन...वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी...! उस सुनहरे दौर के लोग आज भी इस गजल को बड़े चाव से सुनते और गुनगुनाते हैं।

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आज भी बारिश का मौसम आते ही स्कूल में छुट्टियां होती हैं लेकिन अब न तो बच्चे कड़ी धूप में घर से निकलते हैं और न ही खेत खलिहानों में बुलबुल और तितलियों के पीछे भागते नजर आते हैं। बेशक दौड़ती भागती इस जिंदगी में वो बचपन का सावन कहीं खोकर रह गया है। 1990 तक जब स्कूलों में अवकाश के दिन हुआ करते थे तो अधिकांश बच्चे ‘ग्वाले’ बनकर कभी चरागाहों तो कभी खेत-खलिहानों में जमकर मौज-मस्ती किया करते थे। बारिश के पानी में कागज की कश्तियां भी चला करती थीं।

 

यही नहीं छुट्टियों में बच्चे अपने सगे-संबंधियों के घर जाकर नए माहौल व वातावरण में काफी कुछ सीखते थे। सृजनात्मक गतिविधियों में बराबर शामिल हुआ जाता था। बेशक जब समय बदलता है तो और भी बदलाव देखने को मिलते हैं। जीवन शैली में परिवर्तन होने से गुजरे और मौजूदा समय में विरोधाभास भी साफ नजर आने लगता है। अब बच्चे या तो घर की चारदीवारी के भीतर रहना पंसद करते हैं या उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर किया जाता है। अब इंडोर खेल या कंप्यूटर पर ही सारा दिन गेम्स खेलते हैं और अगर कहीं घूमने की बात हो तो हिल स्टेशन पर जाने का कार्यक्रम अभिभावक तय करते हैं।

मौजूदा वक्त को देखें तो अभिभावकों की चिंता वाजिब है। वे बच्चों की सुरक्षा की खातिर सहज माहौल चाहते हैं।

रिश्तेदारों पर बोझ न बना जाए इस नजरिए को ध्यान में रखकर ही छुट्टियों की प्लानिंग की जाती है। बच्चों की

शिक्षा के साथ अन्य गतिविधियों को लेकर मां-बाप अधिक सचेत हुए हैं।

-डॉ. पल्लवी, मनोरोग विशेषज्ञ, जालंधर में कार्यरत

 

बच्चों को बाहर खेलने की छूट देने का मन तो करता है लेकिन आज के माहौल को देखकर सहम जाते हैं। इसलिए बच्चों को घर पर ही रखता बेहतर लगता है।

सुलेखा, गृहिणी

अब किसी के पास इतना समय नहीं है कि किसी रिश्तेदार के यहां जाएं और ठहर सकें। हादसों का भी डर बना रहता है। यही कारण है कि बच्चों को ज्यादा से ज्यादा अपनी निगरानी में ही रखा जाता है।

-सोनम, गृहिणी

निजी संस्थान में होने से स्ट्रेस अधिक रहता है। जिस घर में दंपति नौकरी पेशा हैं वहां एहतियात थोड़ी ज्यादा बरतनी पड़ती है यही कारण है कि बच्चों को घर पर ही रखना मुनासिब दिखता है।

-पूनम ठाकुर, निजी संस्थान में कार्यरत

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