गंभीर घायल होने के बावजूद भारत के अभिन्न अंग की रक्षा की थी रघुनाथ ने
चितपूर्णी ..गोलियां लगने से उस वीर सैनिक का सीना छलनी हो चुका है।
संवाद सहयोगी, चितपूर्णी : ..गोलियां लगने से उस वीर सैनिक का सीना छलनी हो चुका है। शरीर के अंगों में तेजी से खून रिस रहा था व चलने में दिक्कत आने लगी थी। ज्यों-ज्यों दर्द बढ़ रहा था त्यों-त्यों उनमें जोश भी बढ़ रहा था। वह दुश्मन देश के सैनिकों को ललकारता रहा और आखिर में दुश्मन द्वारा धोखे से हथियाई गई पोस्ट पर तिरंगा फहरा दिया। बात हो रही है बधमाणा गांव के शहीद रघुनाथ सिंह की, जिन्हें इस क्षेत्र में पहली बार सरकार ने वीर चक्र से सम्मानित किया था। उन्होंने अकेले अपने दम पर 14 अक्टूबर, 1948 को पीर बड़ेसर (जम्मू-कश्मीर) में स्थित सैन्य ठिकाने पर पाकिस्तानी सैनिकों को ढेर कर भारत के इस अभिन्न अंग की रक्षा की थी।
तीन फरवरी, 1919 को माता लाल देई और पिता मल सिंह के घर पैदा हुए बधमाणा गांव के रघुनाथ सिंह ने देश के लिए वो कर दिखाया, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।
14 अक्टूबर, 1948 की रात को पीर बड़ेसर चौकी से दुश्मन गोलाबारी कर रहे थे। तभी सूबेदार रधुनाथ सिंह के नेतृत्व में भारतीय जवानों ने दुश्मन के हमले का जवाब देना शुरू किया। इस बीच रघुनाथ सिंह के सीने पर सामने से पाकिस्तानी सैनिकों की गोलियां लगीं और वह लड़खड़ा के गिर पड़े। सिंह को घायल देख साथी जवान पास आए व उन्हें वापस चलने को कहा, लेकिन रघुनाथ सिंह ने पीछे जाने के लिए मना कर दिया और साथी जवानों को आगे बढ़ने को कहा। गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद उन्होंने अपनी बंदूक नहीं छोड़ी और अपने साथी जवानों को निर्देश दिया कि उनकी चिता न करें और इस बार मौका खो गया तो दोबारा उस पोस्ट पर कब्जा करना मुश्किल ही नहीं, असंभव होगा। वह जवानों में लगातार जोश भरते रहे और दुश्मन देश के सैनिकों को ललकारते रहे। अपनी बंदूक से लगातार फायर भी करते रहे, जिससे कई पाक सैनिक हताहत भी हुए और इसके बाद सफलतापूर्वक उस चौकी पर भारतीय जवानों ने कब्जा कर लिया, लेकिन दुर्भाग्य यही था कि सूबेदार रघुनाथ सिंह के शरीर से काफी खून बह चुका था। उन्हें सेना के अस्पताल में उपचार के लिए भर्ती करवाया गया। वह दस दिन तक अस्पताल में उपचाराधीन रहे। आखिरकार सूबदेार रघुनाथ सिंह 24 अक्टूबर, 1948 को वीरगति को प्राप्त हो गए। भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय ने इस वीर जवान की वीरता, अदम्य साहस और अमूल्य योगदान के लिए शहीद रघुनाथ सिंह को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया।