परंपरागत जलस्रोत अनदेखी का हो रहे शिकार
गर्मी का मौसम शुरू हो चुका है और चितपूर्णी के धार क्षेत्र में इस मौसम में पेयजल समस्या होना आम है। ऐसे में आम जनमानस पेयजल किल्लत को लेकर आइपीएच विभाग व स्थानीय प्रशासन को भी कोसता है लेकिन धरातल का सच यह भी है कि पेयजल का दुरूपयोग जहां धड़ल्ले से हो रहा है वहीं परंपरागत जलस्त्रोतों की उपेक्षा से भी यह समस्या दिनों-दिन आगे बढ़ने वाली है। अगर नलों में पानी नहीं आया तो
संवाद सहयोगी, चितपूर्णी : चितपूर्णी के धार क्षेत्र में पेयजल समस्या होना आम है। वहीं परंपरागत जलस्रोतों की उपेक्षा से भी यह समस्या बढ़ती जा रही है। बेशक पंचायती राज विभाग इन जलस्रोतों की सफाई के लिए मनरेगा के तहत बजट का प्रावधान भी करता है, लेकिन स्थानीय पंचायत प्रतिनिधि भी इस ओर ध्यान नहीं देते हैं। कभी जहां इन कुओं, बावड़ियों और तालाबों पर सब लोग निर्भर करते थे वहीं सुबह-शाम इन स्रोतों पर ग्रामीणों का तांता लगा रहता था, वहीं नल-जल योजना शुरू होने के बाद एक तरह से ये परंपरागत स्रोत उपेक्षा का शिकार होकर रह गए। मौजूदा समय में इन प्राकृतिक स्रोतों की तरफ ध्यान न दिए जाने से इनके अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लग चुका है। आलम यह है कि चितपूर्णी, नारी, जवाल, गिडपुर मलौण, गुरेट, किन्नू, धर्मसाल महंता, बधमाणा, घंगरेट, लोहारा और खरोह आदि स्थानों पर सालों पुराने स्त्रोत बुरी तरह से बदहाल हो चुके हैं। चितपूर्णी के पलवाणी नामक स्थान पर गंदगी के कारण तीन जलस्रोत प्रदूषित हो चुके हैं तो लोहारा में एक कुआं कूड़ा-कर्कट से बंद कर दिया गया। जर्जर अवस्था में पहुंच चुके इन जल स्रोतों के लिए सरकारी प्रयास अब तक नाकाफी ही सिद्ध हुए हैं। स्थानीय निवासियों राकेश, सुदेश, मनोज शर्मा, अर्चना और गिरधारी लाल का कहना है कि सरकार को प्राथमिकता के आधार पर इनके रखरखाव व सहेजने की दिशा में कदम उठाने चाहिए। वहीं, खंड विकास अधिकारी अभिषेक मित्तल का कहना था कि कुओं और बावड़ियों की साफ-सफाई के लिए मनरेगा के तहत कार्य किया जाता है। अगर संबंधित पंचायतें इस संदर्भ में प्रस्ताव पारित करें तो विभाग की तरफ से मनरेगा के तहत बजट का प्रावधान कर दिया जाता है।